राजस्थान में मुख्यमंत्री गहलोत के सामने नहीं है कोई चुनौती, राष्ट्रीय संगठन भी साथ !


जिस तरह से घर परिवार में जो आर्थिक प्रबंधन समय से, ढंग से, नेतृत्व का विश्वास, एवं वफादारी का रोल कायम करता रहता है उस शख्स की पारिवारिक फैसलो मे महत्वपूर्ण भूमिका रहती है। उसी तरह किसी भी राजनीतिक दल को चलाने के लिये उसके लिये समय पर ढंग से आर्थिक प्रबंधन व नेतृत्व के प्रति वफादारी जो नेता करता रहता है उसकी उस दल मे चवन्नी एक रुपये मे चलती है।

उक्त सब विषयों मे अशोक गहलोत को कांग्रेस का संकटमोचन व पारंगत बताया जाता है। भारत के महत्वपूर्ण व पूरी तरह शिक्षित प्रदेश केरल के कुछ महीने बाद होने वाले आम विधानसभा चुनाव के लिये कांग्रेस पार्टी ने अशोक गहलोत की इन्हीं खूबियों  के चलते उनपर विश्वास जताते हुये उन्हें चुनावी इंचार्ज बनाया है। गहलोत ने कल पार्टी संगठन महासचिव के सी वेणुगोपाल के साथ केरल पहुंच कर अपना काम शुरू कर दिया है।

हालांकि राजस्थान कांग्रेस की राजनीति मे अशोक गहलोत ने पहले कम उम्र मे प्रदेश अध्यक्ष व केंद्र मे मंत्री बनकर अपना लोहा मनवाने के साथ साथ 1998 में अपनी राह के सभी तरह के रोड़े दूर करके पहली दफा मुख्यमंत्री बनने के बाद लगातार एक एक मुख्यमंत्री बनने की दौड़ मे लगे दिग्गज नेताओं को साईड लाईन करते हुये तीसरी दफा मुख्यमंत्री बनने मे सफल हो गये।

तीसरी दफा मुख्यमंत्री बनने के बाद अपने मुकाबिल नेता सचिन पायलट को जबरदस्त झटका देकर प्रदेश अध्यक्ष व उपमुख्यमंत्री पद से हटाने के साथ साथ उनके कट्टर समर्थक दो अन्य मंत्री विश्वेन्द्र सिंह व रमेश मीणा को भी मंत्रीमंडल से बाहर का रास्ता दिखाया।

आठ महीने होने को आये ना उन मंत्रियों को वापस केबिनेट मे शामिल किया गया और ना ही सचिन पायलट को पहले वाले मुकाम पर आने दिया है।

वही राजनीतिक नियुक्तियों व मंत्रीमंडल विस्तार व बदलाव को आजकल आजकल करते करते लम्बा समय निकाल दिया । अब लगता है कि केरल चुनाव की व्यस्तता के बहाने फिर समय निकलता जायेगा। बीच बीच मे रुक रुक कर एक एक करके गहलोत अपने समर्थकों को राजनीतिक नियुक्तिया देकर नवाजते रहेगे ओर विरोधी झटके पर झटके खाते रहेगे।

मुख्यमंत्री गहलोत ने मुख्यमंत्री बनते ही महाधिवक्ता व अतिरिक्त महाअधिवक्ताओ का मनोनयन अपने अनुसार किया। उसके बाद बाल संरक्षण अधिकार आयोग की अध्यक्ष संगीता को बनाया। उसके बाद लोकसेवा आयोग व मानवाधिकार आयोग का अध्यक्ष व सदस्यों का चयन अपने अनुसार किया। मुख्य सूचना आयुक्त व सुचना आयुक्तों का मनोनयन भी गहलोत ने अपने अनुसार किया। उक्त सभी तरह के मनोनयन मे सचिन पायलट की किसी भी तरह की शह नही होना बताया जा रहा है।

कुल मिलाकर यह है कि किसी भी राजनीतिक दल को चलाने के लिये अनेक तरह के प्रबंधन करने के अतिरिक्त नेतृत्व का विश्वास पात्र एवं वफादार होना भी आवश्यक होता है। जब राजनीतिक दल का बुरा दौर हो और वो  सत्ता से कुछ समय से दूर रहे तो उस दल के लिये कुछ नेता काफी महत्वपूर्ण हो जाते है। जो नेता दल की आवश्यक जरुरतो को पूरी करने की क्षमता का निर्वाह ठीक से करते हुये शीर्ष नेतृत्व के प्रति वफादार भी हो।

ऐसी ही कुछ खूबियों की ताकत के बल पर लगता है कि मुख्यमंत्री अशोक गहलोत वर्तमान हालात मे कांग्रेस के लिये महत्वपूर्ण शख्सियत बन चुके है। तभी राजस्थान मे अगर कांग्रेस बहुमत मे रही तो वो बाकी तीन साल ओर मुख्यमंत्री पद पर बने रहेगे। सत्ता व संगठन के लिये पायलट के ऊपर गहलोत को तरजीह मिलती ही रहेगी।

अशफ़ाक कायमखानी 

(लेखक राजनीतिक विश्लेषक है)


 

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