जनमानस विशेष

सुशांत, लोग कह रहे हैं कि तुम एक खुशमिजाज़ इंसान थे, फिर ऐसा कैसे हो सकता है !

By admin

June 14, 2020

प्रिय सुशांत,

मुझे नहीं पता कि पूरा सच क्या है, लेकिन ये बताया जा रहा है कि तुम अवसाद में थे और तुमने अपनी ज़िंदगी ख़त्म करने का फैसला किया।

तुम्हारे जाने की ख़बर सुनकर मैं फूट-फूटकर रोई। सिर्फ इसलिए नहीं की तुम मेरे पसंदीदा कलाकारों में से एक थे, इसलिए भी नहीं की तुम्हारी फिल्म एमएसडी देखने के लिए मैं अपने दोस्त से लड़कर गई थी और इसलिए भी नहीं की तुम्हारी स्माइल मुझे बेहद ख़ुबसूरत लगती थी, बल्कि इसलिए की मैं पूरी तरह नहीं तो शायद कुछ हद तक समझ सकती हूँ की तुम पर क्या गुज़र रही होगी।

जिन परिस्थितियों से अभी मैं गुज़र रही हूँ, उन्हीं के चलते शायद तुम्हारी मनःस्थिति कुछ हद तक पढ़ सकती हूँ। ये दुनिया बहुत क्रूर है, सब बोलना चाहते हैं लेकिन सुनना कोई नहीं चाहता।

मैं समझ सकती हूँ कि अपने चारों तरफ़ घनघोर अँधेरा और मानसिक तनाव के बावजूद तुम क्यों नहीं बोल पाए होंगे। इसलिए कि तुम्हारे-मेरे और हमारे जैसे कई लोग जो हर दिन अपने आप से लड़ रहेे हैं उन्हें सुनने और समझने वाला यहाँ कोई नहीं है।

तुम अगर कहोगे कि मैं मानसिक रूप से अस्वस्थ हूँ तो कुछ लोग हँंसेंगें, कहेंगे कि ऐसा कुछ होता ही नहीं ये सब चोचलेबाजी है, कुछ तुम्हें राह चलते लोगों को पत्थर मारते या अपने ही बाल नोचते इमेजिन कर लेंगे, कुछ कह देंगे कि- “अरे! इतनी टेंशन किस बात की, अच्छी कोमेडी मूवी देखो सब अपने आप ठीक हो जाएगा” और कुछ ऐसे बचेंगे जिन्हें तुम्हारे होने न होने से कोई फर्क नहीं पड़ेगा।

सुशांत, लोग कह रहे हैं कि तुम एक खुशमिजाज़ इंसान थे, फिर ऐसा कैसे हो सकता है?

मुझे लोग कहते हैं कि तुम तो पूरे दिन मुस्कुराती रहती हो, लगता तो नहीं कि तुम अवसाद में हो।

अब हम किसी को कैसे बताऐं कि हर चेहरा-चाहे वो मुस्कुराता हो या उदास, उसके पीछे अनगिनत कहानियाँ होती हैं, संघर्ष होते हैं, निराशा होती है।

हम कभी कबार इस हद तक भीतर से भर जाते हैं कि उसे बाहर निकाले बिना जीना मुमकिन नहीं होता। उस समय लगता है कि कोई सुन ले, समझ ले, सहला ले और कह दे कि-“जो भी तुम्हारे साथ हो रहा है उसके लिए तुम ज़िम्मेदार नहीं हो, तुम प्यार करने योग्य हो।” कोई गले से लगाकर कह दे कि-“तुमने बहुत झेला है और आगे भी झेल पाओगे।” कोई कह दे कि-” सब ठीक होगा, तुम बहुमूल्य हो, तुम अकेले नहीं हो।”

