गहलोत ने अपनी छवि के विपरीत पायलट पर गम्भीर आरोप लगाये, क्या दबाव में है मुख्यमंत्री ?


मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने प्रैस से मुखातिब होते हुये अपने स्वभाव के विपरीत पूर्व प्रदेश अध्यक्ष सचिन पायलट पर जमकर निजी हमला बोलते हुये उन पर गम्भीर आरोपो की झड़ी लगाते हुये उन्होंने पायलट को निकम्मा व नकारा तक बताते हुये अपरोक्ष रुप से अपने उस राष्ट्रीय नेतृत्व की काबिलियत पर भी गम्भीर सवाल खड़ा कर दिया जिन्होंने तत्तकालीन समय मे राजस्थान मे रसातल मे पहुंच चुकी कांग्रेस को फिर से उभारने के लिये सचिन पायलट को अध्यक्ष बनाकर दिल्ली से राजस्थान भेजा था।

शाम होते होते मुख्यमंत्री के आरोपो का जवाब सचिन पायलट ने तो कोई खास नही दिया लेकिन गहलोत सरकार के दो पूर्व मंत्री विश्वेंद्र सिंह व हेमाराम चोधरी ने वीडियो जारी करके मुख्यमंत्री गहलोत को जवाब देते हुये घेरते नजर आये।

आज गहलोत-पायलट खेमे मे एक दुसरे पर लगे आरोप-प्रत्यारोप के बाद लगने लगा है कि गुटो मे बंटी कांग्रेस मे आरोप-प्रत्यारोप का दौर अब लम्बा चल सकता है। जिसमे एक दुसरे के अनेक राज ओर फास हो सकते है।

मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के नेतृत्व मे 2003 व 2008 का राजस्थान मे आम विधानसभा चुनाव लड़े जाने पर कांग्रेस राज्य मे 156 से 56 व 96 से 21 सीट पर सिमट जाने के बाद जब 2018 का आम विधानसभा चुनाव तत्तकालीन प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष सचिन पायलट के नेतृत्व मे लड़ा गया तो राज्य की जनता ने वसुंधरा राजे सरकार को उखाड़ कर कांग्रेस को बहुमत देते हुये सरकार बनाने का मार्ग प्रशस्त किया।

लेकिन जिन मतदाताओं ने सचिन पायलट को मुख्यमंत्री के रुप मे देखकर कांग्रेस को बहुमत दिया वो सब के तब अपने आपको ठगे हुये महसूस करने लगे जब मुख्यमंत्री के नाम पर सचिन पायलट की जगह दिल्ली स्थित कांग्रेस कोकस ने अशोक गहलोत के नाम पर मोहर लगाकर उन्हें जनता पर थोपा गया।

मोजुदा समय मे मची राजनीतिक उथल-फूथल के दौर मे कांग्रेस के दिल्ली स्थित शीर्ष नेतृत्व का गहलोत को पूरा आशिर्वाद मिलना दिख रहा है।

ऐसे घटनाटक्रम के मध्य कांग्रेस विधायकों मे से कुछ विधायकों के सचिन पायलट के नेतृत्व मे राजस्थान सरकार के नेतृत्व परिवर्तन की मांग के साथ बगावती तेवर अपनाने के बाद सरकार के अस्तित्व पर गम्भीर सवाल खड़ा हो गया है।

सचिन पायलट के नेतृत्व मे कांग्रेस विधायकों के बगावती तेवर अपनाने के बाद मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने घटनाटक्रम मे भाजपा को भी खींच लेने के बाद अब गहलोत व भाजपा नेता भी एक दुसरे पर हमलावर होने के बाद हालात दिन ब दिन पैचीदा होते जा रहे है।

राजस्थान मे आज तक किसी भी विधायक पर आरोप लगने पर आरोपो की जांच सीआईडी-सीबी करती आई है। पहली दफा विधायकों पर लगे आरोपो की शिकायत गहलोत खेमे द्वारा ऐसीबी व एसओजी मे देकर उसके दर्ज होने पर दोनो ऐजेन्सी जांच कर रही है।

दुसरी तरफ राजस्थान सरकार की रिक्वेस्ट पर सीबीआई एक मामले मे जांच करने कांग्रेस विधायक कृष्णा पूनीया के जयपुर स्थित सरकारी आवास पर पहुंचने के बाद राज्य के ग्रह विभाग द्वारा नोटिफिकेशन जारी करके स्टेट की बीना इजाजत प्रदेश मे सीबीआई के दखल नही करने का कहा गया है। एवं पूर्व मे जारी रिक्वेस्ट को भी खारिज कर देने का नोटिफिकेशन मे कहा गया है। जिसके बाद स्टेट व केन्द्र के मध्य टकराव बढने के आसार नजर आने लगे है। राजनीतिक समीक्षक प्रदेश मे उक्त हालात मे राष्ट्रपति शासन लगने के आसार जताने लगे है।

मुख्यमंत्री अशोक गहलोत की कांग्रेस के शीर्ष नेतृत्व को साधे रखने की कला के कारण कांग्रेस के विधायक बडे धड़े के रुप मे वर्तमान परिस्थिति मे उनके साथ नजर आ रहे है।

वरना राजस्थान का इतिहास बताता है कि तत्तकालीन समय मे जगन्नाथ पहाड़ियां को मुख्यमंत्रीपद से हटाने का फैसला होने के बाद उनके साथ दिल्ली बडी तादाद मे कांग्रेस विधायक गये थे। पर पहाड़िया के शीर्ष नेतृत्व से मिलने पर उनके हटाने के स्पष्ट सकेत मिलते ही सभी विधायक उनका गधे के सीर से सींग गायब होने की तरह साथ छोड़कर उनसे छिटक गये थे। यही गहलोत के साथ भविष्य मे हो सकता है कि ज्योही पद से हटे ओर विधायक छिटके।

