गाँधी की हत्या पर नेहरू का बिना तैयारी दिया वो भाषण आज भी प्रासंगिक है!

गांधी की हत्या के बाद, नेहरू का वह भाषण, जो उन्होंने बिना किसी तैयारी के दिया था, इसको पढ़ना इसलिए अहम है कि आप समझेंगे कि आज के समय यह कितना प्रासंगिक है…क्यों 1948 में गांधी की हत्या के बाद कोई हिंसा नहीं हुई…और आज….

दोस्तों और कामरेड्स (साथियों),
हमारे जीवन से प्रकाश चला गया है और हर ओर अंधेरा हो गया है। मैं नहीं जानता कि आपसे क्या कहूं और कैसे कहूं। हमारे प्यारे नेता, जिनको हम बापू कहते थे, राष्ट्रपिता…नहीं रहे…बल्कि शायद मैं ग़लत कह रहा हूं। फिर भी, हम अब उन्हें वैसे कभी देख नहीं पाएंगे, जैसे हम इतने वर्षों से देखते रहे। हम उनके पास जा कर सलाह और शांति नहीं पा सकेंगे और यह सिर्फ मेरे लिए ही नहीं, करोड़ों देशवासियों के लिए एक भयानक आघात है। और आघात को मेरी या किसी और की सलाह से कम कर पाना असंभव है।

मैंने कहा, प्रकाश चला गया है और मैं यह कहते हुए भी ग़लत था। क्योंकि जो प्रकाश उन्होंने इस देश को दिखाया, वह कोई साधारण प्रकाश नहीं था। इस रोशनी ने न केवल देश को कई साल से राह दिखाई है, बल्कि आने वाले कई सालों तक यह रोशनी हमको राह दिखाएगी और हज़ार साल बाद इस रोशनी को देश और दुनिया देखेंगे और असंख्य दिलों को यह राहत देगी। क्योंकि यह प्रकाश महज हमारा अतीत नहीं है, यह हमारा जीवन, शाश्वत सत्य है और हमें सही रास्ता दिखाते हुए, ग़लतियों से बचाते हुए, इस प्राचीन देश को आज़ादी की ओर लाया है।

यह सब ऐसे समय हुआ है, जब वह और बहुत कुछ कर सकते थे। हम यह सोच भी नहीं सकते थे कि वह कभी ग़ैर ज़रूरी हो सकते थे या उनका काम पूरा हो सकता था। लेकिन अब जब हमारे सामने तमाम और मुश्किलें हैं; उनका जाना हमारे लिए सबसे असहनीय झटका है।

एक मनोरोगी ने उनकी हत्या कर दी है, मैं ऐसे व्यक्ति को मनोरोगी ही कह सकता हूं, जिसने ऐसा किया और अभी भी इस देश में पिछले कुछ वर्षों और महीनों में ढेर सारा ज़हर फैलाया गया है, जिसने लोगों के मस्तिष्क को प्रभावित किया है। हमको इस ज़हर से लड़ना होगा, इसको जड़ से खत्म करना होगा और उन सारी बुराईयों का सामना करना होगा, जो हमें घेर रही हैं। लेकिन मनोरोगियों की तरह नहीं, गलत तरीकों से नहीं; बल्कि वैसे, जैसे बापू ने हमको सिखाया था।

आज जो सबसे पहली बात हमको याद रखनी है, वह यह है कि हम में से किसी को भी इसलिए कुछ अभद्रता नहीं करनी है, क्योंकि हम गुस्से में हैं। हमको मज़बूत और दृढ़ लोगों की तरह बर्ताव करना है, ऐसे लोग जो आस-पास की सारी बुराईयों के खिलाफ दृढ़ता से खड़े हैं, अपने महान नेता की सीखों पर अमल करने के लिए, याद रखते हुए कि जैसा मुझे भरोसा है कि उनकी आत्मा हमको देख रही है और बापू की आत्मा को हमको हिंसा करते देखने से ज़्य़ादा कुछ भी दुखी नहीं करेगा

इसलिए हमको हिंसा नहीं करनी है। लेकिन इसका अर्थ यह नहीं है कि हम कमज़ोर हो जाएं, बल्कि हमको एक हो कर मज़बूत होना होगा और सामने खड़ी सारी मुश्किलों का सामना करना होगा। हमको साथ खड़े होना होगा और सारी छोटी समस्याओं और विवादों को इस महान विपत्ति के समय खत्म कर देना होगा। बड़ी विपत्ति, यह स्मरण कराने का प्रतीक होती है कि हम उन छोटी समस्याओं को भूल जाएं, जिन पर हम बहुत विचार करते हैं। उनका निधन हमको जीवन के बड़े मसायल याद दिला रहा है, वह जो सत्य है और अगर हमको वह याद हैं तो यह ही भारत के लिए बेहतर रास्ता होगा….

(समाप्त)

नेहरू के सचिव एम ओ मथाई लिखते हैं, ‘गांधी की पार्थिव देह देख कर नेहरू दुख और निराशा से कांपने लगे…वे मुझसे बोले कि मैं उनके साथ ही रहूं…वो कार में बैठे तो मैंने उनसे कुछ कहने की कोशिश की…लेकिन उन्होंने अपना हाथ मेरे हाथ पर रख कर तुरंत मुझे रोक दिया. वो गहरे विचार में थे….मैं उनके साथ ऑल इंडिया रेडियो के स्टूडियो के अंदर तक गया….जैसे ही माइक के ऊपर हरी बत्ती जली, नेहरू के मुंह से पहले शब्द निकले, The Light has gone out of our lives….

(अनुवाद -मयंक सक्सेना)

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