कानपुर के एक गांव में गैंगस्टर विकास दूबे और उसके गिरोह के हाथों शहीद सभी आठ पुलिसकर्मियों को हार्दिक श्रद्धांजलि और गंभीर रूप से घायल सात पुलिस वालों के लिए हमारी संवेदनाएं।
यह लोमहर्षक कांड उत्तर प्रदेश में राजनीतिक संरक्षण में फल-फूल रहे आपराधिक गिरोहों के दुःसाहस का एक और प्रमाण तो है ही, पुलिस की लापरवाही और त्रुटिपूर्ण कार्यप्रणाली पर एक गंभीर टिप्पणी भी है।
आमतौर पर रात के वक़्त किसी भी घर में पुलिस के छापे और घरतलाशी की इजाज़त नहीं होती। छोटे-मोटे अपराधियों के मामले में पुलिस यह छूट ले लिया करती है, लेकिन उग्रवादियों और बड़े अपराधियों के मामले में ऐसा करना घातक भी हो सकता है।
उग्रवादियों या दुर्दांत अपराधियों के रात में किसी घर या गांव में छुपने की सूचना मिलने के बाद होना यह चाहिए कि पर्याप्त संख्या में पुलिस बल को एकत्र कर रात में गांव की घेराबंदी कर ली जाय और सुबह होते ही गांव या घर की तलाशी शुरू कर दी जाय।कानपुर की पुलिस ने भी ऐसा किया होता तो अंधेरे का लाभ उठाकर अपराधी पुलिस का इतना बड़ा नुकसान नहीं कर सकते थे।
यह जानकर और भी हैरानी हुई कि इस जोख़िम से भरे अभियान में पुलिसकर्मियों ने हेलमेट और बुलेटप्रूफ जैकेट का इस्तेमाल नहीं किया था। इस अभियान को पुलिस ने शायद बहुत हल्के में ले लिया जिसकी वजह से अपराधी उसपर भारी पड़ गए।
कल रात की इस घटना में हमने बहुत कुछ खोया है, लेकिन इतना खोकर भी भविष्य के लिए सबक लिया जा सकें तो यह हमारे दिवंगत पुलिसकर्मियों के प्रति सार्थक श्रद्धांजलि होगी !
– ध्रुव गुप्त
( लेखक रिटायर्ड आईपीएस अधिकारी है)