सुप्रीम कोर्ट ने कहा लोकतंत्र में भीड़तंत्र के कृत्य पूर्णतया अस्वीकार्य,उसी दिन भीड़ ने स्वामी अग्निवेश को पीटा

-मोहम्मद आसिफ़

देश भर में बढ़ रहे मॉब लिनचिंग( भीड़ द्वारा किसी की मारपीट या हत्या) के मामलों पर सामाजिक कार्यकर्ता तहसीन पूनावाला, तुषार गांधी, और खुदाई ख़िदमतगार जैसे संगठनों की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को बड़ा फैसला दिया है। मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली बैंच ने हिंसक भीड़ द्वारा गौरक्षा ,बच्चा चोरी की अफवाह आदि के नाम पर होने वाली हत्याओं की कड़ी निंदा करते हुए कहा कि लोकतंत्र में भीड़तंत्र के ये भयानक कृत्य पूर्णतया अस्वीकार्य है।
सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा राज्यों की यह जिम्मेदारी बनती है कि वह शांति व्यवस्था बनाये रखे , किसी भी व्यक्ति या संस्था को कानून अपने हाथ में न लेने दे और यह सुनिश्चित करे कि न्यायिक संस्थाएं कुशलतापूर्वक एंव प्रभावी ढंग से कार्य करें । सुप्रीम कोर्ट ने इस तरह की घटनाओं को रोकने के लिए संसद में नया कानून बनाने की भी बात की है।
चीफ जस्टिस मिश्रा, जस्टिस चंद्रचूड़ एंव जस्टिस खानविलकर की बेंच ने मॉब लिनचिंग की घटनाओं को रोकने के लिए केन्द्र एंव राज्यों को कुछ दिशा निर्देश जारी किये है और इन्हें प्रभावी ढंग से लागू करने के लिये 4 हफ़्तों का समय दिया है। इन दिशा निर्देशों में ऐसे मामलों की फ़ास्ट ट्रैक कॉर्ट में सुनवाई,हिंसक भीड़ पर त्वरित एक्शन, पीड़ित परिवार को आर्थिक सहायता एंव भीड़तंत्र को रोकने में विफ़ल पुलिस अफसर पर अनुशाश्नात्मक कार्यवाही आदि प्रमुख है।

सुप्रीम कोर्ट के दिशा निर्देश….

1.राज्य अपने हर जिले में एसपी या उससे बड़ी पोस्ट वाले अधिकारी को नोडल अफ़सर नियुक्त करे। नोडल अफ़सर भीड़ द्वारा की गई हत्याओं की स्थिति का आंकलन एंव नियंत्रण करे। नोडल अफसर की मदद के लिये हर जिले में डीएसपी तैनात हो जो एक विशेष टास्क फ़ोर्स का गठन करे। हर जिले में टास्क फोर्स भीड़ के बारे ख़ुफ़िया जानकारी जैसे की कौन इन्हें भड़काता है,कौन नफ़रत फैलाने वाले भाषण और झूठी खबरें फैलाता है आदि इकट्ठा करे।

2. राज्य सरकारें इस फैसले के तीन हफ़्तों के भीतर ऎसे स्थानों, गांवों एंव जिलों की पहचान करे जहां हाल-फिलहाल में लिंनचिंग और हिंसक भीड़ की घटनाएं हुई हो।

3. नोडल अफसर हिंसक भीड़ पर नियंत्रण के लिए स्थानीय ख़ुफ़िया विभाग एंव लोकल पुलिस से महीने में कम से कम एक बार मीटिंग करे।

3.पुलिस महानिदेशक(डीजीपी) या गृह विभाग सचिव प्रत्येक जिलों के नोडल अफसरों से और ख़ुफ़िया प्रमुख से नियमित अंतराल पर समीक्षा बैठक आयोजित करे।

4. सभी पुलिस अधिकारी ऐसी भीड़ को तुरंत तितर बितर करे जो किसी की हत्या या क़ानून व्यवस्था को भंग करने का प्रयास करे।

5. केंद्र एंव राज्य सरकारें रेडियो, टेलीविजन,समाचार पत्रों, सोशल मीडिया और अन्य सभी सूचना माध्यमों के जरिये ये प्रसारित करवाये की हिंसक भीड़ का हिस्सा बनने पर सख़्त से सख़्त कार्यवाही की जायेगी।

6. पुलिस आईपीसी की धारा 153 ए (लोगों के बीच शत्रुता को बढ़ावा देने) और / या अपराधियों के खिलाफ अन्य प्रासंगिक प्रावधानों के तहत प्राथमिकी(FIR) दर्ज करेगी।

7. उन सभी पुलिस या जिला अधिकारिओं के ख़िलाफ़ विभागीय कार्रवाई की जायेगी जो अपराधियों के ख़िलाफ़ कार्रवाई करने में विफ़ल साबित हुए है। इस तरह की विफ़लता को जानबूझकर की गयी लापरवाही या दुर्व्यवहार के कार्य के रूप में माना जायेगा और 6 माह के भीतर संबंधित अधिकारियों पर एक्शन लिया जाएगा।

इस तरह की घटनाओं से पूरे विश्व में भारत की छवि धूमिल हो रही है। सुप्रीम कोर्ट ने पहली बार इतनी सख़्ती दिखाई है और केंद्र एंव राज्यों को स्पष्ट निर्देश भी दिये है मगर इस तरह के निर्देशों को लागू करवाने में प्रशासन द्वारा बरती गयी लापरवाही को हम अच्छी तरह से जानते है। इस केस में ऐसा न हो इसलिए केंद्र एंव राज्यों के साथ साथ सभी अमनपसंद लोग, मानवाधिकार कार्यकर्ताओं और न्याय से जुड़ी सभी गैर सरकारी संगठनों की भी ये जिम्मेदारी बनती है वो सुप्रीम कोर्ट के इन दिशा निर्देशों को जल्द से जल्द लागू करवाये ताकि भविष्य में हमें एक लोकतंत्र के रूप में फिर से शर्मसार न होना पड़े।

लेखक परिचय

मोहम्मद आसिफ़, सीकर, राजस्थान

लेखक सन्त लोंगोवाल इंस्टिट्यूट ऑफ इंजीनियरिंग एंड टेक्नोलॉजी संगरूर पंजाब से कम्प्यूटर साइंस इंजीनियर है और Awazistan न्यूज़ पोर्टल के लिए भी लेख लिखते हैं।

(किसी भी तरह के कॉपीराइट क्लैम की ज़िम्मेदारी लेखक की है)

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