ब्यावर: मुस्लिम होने के बाद भी अधिकारी नहीं बना रहे हैं अल्पसंख्यक प्रमाण पत्र !


अजमेर। बुधवार को राजस्थान चीता मेहरात (काठात ) महासभा का एक प्रतिनिधिमंडल महासभा के संरक्षक प्रो जलालुद्दीन काठात एवं अल्पसंख्यक जिला अध्यक्ष कांग्रेस मेहमूद खान के नेतृत्व में अजमेर जिला कलक्टर प्रकाश राजपुरोहित से मिला।

प्रतिनिधिमंडल ने जिलाधीश को ब्यावर व मसूदा उपखण्ड अधिकारियो की शिकायत करते हुए इनपर कार्यवाही कि माँग की क्योकि दोनों उपखण्ड में मुस्लिम धर्म मानने वालें चीता -मेहरात (काठात )समुदाय के लोगों को मांगने पर भी मुस्लिम- अल्पसंख्यक का प्रमाणपत्र नहीं दिया जा रहा हैं। पिछले दिनों काफी प्रमाण पत्र जारी हुए लेकिन अब अचानक फिर रोक दिये हैं जिससे इस समुदाय में भारी रोष हैं।

प्रतिनिधि मण्डल का कहना है कि राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग, राज्य अल्पसंख्यक आयोग, संभागीय आयुक्त, जिला कलक्टर के आदेशों की अनदेखी कर स्थानीय अधिकारी मनमर्जी से संविधान व राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग अधिनियम- 1992 की विभिन्न धाराओं का उलंघन कर रहें हैं जो अल्पसंख्यकों को उनको हकों से वंचित करने का संस्थानिक अपराध हैं। समय -समय पर जो नियम उपनियम बनते हैं उनकी पालना करना प्रशासन का दायित्व हैं लेकिन इस समुदाय के लोग शपत पत्र दें रहे हैं फिर भी घोर अनदेखी की जा रही हैं। इस लापरवाही पर प्रतिनिधिमंडल ने 07 दिन का समय दिया हैं नहीं तो भारी प्रोटेस्ट किया जाएगा।

प्रतिनिधि मंडल ने कहा कि एक तरफ राजस्थान के माननीय मुख्यमंत्री और मुख्यसचिव अल्पसंख्यकों के लिये योजनाए लागू कर रहें उस पर अजमेर के अधिकारी विपरीत काम कर रहें हैं जिससे सरकार की छवि भी धूमिल हो रही हैं। यदि समस्या का स्थाई समाधान नहीं निकाला जाता हैं तो सड़को पर आंदोलन होग़ा जिसकी सम्पूर्ण ज़िम्मेदारी जिला और उपखण्ड की होंगी।

प्रतिनिधी मंडल में अध्यक्ष सिकंदर चीता, इस्माइल खान, एस के मस्ताना, उस्मान चीता, रोशन काठात, रमेश खान, शब्बीर चीता, मुराद खान, सरदारा खान, बहादुर खान, महबूब सरपंच, पप्पू काठात कर्बला, सुलैमान खान, सद्दाम काठात, सिद्दीक़ काठात, शकरूद्दीन, साजन काठात, मदारी खान अशरफ काठात, सलीम काठात, साबीर काठात रमजान फौजी, प्रो जलालुद्दीन काठात शामिल थे।

राजस्थान के अजमेर, भीलवाड़ा, पाली और राजसमंद समेत कुछ और जिलों में चीता, मेहरात (काठात) समुदाय के लोग निवास करते हैं, माना जाता है कि राजस्थान में इनकी तादाद 10 लाख से ज्यादा है. इनका ताल्लुक चौहान राजाओं से रहा है और इन्होंने करीब सात सौ साल पहले इस्लाम की तीन प्रथाओं मुर्दों को दफनाना (गाड़ना) , जिबह (हलाल मांस खाना), और खतना करवाना को अपना लिया था जिसका यह आज भी पालना करते हैं.

राजस्थान चीता मेहरात (काठात) महासभा के संरक्षक और इतिहास के एसोसिएट प्रोफेसर जलालुद्दीन काठात ने बताया कि ब्यावर के आस पास का इलाका मगरा मेरवाड़ा कहलाता है. अंग्रेजों के शासन काल में यह पूरा इलाका अजमेर मेरवाड़ा कहलाता था जिसकी राजधानी ब्यावर रहा है.

