एक ऐसा मुख्यमंत्री जिसको धोती कुर्ता दिलाने के लिए भी लोगों ने चंदा किया

बिखरे बाल
उलझी लटाये
रुक्ष चेहरा
मसीहाई नूर
साधारण लिबास !
दुनिया से रुखसत किया तो कोई दौलत नहीं छोड़ गए।आज कर्पूरी ठाकुर का जन्म दिन है।वे बिहार में दो बार मुख्य मंत्री रहे है।1974 की बात है।दिल्ली में जे पी की रैली थी।मैं प्रथम वर्ष का विद्यार्थी था।एक समूह का हिस्सा बन कर दिल्ली पहुंचे तो एक मकाम पर रुके। वहां कर्पूरी ठाकुर और रामानंद तिवारी संग संग थे। कर्पूरी जी की बहुत शोहरत थी। नाम सुन रखा था।सहसा यकीन नहीं हुआ कि इतनी बड़ी शख़्सियत सामने है।
जैसे मौजूदा राजनीति में एक नेता की शोहरत और बलन्दी उसकी चमक दमक ,धन दौलत ,रहन सहन और विदेशी डिग्री से होती है ,उस दौर में एक लीडर की इज्जत उसकी सादगी ,ईमानदारी और सिद्धांतवादिता से होती थी।कर्पूरी जी की सादगी के बहुत किस्से है।वे प्राय रिक्शा में सवारी करते थे।उन दिनों देश ने इतनी प्रगति नहीं की थी कि कोई नेता बी एम डब्लू और लैंड क्रूजर में चल सके।फेब के कुर्तो का चलन भी नहीं था।एक बार उनके गृह जिले समस्तीपुर में कार्यक्रम था। वे सी एम थे। हेलीकाप्टर से पहुंचे तो दूधपुरा हवाई पट्टी पर कोई अधिकारी नहीं पहुंचा। कर्पूरी जी रिक्शे में बैठे और चल दिए। रास्ते में कलेक्टर मिल गए। कलेक्टर घबराया हुआ था।कर्पूरी जे पूछा लेट हो गए। कलेक्टर ने माफ़ी मांगी और कहा कार्यक्रम की तैयारी में लगे हुए थे। कर्पूरी जी ने कुछ नहीं कहा।
बिटिया की शादी थी।कर्पूरी जी चाहते थे विवाह देवघर मंदिर में हो। पर घरवालों के आग्रह पर गांव में की /लेकिन बहुत सादगी से। अपने किसी मंत्रिमंडलीय साथी को नहीं बुलाया।अफसरों को भी हिदायत थी।फिर भी उनका व्यापक जनाधार कम नहीं हुआ।इन दिनों एक नेता के घर शादी हो तो अमीरी लज्जा जाती है।हैसियत की नुमाइश होती है। इसका आम लोगो पर भी असर पड़ता है।
वरिष्ठ पत्रकार सुरेंद्र किशोर ने एक बार लिखा। 1977 में पटना में जी पी का जन्म दिन मनाया जा रहा था। सब नेता मौजूद थे। किसी ने कर्पूरी जी का लिबास और हाव भाव देख कर टिप्पणी की ‘ एक सी एम के ठीक से गुजर बसर करने के लिए कितनी तनख्वाह मिलनी चाहिए ‘? लोग इसका भाव समझ कर कर्पूरी जी तरफ देखने लग गए।तभी चंद्रशेखर उठे और अपना लम्बा कुर्ता फैला कर बोले ‘कर्पूरी जी के कुर्ते धोती के लिए कुछ दीजिये ‘ / कुछ रूपये इक्क्ठे हो गए। चन्द्रशेखर ने रूपये कर्पूरी जी को नजर करते हुए कहा ‘ इससे आप एक धोती कुर्ता खरीद लीजिये ,कुछ और मत कीजियेगा। कर्पूरी जी मुस्कराये। बोले इसे मैं सी एम कोष में जमा करा दूंगा।
स्व हेमवंती नंदन बहुगणा ने एक बार लिखा”- चौधरी देवी लाल जी ने बिहार में अपने एक हरियाणवी दोस्त को कहा अगर कर्पूरी कभी तंगी में पांच दस हजार रूपये मांगे तो दे देना। यह मेरे ऊपर कर्ज होगा। फिर देवीलाल जी हर बार अपने दोस्त पूछते। वो एक ही बात कहता। नहीं कभी कुछ नहीं माँगा। देवीलाल जी कर्पूरी बाबू की बहुत इज्जत करते थे।
वे जब विधायक थे तब ऑस्ट्रिया जाना हुआ। कोट नहीं था। किसी दोस्त का मांग कर लाये। मुख्य मंत्री बनने के बाद अपने बेटे रामनाथ को खत लिखा।कहा बेटे किसी के लोभ प्रलोभन में मत आना। लोग तुमसे सम्पर्क करेंगे। सावचेत रहना।वे एक शिक्षक भी थे। इस नाते अगर सियासत पढ़े तो अच्छाई और सच्चाई का पाठ पढ़ा गए है।
कर्पूरी जी भारत की आजादी के लिए लड़े। 26 माह तक जेल में रहे। 1952 में जब पहला विधान सभा चुनाव हुआ ,वे विधायक बने और फिर कोई चुनाव नहीं हारे।
अब हर कोई उनकी सियासत और विरासत के लिए तो लड़ रहा है। मगर उनकी सादगी और ईमानदारी को कोई गले नहीं लगाना चाहता।
सादर

नारायण बारेठ

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार और बीबीसी हिंदी के संवाददाता है)

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