अशोक गहलोत बने मुख्यमंत्री,जानिए उनका कैसा है सियासी सफ़र

राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत को सिर्फ राजस्थान का गांधी ही नही राजनीति का जादूगर भी कहा जाता है। उनके पिता पेशे से जादूगर थे और गांव ठानियों के गली नुक्कड़ ओर शहर में चाय की दुकानों पर ये बात कही सुनी जाती है की अपने पिता के पैशे का असर है की अशोक गहलोत जनता पर जादू का असर रखते हैं,कांग्रेस के विरोधी भी अशोक गहलोत के गुनगान गाते हैं।

इसे जादू से कम नहीं कह सकते कि राजस्थान जैसे प्रदेश में जहां की राजनीति लगातार क्षत्रियों, जाटों और ब्राह्मणों के प्रभाव में रही हो, वहां जाति से माली और ख़ानदानी पेशे से जादूगर के बेटे ने अपने आपको कांग्रेस के सबसे बड़े नेता के रूप में स्थापित कर लिया.

वो 1998 में ऐसे समय पहली बार मुख्यमंत्री बने, जब प्रदेश में ताक़तवर जाट और प्रभावशाली ब्राह्मण नेताओं का बोलबाला था.

कहा जाता है की कांग्रेस जब एक नाज़ुक दौर से गुज़र रही थी तब कार्यकर्ताओं में अशोक गहलोत एक उम्मीद के रूप में जिंदा थे।

घर पर बुजुर्गों की मौजूदगी घर बनाकर रखती है,लगता है की हर मुश्किल से लड़ लिया जाएगा,लेकिन एक वक्त में कांग्रेस से बुजुर्गों का सहारा हट सा गया था,आज अशोक गहलोत को इस दुःखी घर का सहारा माना जाता है

पूर्व मुख्यमंत्री को कई बार चौड़ा रास्ता जयपुर की उस चाय की दुकान पर देखा गया है जहां शाम ढलने या सुबह का सूरज उगने के साथ अशोक गहलोत को कड़क चाय की चाह खींच लाती थी।

हर नेता अपने आप को ज़मीन का नेता बताता है,लेकिन अशोक गहलोत के रहन सहन,पहनाव, खान पान और बोलचाल उन्हें ज़मीन का नेता दिखाता है।
कहा जाता है की अशोक गहलोत पांच का पारले जी बिस्किट थड़ी की चाय में डूबा कर पी जाते थे।

अशोक गहलोत को गांधीवादी नेता भी कहा जाता है। गहलोत के अशोक गहलोत बनने की कहानी एक अशोक नाम के छात्र नेता से शुरू हुई जिसने जोधपुर के कॉलेज में अपने भविष्य की पटकथा को लिखना शुरू किया।

जहां अमित शाह को जोड़ तोड़ का मास्टर माना जाता है वहीं अशोक गहलोत उसी स्कूल के हेडमास्टर कहे जाते हैं।

राजस्थान कांग्रेस में सीपी जोशी एक बड़ा नाम था लेकिन सीपी जोशी का गहलोत विरोध उन्हें बर्बादी की कगार पर ले गया और आज ये नेता अपने आप मे गुमसुम सा देखा जाता है।

मुख्यमंत्री रहते हुए अशोक गहलोत ने अपने कार्यकाल के अंतिम वर्षों में जितनी योजनाएं जारी की उन्हें पूरा करते करते सरकार चली गई और वसुंधरा राजे ने अपने कार्यकाल में अशोक गहलोत के सपनों को कुछ हद तक पूरा कर किया

जब भी आप जयपुर या राजस्थान के किसी हिस्से में सफर कर रहे हों तब अपने सहयात्री से एक बार अशोक गहलोत का नाम ले लीजिएगा,ऐसा लगता है की कोई अपना है।

इस बार राजस्थान में कांग्रेस जीत रही है और लड़ाई मुख्यमंत्री के पद को लेकर है। लगने लगा था की अशोक गहलोत अब दिल्ली चले गए हैं और सचिन पायलट कमान सम्भालेंगे लेकिन राजस्थान की जनता का मन चुनावी सभाओं में देखा गया।जब अशोक गहलोत माइक सम्भालते तो पांच मिनट जनता केखामोश हो जाने का इंतज़ार होता।

राजनीति की इस लड़ाई में उलझने से आम आदमी बहुत बचता है लेकिन जब अशोक गहलोत सा कोई खास आम आदमी सा नज़र आए तो लगता है की उम्मीद अभी बाकि है।

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