क्या राजनैतिक मैदान में हनुमान बेनीवाल से हार गयीं हैं वसुंधरा राजे सिंधिया !


राजस्थान में 21 अक्टूबर को दो विधानसभा क्षेत्रों खींवसर और मण्डावा में उपचुनाव होने हैं.दोनों ही जगह  2018 में हुए विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को हार का सामना करना पड़ा था .दिसंबर में हुए विधानसभा चुनावों में मंडावाऔर खींवसर से क्रमशः BJP और आर एल  पी के विधायक बने थे.

खींवसर से राष्ट्रीय लोकतांत्रिक पार्टी  के संयोजक हनुमान बेनीवाल ने  चुनाव जीता था. उसके बाद मई में हुए लोकसभा चुनावों में हनुमान बेनीवाल ने नागौर से चुनाव लड़ा और संसद पहुँचे ऐसा ही मंडावा में भी हुआ था. जहां नरेंद्र खींचड़ ने चुनाव जीता था !

खींवसर और मण्डावा में होने वाले विधानसभा उपचुनाव में कांग्रेस ने दोनों ही जगह है अपने प्रत्याशियों की घोषणा कर दी है! खींवसर से हरेन्द्र मिर्धा को टिकट दिया गया है!वही मंडावा से रीटा चौधरी को टिकट मिला है!

उल्लेखनीय है कि उपचुनाव में है हनुमान बेनीवाल की राष्ट्रीय लोकतांत्रिक पार्टी और भारतीय जनता पार्टी ने गठबंधन किया है!जिसमें RLP की तरफ़ से हनुमान बेनीवाल के भाई नारायण बेनीवाल को खींवसर से उम्मीदवार बनाया गया है!

लोकसभा चुनाव में राष्ट्रीय लोकतांत्रिक पार्टी और भारतीय जनता पार्टी ने गठबंधन किया था जिसमें नागौर की सीट हनुमान बेनीवाल के लिए भाजपा ने छोड़ दी थी.

जब लोक सभा चुनावों में RLP और BJP का गठबंधन हुआ था तब राजनीतिक विश्लेषकों का कहना था कि इस गठबंधन में सूबे की पूर्व मुख्यमंत्री भाजपा नेता वसुंधरा राजे की नहीं चली.लगभग पैंतीस साल से राजस्थान भाजपा में एक छात्र राज करने वाली वसुंधरा राजे की राजनैतिक को हार का उस समय खुल कर आभास हुआ जब चार दिन पहले खींवसर और मंडावा के उपचुनाव में भी RLP और भाजपा ने गठबंधन कर लिया.

इस गठबंधन से पहले हनुमान बेनीवाल ने कहा था कि अगर गठबंधन हो गया तो पता चल जाएगा कि वसुंधरा कि कितनी चली. हनुमान बेनीवाल और राज्य के बीच राजनीतिक लड़ाई पिछले दस सालों से है जब वसुंधरा राजे ने हनुमान बेनीवाल को पार्टी से निकाल दिया था!

वसुंधरा राजे और मोदी -शाह के बीच है लड़ाई 

जब से केंद्र में नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली भाजपा की सरकार आयी है तब से मोदी के खेमे के न माने जाने वाले भाजपा नेताओं को एक एक  कर के किनारे लगाने की मुहिम चालू है.

हालाँकि वसुंधरा राजे ने इस मामले में संघर्ष ज़रूर किया जब विधानसभा चुनाव से पहले राजस्थान भाजपा के अध्यक्ष के लिए वसुंधरा ने अमित शाह और नरेंद्र मोदी को उनकी पसंद मानने पर मजबूर कर दिया था! लेकिन 20 19 में हुए लोकसभा चुनाव में मिले आपार  जनादेश के बाद मज़बूत हुए नरेंद्र मोदी और अमित शाह के सामने इस बार वसुंधरा राजे घुटने टेकती हुई दिखाई दी! 

 

पहले तो राजस्थान भाजपा अध्यक्ष के लिए राज्य के विरोधी खेमे के माने जाने वाले और संघ की पृष्ठभूमि के  सतीश पूनिया को राजस्थान भाजपा की कमान दी गई और उसके बाद उनके धुर विरोधी हनुमान बेनीवाल की पार्टी राष्ट्रीय लोकतांत्रिक पार्टी के साथ गठबंधन कर लिया गया ! तो क्या अब यह मान लिया जाए कि राजस्थान में वसुंधरा राजे की अब वेसी हैसियत नहीं रही.

हालाँकि वसुंधरा राजे को फाइट बैक करने वाली माना जाता है ! और यह माना जाता है कि वसुंधरा राजे कभी भी आलाकमान को अपने फ़ैसले मनवाने पर मजबूर कर सकती हैं!

क्योंकि पैतीस साल तक राजस्थान भाजपा में अपना सिक्का चलाने वाली  राजे ने राजस्थान में इतनी सियासी ज़मीन तो मज़बूत कर ही ली होगी कि वो कभी भी भाजपा के 2 टुकड़े कर सकती हैं ! बस यही एक डर है जो राजस्थान में वसुंधरा राजे के विरोधी खेमे के लिए सिरदर्द बना हुआ है.

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