कांग्रेस के राष्ट्रीय नेताओं ने अशोक गहलोत का बतौर मुख्यमंत्री चेहरा सामने रखकर कभी भी राजस्थान मे विधानसभा चुनाव नही लड़ा बल्कि इसके विपरीत उन्होंने 1998 मे मदेरणा का व 2008 मे सीपी जौशी एवं 2018 मे सचिन पायलट का चेहरा दिखाने की कोशिश करते हुये नजर आने पर जनता ने कांग्रेस को बहुमत दिया।

इसके विपरीत 2003 व 2013 मे अशोक गहलोत के मुख्यमंत्री रहते उनके नेतृत्व मे विधानसभा चुनाव लड़ा ओर कांग्रेस ओधे मुहं आकर गिरी। गहलोत के मुख्यमंत्री कार्यकाल मे अगर आगे चुनाव हुये तो समीक्षक कांग्रेस की मुश्किल से पांच छ सीट आना मान रहे है।

मुख्यमंत्री अशोक गहलोत की उनके समर्थक व कुछ कांग्रेस नेताओं ने उनकी सेक्यूलर छवि प्रदर्शित करने की भरपूर कोशिशे की है। लेकिन उनके तीनो दफा बने मुख्यमंत्री कार्यकाल पर नजर दोड़ाये तो ऐसा होना प्रतीत नही होता है।

मुख्यमंत्री के अलावा कुछ महिनो के लिये शिवचरण माथुर मंत्रिमंडल मे अशोक गहलोत ग्रहमंत्री रहे तब भारत भर मे लागू काला कानून “टाडा” के दुरुपयोग के खिलाफ आवाजे उठ रही थी तभी गहलोत ने ग्रहमंत्री की हैसियत से राजस्थान मे पहली गिरफ्तारी के आदेश दिये थे।

उसके बाद दूसरे कार्यकाल मे जोधपुर के बालेसर मे माली-मुस्लिम झगड़े मे मुसलमानों के खिलाफ एक तरफा कार्यवाही हुई थी। जो खासतौर पर अंग्रेजी अखबारों मे खूब छपा भी था।

इसी के साथ भरतपुर के गोपालगढ़ मे मस्जिद मे मोजूद नमाजियों को पुलिस की गोली से भूना गया था। कार्यवाही के नाम पर मुसलमानों को ही आरोपी बना दिया गया था।

राजस्थान मे जारी मदरसा शिक्षा व सरकारी स्कूल मे जारी उर्दू शिक्षा को कमजोर से कमजोर किया गया। मदरसा पैरा टीचर्स को मात्र एक दफा भाजपा सरकार ने स्थायी किया था। लेकिन बार बार लगातार मांग उठने के बावजूद गहलोत ने अपने तीनो मुख्यमंत्री कार्यकाल मे स्थायी तक नही किया है।

प्रत्येक पीएससी व सीएससी स्तर पर यूनानी चिकित्सक लगाने के वादे के बावजूद गहलोत ने इस तरफ कोई ध्यान नही दिया। गहलोत के तीसरी दफा मुख्यमंत्री बनने मे एक महाधिवक्ता व अनेक अतिरिक्त महाधिवक्ता मनोनयन किये है। जिनमे एक भी मुस्लिम का मनोनयन नही हुवा।

इसी तरह मंत्रीमंडल मे शाले मोहम्मद को एक मात्र मंत्री बनाया जिसको मेन स्ट्रीम वाले विभाग देने के बजाय अल्पसंख्यक मामलात विभाग तक सिमित रखा गया। मुख्यमंत्री के सेक्यूलर छवि बनाने के विपरीत उनकी असल छवि के पक्ष मे लिये कुछ उदाहरण ही गिनाये गये है।

गहलोत ने उम्र के हिसाब से सचिन पायलट को राजनीतिक पद मिलने पर कटाक्ष करते हुये अपने को पहली दफा सांसद का टिकट मिलने की उम्र भूल गये।

सचिन पायलट के पिता राजेश पायलट ने तो राजनीति मे रहकर सेवा की थी पर गहलोत ने अपना राजनीतिक असर का उपयोग कर लोकसभा चुनाव मे पुत्र वैभव को जोधपुर की जनता पर थोपने से सिद्धांत: बचना चाहिए था। लेकिन उन्होंने पूत्र को जोरजबरदस्ती चुनाव लड़वाया जिस पर चुनाव के बाद वर्किंग कमेटी की बैठक मे राहुल गांधी ने सवाल भी उठाया था।

कुल मिलाकर यह है कि मुख्यमंत्री अशोक गहलोत की नीति रही है कि मै नही तो कांग्रेस मे कोई उपर ओर नही के चलते ही आज कांग्रेस विधायक दल मे बगावत हुई है।

गहलोत जिस तरह अपने पार्टी के विधायकों व नेताओं के खिलाफ अंग्रेज राज के कानून 124-ए (देश द्रोह) का उपयोग करके कांग्रेस के घोषणा पत्र एवं जेएनयू के छात्र नेता कन्हैया कुमार व उनके साथियों पर केन्द्र सरकार द्वारा 124-ए का इस्तेमाल करने के खिलाफ उतरी कांग्रेस की एक तरह से हवा निकाल कर रख दी है। अगर केन्द्र सरकार 124-ए का उपयोग करे तो गलत और गहलोत उपयोग करे तो सही? पिछले कुछ दिनो से गहलोत को राजनीतिक समीक्षक काफी दवाब मे होना मानकर चल रहे है।

अशफ़ाक कायमखानी
( लेखक स्वतंत्र पत्रकार एवं राजनीतिक विश्लेषक है)

 

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