कोई ऐसा हो जो रात के दो बजे भी तुम्हारी एंंग्ज़ाइटीज़ को सुनने और महसूस करने के लिए तैयार हो। मेरे पास ऐसा कोई है लेकिन अफसोस कि तुम्हारे पास शायद ऐसा कोई नहीं था और इस असंवेदनशील दुनिया को तुम क्या बताते जो सोचती है कि अवसाद जैसा कुछ होता ही नहीं और ख़ुद को ख़त्म कर लेना बुज़दिली है।

जब से मैंने अपने अवसाद जैसी स्थिति के बारे में लिखा है तबसे कई लोगों के रवैये में ऐसा बदलाव पाया है जैसे मैं अब सामान्य इंसान नहीं रही।

मैं समझ सकती हूँ तुम्हारी घुटन, चिढ़न, और बेबसी। तुम लड़े सुशांत। तुम कमज़ोर नहीं थे। मैं भी लड़ रही हूँ और मैं भी कतई कमज़ोर नहीं हूँ। कमज़ोर है तो ये दुनिया जो हमारी हकीकत सुनने से कतराती है, हमें अकेला छोड़ देती है अपने आप से संघर्ष करने के लिए।

तुम जिंदगी की चुनौतियों से लड़े, ओल्मपियाड से लेकिन एआईट्रीपलई तक को जीता! तुममें हिम्मत थी कि तुम इंजीनियरिंग छोड़ अपना सपना, अपना पैशन पूरा करने गए। तुमने कई यादगार फिल्में की, मेरे जैसे कई लोगों के दिलों में जगह बनाई।

काश मैं तुम्हें और तुम्हारे भीतर के कोलाहल को सुन पाती, काश कोई और सुन पाता। मैं भी कई बार हताश होकर उस कगार तक पहुँच हूँ जहाँ जाकर ज़िंदगी और मौत के बीच पल भर की दूरी रह जाती है लेकिन हर बार मेरे साथ कोई था जिसने मुझे पीछे खींच लिया।

काश कोई तुम्हें भी खींच लेता। हम सभी रूठे ख़ाबों को मना लेते, कटी पतंगों को भी थाम लेते। तुम्हारी ही फिल्म का गाना है न कि -“क्यों सोचना है जाना कहाँ? जाएं वहीं ले जाए जहाँ, बेसब्रियाँ…”।

मुझे नहीं पता था कि तुम्हारी बेसब्री तुम्हें हमसे दूर ले जाएगी। थोड़ा सा सब्र रखना था दोस्त, शायद सब ठीक होता, नहीं भी होता तो उसके ठीक होने की उम्मीद बाकी रहती। हम मिलकर इस दुनिया को संवेदनशील बनाने की मुहिम चलाते।

मैं अब भी रो रही हूँ। क्या करूँ आँसू नहीं रूक रहे। लेकिन मैं रोऊँगी क्योंकि रोना कमज़ोरी नहीं, बात करना कमज़ोरी नहीं, चीखकर अपनी हालत सबको बता देना भी कमज़ोरी नहीं और चुप रहना भी कमज़ोरी नहीं।

अगर कुछ कमज़ोरी है तो वो सब देखकर भी अनदेखा कर देना, सब जानते हुए भी अनजान बने रहना, जिसे प्यार की ज़रूरत हो उसे नफ़रत और हिकारत देना।

तुम प्यार हो सुशांत, हमेशा रहोगे। तुम चले गए लेकिन मैं ताउम्र ये कोशिश करूँगी की तुम्हारी तरह किसी और को ना जाना पड़े।

तुम ज़िंदा हो, तुम्हारे काम में, तुम्हारी कहानियों में, तुम्हारे सपनों में, तुम्हारे संघर्षों में जो हममें से कोई नहीं जानता। तुम जहाँ भी हो, बस तुम्हें सुकून नसीब हो। तुम्हारे जीते जी नहीं कह सकी, लेकिन अब कह रही हूँ-” मैं तुम्हारे साथ हूँ, सब ठीक होगा।”

अलविदा मेरे दोस्त, सुशांत!

– ख़ुशबू शर्मा