राजस्थान दिवस का जश्न मनाने के लिए मेरे पास कोई वजह नहीं है!

राजस्थान दिवस पर अलवर के पहलू खान और भीलवाड़ा के गंगाराम से बात हुई

राजस्थान दिवस का जश्न मनाने के लिए मेरे पास कोई वजह नहीं है!
अलवर का पहलू खान, उमर और रकबर खान तीनों ने मुझसे आज पूछा “30 मार्च को किस बात का जश्न है?”

भीलवाड़ा का गंगाराम, कोटा में फांसी के फंदे पर झूलता एक स्टूडेंट, हाड़ौती में लहसुन का रोता हुआ किसान,

डांगावास का सहमा हुआ दलित, घोड़ी से जबरदस्ती उतार दिए जाने वाला दूल्हा…और ना जाने कितने ही ऐसे लोगों ने ये एक ही सवाल बार-बार किया !

मैंने बताया कि आज 30 मार्च है, यानि राजस्थान दिवस, जिस दिन हम हमारे गौरवशाली प्रदेश के बनने का जश्न मनाते हैं, कई सामंती सोच वाली रियासतों के एक होने की खुशी मनाते हैं,

ऐसा ही कुछ जवाब मैंने दिया पर मुझसे कोई भी संतुष्ट नहीं हुआ ! सभी बोले किस बात का गर्व है तुम्हे…क्यों हर साल 30 मार्च को दिल को झूठा दिलासा देते हो !

पहलू खान बात की शुरुआत करते हुए बोले –

पहलू खान ने कहा तुम्हारा राजस्थान क्या किसी को पीट-पीट कर मारने पर गर्व करता है ? क्या कोई भीड़ किसी की ज़िन्दगी निगल सकती है यहां ? सरकारें तो मरी हुई है, चलो हम तो भईया समाज की ही बात करते हैं।

पास में बैठे उमर और रकबर ने हां मिलाई, और ना जाने कितने खौफ से सने चेहरों ने अपनी चुप्पी से अपनी उपस्थिति दर्ज करवाई।

फिर भीलवाड़ा के गंगाराम बोले – कौनसे इतिहास पर गर्व करते हो तुम, जब वर्तमान में एक इंसान को जला कर मार दिया जाता है, और कुछ लोगों के डर की वजह से ये समाज मूक दर्शक बना रहता है !

 दलितों की हत्या का गढ़ – भीलवाड़ा

भीलवाड़ा में मजदूर गंगाराम को फेक्ट्री के बाहर दिन-दहाड़े पेड़ से बांधकर ज़िंदा जलाकर मार दिया गया था, पुष्कर के पास डांगावास में जाति विशेष नफरत में 5 दलितों को जान से मार दिया।

वहीं पर ना जाने कितने घोड़ी से उतार दिए गए दूल्हे और कितने ही जुल्मों के निशान दिखाते हमारे राजस्थान के ही लोग बैठे थे।

 

भीलवाड़ा राज्य के उन ज़िलों में शुमार है जहां दलितों पर अत्याचार की घटनाएं दिनचर्या का हिस्सा जैसे हो गई है।

क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो के एक डेटा के मुताबिक 2013 में देश में हुए दलितों पर अत्याचार के मामले में 16.45 प्रतिशत राजस्थान के हैं, जबकि प्रदेश में सिर्फ सवा करोड़ दलित ही हैं।

फिर चर्चा में हाड़ौती के कुछ किसान भी आये –

हाड़ौती के ये किसान लहसुन का नाम सुनने भर से कांप रहे थे, क्या तुम्हारे राजस्थान में एक किसान हर रात बैठकर अपने खेत में रोता है, हालांकि ये सब सरकारी तंत्र की नाकामी के मारे थे।

राजस्थान के 32 लाख किसानों की जमीन व्यावसायिक बैंकों के पास गिरवी रखी हुई है, जिसके बाद उन्हें लोन मिलता है। और कर्ज माफी अभी कागजों में ही है !

 एक कोटा का स्टूडेंट भी वहां बैठा था !

वो बोला तुम गर्व करते हो कि कोटा औधोगिक नगरी बन गया, कोचिंग हब बन गया…पर क्या कभी साल के आखिर में फांसी के फंदे गिनते हो, माना उनके वहां झूलने की हज़ार वजह रहती होंगी, लेकिन क्या बहरी सरकारों के सामने इस गौरवान्वित समाज ने कभी इस बनती परम्परा के लिए कुछ किया ? सवाल देखा जाए तो वाज़िब था !

कुछ क्राइम ब्रांच के अधिकारी भी वहां मुँह छुपाकर बैठे थे –

गौरवशाली राजस्थान में पिछले कुछ सालों में डकैती की वारदात 90 प्रतिशत बढ़ी। बलात्कार के 40, बलवा के 35, अपहरण के 15 प्रतिशत मामले ज़्यादा दर्ज हुए। सबसे ज्यादा अपराध जयपुर में दर्ज होते हैं। इसके बाद अलवर, भरतपुर, उदयपुर, अजमेर का नम्बर आता है।

दिन भर चला बातचीत का ये सिलसिला, मैं इतिहास के पीले पड़े पन्नों को पलटता रहा और वो सब वर्तमान की डायरी लिए बैठे थे ?

राजस्थान दिवस की सभी को शुभकामनाएं।

– अवधेश पारीक

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