आज जलियांवाला बाग हत्याकांड को सौ साल होने को है, पर गोलियों के निशान अब भी बाक़ी!


दो डायर और एक नरसंहार,आज जलियांवाला बाग हत्याकांड को सौ साल होने को है

अराजक और क्रांतिकारी अपराध अधिनियम रौलट (अधिनियम) दरअसल एक काला कानून था जिसके तहत अंग्रेज सरकार भारतीयों की बिना वारंट गिरफ्तारी,लोगों के मुकदमे सुने बिना अनिश्चित काल की बंदी और न ही अपील करने का अधिकार और प्रेस की आजादी छीनने का प्रावधान लिए हुए ये काला कानून भारत की जनता का जीवन नरक बनाने के सपने लिए हुए था, जिसका प्रचंड विरोध भारतीयों ने अपनी जान की बाजी लगाकर भी किया ।



जलियांवाला बाग हत्याकांड की त्रासदी

इस काले कानून का विरोध करने भारत का हर वर्ग मुखर था । 13 अप्रैल 1919 को अमृतसर के जलियांवाला बाग में जनता इकट्ठी थी जिस पर गोली चलाने का निर्णय एक नही बल्कि दो डायरों ने लिया !
सेना अधिकारी एडवर्ड हैरी डायर और प्रशासक माइकल फ्रांसिस ओ दायर दोनो ने एक सम्मान जिम्मेदारी के तहत इस हत्याकांड को अंजाम दिया । दोनो ने एक-दूसरे की प्रशंसा की बल्कि अपनी क्रूरता पर शर्मिंदा होने के बजाए अहंकार का प्रदर्शन करते रहें ।
जिसमे हजारों स्त्री-पुरुषो और बच्चों को मौत के घाट उतार दिया गया था ।जिसके निशान आज एक शताब्दी बीतने के बाद भी देखे जा सकते है ,जो निर्दोषों के खून की गवाही देते प्रतीत हो रहे है ।
विभीषिका का वर्णन शोकाकुल परिवार ने कुछ इस तरह किया है –
”सेना के आने के कुछ ही देर में लोग भागने लगे, लेकिन अंग्रेज अधिकारी उन्हें ही निशाना बना रहे थे जो भाग रहे थे ।”
मियाँ मोहम्मद शरीफ

”पूरा रास्ता शवों से भरा पड़ा था। बाग में कम से कम 2000 लोग मृत और घायल अवस्था मे पड़े थे , जिनमे मासूम बच्चे और स्त्रियाँ भी थी ।”
खुशहाल सिंह

कवि ने अफसोस का इजहार करते हुए वर्णन किया है कि

हाय अफसोस कि केसों पर चलाई गोली।
जिन पर तलवार तमंचा न हवाई गोली ।।
ऐ फलक टूट पड़ा क्यों न सितमगारों पर ।
जिनके कहने से ओ डायर ने चलाई गोली।।
सीख कर खूब बिलायत से करामात आये ।
वाह रे मर्द निहत्थे पर चलाई गोली ।।
खूब तजवीज़ किया हिन्द की खिदमत के लिए।
कर दिया बर्बाद चलाई गोली।।
कुछ तो गुल खिल गये कुछ कलियाँ रही थी बाकी।
इतने में बाज- ए-खिंजा से इधर आई गोली।।
रह गया थाम के हाथों से जिगर-ए-फलक ।
बाग-ए- जालियां में जो डायर ने चलाई गोली ।।

6 गोलियाँ और 21 साल के बाद बदला

जनरल ओ डायर को उस के कृत्य के लिए मौत के घाट उतारने वाले उधमसिंह ने अंत मे ओ डायर की हत्या करके इस हत्याकांड का बदला लिया था , उन्ही के शब्दों में –
”मैंने उसे द्वेष के कारण मारा वह इसी के लायक था । वही असली दोषी था। उसने मेरे लोगों की चेतना का संहार करने की कोशिश की ,मैंने उसका ही संहार कर दिया । यह बदला लेने के लिए मैं 21 वर्षों से प्रतीक्षा कर रहा था। मुझे खुशी है कि मैं ऐसा कर पाया। मुझे मौत का भय नही मैं अपने देश के लिये मर रहा हूँ।”



आज इस दुखान्तिका को सौ साल पूरे हो रहे है । 1919 में हमारी आजादी के लिए हजारों ने अपने जीवन का बलिदान दिया….
और 2019 में दशक बीतने के बाद भी गोलियों के निशान अब भी है ।
वाकिया पंजाब है रोने-रुलाने के लिए ।
नाम डायर रह गया हर दिल दुखाने के लिए ।।

हम नही मानेंगे हमे कैदी बनाओ लाख बार ।
है रगों में खून जबतक जोश खाने के लिए।।

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