कन्या भ्रूण हत्या

एक अंधेरी कोठर जिसमे, पल रही है नव आगंतुक।

आद्र है तनमन आद्र है सब कुछ, जाल शिराओं का फैला है।।

चारों और अंधेरा फैला, सबकुछ मैला मैला सा है।

खुद की धड़कन सुन नही पाती, फिर भी धक धक आती है।।

एक दिन क्षणभर सिहर उठी वो, जब एक परीक्षण करवाया।

गर्भपात का नाम सुना तो, हिर्दय उसका घबराया।।

उस दुनियां से ऊब गयी थी वो, चाहती थी इस दुनियां में आना।

लेकिन अद्रशयी इस दुनियां से उसे पड़ेगा अब जाना।। पूछो उसकी जननी से जब थी वो ऐसे सोती।

सोच लिया होता उसकी जननी ने ऐसा क्या वो इस दुनिया में होती।।

वो जननी नही हो सकती जिसने ऐसा कदम उठाया है।

उस नोनिहाल को दुनियां से पहले गमन मार्ग दिखलाया है।।

हमे सोच बदलनी होगी अपनी ओर ऐसा कृत्य करना है।

मानव जाति अमर रहे और स्त्री को सम्मान मिले।।

भूल गए हम स्त्री ने मानव को सफलता के मार्ग है दिखलाये।

इतिहास साक्षी है उन स्म्रति का वो विजय दिवस थे जब आये।।

प्रण हमे ये लेना है इस दुष्कर्म से दूर ही रहना है।

वो दिन दूर नही फिर जब हम नव भारत का आधार रखेंगे।।

उस प्रेम मिलन पर वारी होकर हिन्दू-मुस्लिम साथ चलेंगे।

वो नोनिहाल इन मजहबों की सब बाधाओ से दूर रहेगी।।

काट के बंधन घृणाओ के मिलकर सबके साथ चलेगी।

तब जाकर वो सच्ची मातृ भक्त कहलाएगी।

इस दुनियां में प्रेम-प्रेम वो प्रेम-प्रेम फैलाएगी।।

-इनायत अली

निवाई टोंक राजस्थान

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