उदयपुर : आमागढ़ के बाद अब पूंजा भील की मूर्ति पर भगवा झण्डा लगाने पर विवाद !

9 अगस्त को विश्व आदिवासी दिवस पर उदयपुर शहर के अजीत चौराहे पर पूंजा भील की मूर्ति पर आदिवासी लोग एकत्रित हुए, वो इस बात का विरोध कर रहे थे कि बीजेपी के लोगों ने पुंजा भील की मूर्ति पर भगवा झंडा लगा दिया जो की उनकी संस्कृति और ऐतिहासिक मान्यता के अनुरूप नहीं है.

राजस्थान के दक्षिणी भाग जिसमें विशेष रूप से उदयपुर, डूंगरपुर और बांसवाड़ा जिले आते हैं, वहां पुंजा भील को एक नायक के तौर पर माना जाता है .भील जाति राजस्थान के आदिवासी समुदाय में एक महत्वपूर्ण स्थान रखती है !

हाल के दिनों में राजस्थान में इस तरह का ये दूसरा मामला सामने आया है .कुछ दिन पहले जयपुर शहर में स्थित आमागढ़ की पहाड़ियों पर आदिवासी समुदाय की मीणा जाति के आम्बामाता मंदिर पर कुछ लोगों ने भगवा झंडा लगा दिया था . जिसे आदिवासी विधायक रामकेश मीणा ने वहां से हटा दिया था .

विधायक मीणा ने कहना था की “ यह आरएसएस का षड्यंत्र है , ये लोग हम पर हिन्दू धर्म थोपना चाहते हैं ’’

कौन हैं पुंजा भील ?

राजस्थान के इतिहास में पुंजा भील का एक विशिष्ट स्थान है. वो दक्षिण राजस्थान में भील आदिवासी क्षेत्र के राजा थे. जहाँ आदिवासी समुदाय का राजा होता था. उस क्षेत्र पाल कहा जाता था और पुंजा भील भी एक पाल राजा थे !

दिल्ली विश्वविध्यालय में इतिहास विषय के असिस्टंट प्रोफ़ेसर जितेन्द्र पृथ्वी मीणा कहते हैं “सोलहवीं शताब्दी में जब मुग़ल सल्तनत का फैलाव राजस्थान (जिसे उसे समय राजपुताना कहा जाता था ) में हुआ तो ज्यादातर राजपूत राजाओं ने मुगलों के सामने घुटने टेक दिए थे,उस समय मेवाड़ रियासत ने मुग़लों से संघर्ष किया. पुंजा भील उस समय “ भोमट’’ पाल के राजा थे .

महाराणा प्रताप ने पुंजा भील से मुगलों के खिलाफ युद्ध के लिए एक राजनैतिक और सैन्य गठबंधन किया था .1576 ईसवी में हल्दीघाटी के स्थान पर हुई इस ऐतिहासिक लड़ाई में पुंजा भील के नेतृत्व में भील आर्मी मेवाड़ रियासत की तरफ से लड़ी थी, लड़ाई हुई और यह युद्ध अनिर्णीत रहा”

वो आगे कहते हैं “ हल्दीघाटी के युद्ध के बाद पुंजा भील को राणा की उपाधि दी गई , और इतिहास में पुंजा भील “ राणा पुंजा’’ के नाम से जाने गए !”

भगवा झंडा लगाने से क्या हासिल करने की कोशिश है ?

पिछले कुछ सालों में ऐतिहासिक महत्व के स्थानों पर भगवा झंडा लगाने की घटनाएं तेज़ी से बढ़ी हैं और इसमें एक बात समान नज़र आती है की ऐसा आदिवासी समुदाय से जुड़े मंदिरों किलों और उनके ऐतिहासिक व्यक्तित्वों के साथ ही ऐसा अधिक हो रहा है .

प्रोफेसर मीणा कहते हैं “ आज़ादी के बाद से ही आदिवासी और दलित नायकों की पहचान को समाप्त करने का षड्यंत्र किया जा रहा है , ऐसा पूरा देश में भगवाकरण करके किया गया और राजस्थान के मामले में ऐतिहासिक नायकों का “राजपूतीकरण” करने की कोशिश की गई”

वो आगे कहते हैं “ कुछ लोग यह दिखाना चाहते हैं की राजस्थान का मतलब राजपूताना है और यहाँ मौजूद अन्य जातियों का इसमें कोई विशेष योगदान नहीं है, बल्कि इससे भी आगे बढ़कर बीजेपी आरएसएस के लोग यह सन्देश देना चाहते हैं कि सबसे बड़ा कोई झंडा है तो वो भगवा झंडा है, तिरंगे झंडे की इनके सामने कोई हैसियत नहीं है”

वो आगे जोड़ते हुए कहते हैं “ यह लोग एक योजनाबद्ध तरीक़े से काम कर रहे हैं, और 2023 के चुनाव के मद्देनज़र आदिवासी समुदाय का हिन्दुकरण कर सांप्रदायिक माहौल बनाने की कोशिश कर रहे हैं”

भगवा झंडा लगाने से टकराव की स्थिति

पुंजा भील की मूर्ति पर भगवा झंडा लगाने के बाद से ही आदिवासी भील और बीजेपी कार्यकर्ता आमने सामने हैं . अखिल भारतीय आदिवासी महासभा ने मामले में बीजेपी कार्यकर्ताओं पर मुक़दमा दर्ज करवाया है.

दक्षिणी राजस्थान में भारतीय ट्राइबल्स पार्टी का उदय बीजेपी और कांग्रेस के लिए सर दर्द साबित हो रहा है . पुंजा भील जैसे आदिवासी नायकों पर अधिकार की लड़ाई में और टकराहट की आशंका है .

पिछले साल उदयपुर के सलूम्बर में भी हुआ था ऐसा विवाद

पिछले साल उदयपुर के सलूम्बर में भी इसी तरह की घटना हुईं थी जहां सोनारपहाड़ी पर सोनारमाता मन्दिर पर भगवा ध्वज को लेकर विवाद हों गया था.

डूंगरपुर ज़िले की चौरासी विधानसभा से भारतीय ट्राइबल्स पार्टी के विधायक राजकुमार रौत कहते हैं कि “ सलूम्बर में भी ऐसा ही किया गया था सोनार की पहाड़ियों पर आदिवासी भील समुदाय के दायमा गोत्र का लाल झण्डा हर साल लगाया जाता है”

“लेकिन हिन्दूवादी संगठनों में वहाँ भगवा झण्डा फहरा दिया, हमने प्रशासन की मदद से वहाँ हमारा लाल झण्डा लगाया लेकिन हमारे कई लोगों पर भगवा झण्डे के अपमान में मुक़दमे दर्ज किए”

सलूम्बर के सोनार माता मंदिर हुई घटना में भाजपा ने भारतीय ट्राइबल्स पार्टी पर आरोप लगाया था की उन्होने वहाँ भगवा झण्डे हटा कर अपनी पार्टी के झण्डे लगा दिए.

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