प्रोफेसर जलालुद्दीन काठात ने बताया कि इस इलाके में चीता, मेहरात (काठात) बिरादरी के लोग रहते हैं जो सदियों से मुस्लिम धर्मावलंबी हैं. हमारे पूर्वज हरराज जी काठा ने 1393 ईस्वी में इस्लाम धर्म अपना लिया था तब से हम लोग इस्लाम धर्म का पालन करते आ रहे हैं. लेकिन कालांतर में कुछ परिस्थितियोंवश कुछ लोग वापस हिन्दू धर्म को मानने लग गए लेकिन एक बड़ा तबका अब भी इस्लाम धर्म को ही मानता है.

लेकिन इस क्षेत्र के लोगों को पिछले कुछ समय से एक परेशानी का सामना करना पढ़ रहा है.

भारत के संविधान के अनुसार इस्लाम, सिख, ईसाई, बौद्ध, पारसी और जैन धर्म के लोगों को अल्पसंख्यक का दर्जा दिया गया है और उनके लिए राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग और राज्य अल्पसंख्यक आयोग का गठन भी किया गया है जो की एक संवैधानिक संस्था है. राज्य सरकार और केंद्र सरकार की अल्पसंख्यकों के लिए बनाई गई योजनाओं का लाभ लेने के लिए सक्षम अधिकारी द्वारा बनाए गए अल्पसंख्यक प्रमाण पत्र की आवश्यकता होती है. यह सक्षम अधिकारी तहसीलदार, उपजिला कलेक्टर या जिला कलेक्टर हो सकता है. लेकिन इस्लाम धर्म के मानने वाले चीता मेहरात (काठात) जाति के मुस्लिम लोग जब अल्पसंख्यक प्रमाण पत्र बनवाने के लिए आवेदन करते हैं तो वो नहीं बनाया जा रहा है.

प्रोफेसर जलालुद्दीन ने बताया कि अधिकारियों से इसका कारण पूछने पर यह बताया जाता है कि चीता मेहरात (काठात) ओबीसी (अन्य पिछड़ा वर्ग) में आते हैं इसलिए इनका अल्पसंख्यक प्रमाण पत्र नहीं बन सकता है.

प्रोफेसर काठात कहते है कि ओबीसी का प्रमाण पत्र जाति के आधार पर बनता है ना की धर्म के आधार पर. राजस्थान में मुस्लिम समुदाय की और भी कई जातियां ओबीसी में आती हैं उनको अल्पसंख्यक प्रमाण पत्र बनवाने में कभी कोई परेशानी नहीं आती है. लेकिन सिर्फ चीता, मेहरात (काठात) जाति के लोगों को ओबीसी का बहाना बना कर गुमराह करते हुए अल्पसंख्यक प्रमाण पत्र नहीं बनाया जा रहा है.

प्रोफेसर काठात ने बताया कि 2013 में हमने राज्य अल्पसंख्यक आयोग में एक वाद दायर किया था जिस पर ब्यावर क्षेत्र के सभी 6 उपखंड अधिकारीयों को बुलाकर आयोग के तत्कालीन चेयरमैन माहिर आज़ाद ने यह फैसला दिया था कि चीता मेहरात (काठात) जाति के जो लोग इस्लाम धर्म को मानते हैं और अगर वो शपथ पत्र के साथ अल्पसंख्यक प्रमाण पत्र के लिए आवेदन करते हैं तो उनके प्रमाण पत्र बना दिए जाएं.

प्रोफेसर काठात कहते हैं कि इस बात में कोई शक नहीं है कि चीता, मेहरात (काठात) चौहान वंशीय हैं और हमारे पूर्वज पृथ्वीराज चौहान रहे हैं लेकिन उसी वंश के हरराज जी काठा द्वारा सन 1393 ईस्वी में इस्लाम धर्म अपना लिया गया था. मेहरात में कुछ लोग हिंदू भी है, लेकिन जो शपथ पत्र देकर खुद को मुस्लिम बता रहा है और जो अल्पसंख्यक प्रमाण पत्र लेना चाहता है उसको तो प्रमाण पत्र दिया जाना चाहिए. कुछ हिंदूवादी संगठनों के लोग और चीता मेहरात समुदाय के वो लोग जिन्होंने इस्लाम धर्म को छोड़कर वापस हिन्दू धर्म अपना लिया है सिर्फ वो लोग ही इसका विरोध करते है. अधिकारी भी सिर्फ मौखिक रूप से ही अल्पसंख्यक प्रमाण पत्र बनाने से मना करते हैं लिखित में कोई कुछ नही दे रहा है.

