हे भारतवासियों, अब मत आवाज लगाओ मुझे !

-ध्रुव गुप्त

हे भारतवासियों, अब मत आवाज लगाओ मुझे ! आपके भारत की मेरी यात्रा द्वापर युग तक ही ठीक थी। कलियुग में इस अंतिम चरण में अवतार लेकर संभवतः मैं स्वयं संकट में फंस जाऊंगा। यहां कोई कैसे निर्णय लेगा कि किसका समर्थन करना है और किसका विरोध ! सत्ता पक्ष हो या विपक्ष – दोनों ही के मूल में अधर्म है। दोनों ओर कंसों, शकुनियों, धृतराष्ट्रों, दुर्योधनों और दुःशासनों की भारी भीड़ है। अधर्म ही अधर्म के विरुद्ध खड़ा है। सत्तालोभ और भ्रष्टाचार में आकंठ डूबे दोनों ही पक्ष धर्म, जाति और झूठे आश्वासनों के पासे फेंक कर प्रजा को दिग्भ्रमित करने के अभियान में जुटे हैं। प्रजा इन दोनों के मोहपाश में बंधकर सत्य, न्याय, समता, भाईचारे और प्रेम का मार्ग कब का भूल चुकी है। युद्ध हुआ तो अधर्म ही अधर्म से लड़ेगा। अधर्म ही मारेगा, अधर्म ही मरेगा। जब कहीं धर्म है ही नहीं तो किसके लिए मुझे महाभारत रचने की आवश्यकता है ? सो अपने इस कन्हैया को क्षमा करो ! इस पथभ्रष्ट देश में जो संकट है वह तुम्हारी देन है। इससे निकलने का मार्ग भी तुम्हें ही ढूंढना है। कबतक अपने कुकर्मों से मुक्ति के लिए मेरी बाट जोहते रहोगे ?

और हां, यदि सुन सको तो अपने मन में गहरे जाकर प्रेम की मेरी बंसी अवश्य सुनना। तुम्हारी मुक्ति का कोई रास्ता यदि निकलेगा तो बिल्कुल वहीं से निकलेगा।

(लेखक पूर्व आईपीएस अधिकारी और प्रसिद्ध साहित्यकार है,विभिन्न पत्र पत्रिकाओं में उनके लेख छपते रहते हैं, ये लेख उनकी फेसबुक वॉल से साभार लिया गया है।)

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