प्रोफेसर काठात ने बताया कि जब हमने अल्पसंख्यक मामलात मंत्री सालेह मोहम्मद को यह परेशानी बताई तो उनके कहने पर कुछ दिन तो अधिकारीयों ने प्रमाण पत्र जारी किए लेकिन हिंदूवादी संगठनों द्वारा विरोध करने पर प्रमाण पत्र जारी करना बंद कर दिया. कुछ दिन बाद प्रमाण पत्र जारी करने वाले उपखंड अधिकारी का तबादला हो गया और नए आने वाले अधिकारी ने भी प्रमाण पत्र नहीं बनाए.

प्रोफेसर काठात कहते हैं कि अल्पसंख्यक आयोग अपने आप में एक कोर्ट है और उसका फैसला भी अधिकारी नहीं मान रहे हैं, अब हम जल्दी ही इस मामले को हाईकोर्ट में लेकर जायेंगे.

उन्होंने बताया कि मसूदा विधानसभा के विधायक राकेश पारीक ने भी इस मामले में संज्ञान लेकर उपखंड अधिकारी को प्रमाण पत्र जारी करने के लिए कहा है लेकिन जैसे ही प्रमाण पत्र जारी किया जाएगा हिन्दू वादी संगठनों के लोग विरोध में आकर खड़े हो जायेंगे और उसको रुकवा देंगे.

प्रोफेसर काठात कहते हैं कि जब भारत के संविधान ने हमे माइनॉरिटी का दर्जा दिया है तो फिर क्यों हमें उसका लाभ लेने से रोका जा रहा है. हमारा समाज बरसों से अरावली पर्वतमालाओं की उबड़ खाबड़ जमीन पर निवास कर रहा है, यहाँ उपजाऊ जमीन नहीं है. हमारे लोग सेना के अन्दर ज्यादा जाते है. अब तक हमारी समाज के 24 जवान सेना में इस देश की मिटटी की हिफाजत करते हुए शहीद हो चुके है और यहाँ अधिकारी हमें एक सर्टिफिकेट बनाने के लिए भी परेशान कर रहे है.

उन्होंने बताया कि मेहरात (काठात) बिरादरी को आधार मानते हुए ही सरकार ने मसूदा ब्लॉक को मिनोरिटी जोन भी घोषित किया है. वहां मसूदा विधानसभा क्षेत्र में पचास हजार वोट सिर्फ मेहरात (काठात) बिरादरी के लोगों के है . मसूदा में राजकीय अल्पसंख्यक आवासीय विद्यालय भी खोला जा रहा है जिसमें अल्पसंख्यक समुदाय के बच्चों को कक्षा 6 से 12 तक निशुल्क शिक्षा दी जाएगी. जिस आधार पर माइनॉरिटी जोन घोषित किया गया है उन्हीं लोगों को अधिकारी माइनॉरिटी का सर्टिफिकेट देने में मना कर रहे हैं.

प्रोफेसर काठात ने बताया कि चीता, मेहरात (काठात) समुदाय की करीब 10 लाख की आबादी में से सिर्फ 2-3 लाख लोग ही ऐसे है जो हिन्दू धर्म को मानते है बाकि 70 प्रतिशत लोग इस्लाम धर्म को मानने वाले हैं.

ऐसा भी नहीं है की कहीं पर भी माइनॉरिटी सर्टिफिकेट नहीं बनाए जा रहे हो, पाली जिले के रायपुर, राजसमंद जिले के भीम, भीलवाड़ा जिले के बिजय नगर, अजमेर जिले के पीसांगन, श्रीनगर और नसीराबाद उपखंड में चीता,मेहरात काठात समुदाय के लोगों के माइनोरिटी सर्टिफिकेट बनाये जा रहे हैं लेकिन अजमेर के ब्यावर और मसूदा उपखण्ड में ही सर्टिफिकेट नहीं बनाए जा रहे हैं.


 

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