आख़िर क्यों राष्ट्रीय राजनीति में राजस्थान का मुस्लिम समुदाय अब तक पिछड़ा हुआ है !


भारत की राष्ट्रीय राजनीति मे यूपी-बिहार व दक्षिण भारत के मुस्लिम समुदाय के मुकाबले राजस्थान का मुस्लिम समुदाय हमेशा से फिसड्डी साबित होता रहा है।

राजस्थान की आबादी मे तकरीबन नौ-दस फीसद का आंकड़ा दर्शाने वाले मुस्लिम समुदाय की राष्ट्रीय राजनीति मे कोई खास वोईस व अहमियत ना रहने के अनेक कारण रहे होंगे लेकिन सबसे महत्वपूर्ण कारण यह रहा कि यहां के मुस्लिम समुदाय ने दलो व नेताओं को पलटी मारने का स्वाद नही चखाने से उनकी अहमियत का अहसास अभी तक नही हो पाया है।

मरहूम केप्टेन अय्यूब खा व डा.अबरार अहमद जैसे राजस्थान के मुस्लिम नेता जैसे तैसे करके एक एक दफा केन्द्र सरकार मे राज्य मंत्री का पद तो पाया लेकिन दिल्ली की राजनीति मे वो अपने पैर लम्बे समय तक जमा नही पाये।

उनके बाद राजस्थान के पूर्व विधायक जुबैर खान कांग्रेस संगठन मे राष्ट्रीय सचिव जरूर बने हुये हैं। उनके अतिरिक्त पक्ष-विपक्ष की राष्ट्रीय स्तर की राजनीति मे राजस्थान के मुस्लिम समुदाय का पेरा बिना कुछ लिखे अभी कोरा ही नजर आ रहा है।

हालांकि राजस्थान विधानसभा मे करीब पांच प्रतिशत मुस्लिम विधायक मोजूद है। लेकिन एक भी विधायक की जबान मुस्लिम समुदाय के साथ हो रहे सामाजिक-राजनैतिक व सियासी भेदभाव के खिलाफ मुखर होकर उठना सम्भव नही हो पाया है। समुदाय के साथ इंसाफ करने की बात उठते ही उनके दिलो मे अजीब सा खोफ व माथे पर सीकन नजर आने लगती है।

दिल्ली से राजस्थान दूर नही होने के बावजूद राष्ट्रीय राजनीति मे यहां के मुस्लिम का किसी भी रुप मे प्रभाव होने का तो दिगर सवाल है बल्कि चर्चा तक नही होने के कुछ लोग अलग कारण दर्शाते है।

अव्वल तो बताते है कि दिल्ली स्थित शैक्षणिक संस्थानों मे राजस्थान के मुस्लिम स्टूडेंट्स की गैरमौजूदगी होना। दूजा कारण यह बताते है कि राजस्थान के सेकुलर मुस्लिम समुदाय मे कोई खास धार्मिक तालीम नही होने के कारण प्रदेश मे स्थित मस्जिद व मदरसो मे इमाम व मुदर्रिस अन्य प्रदेशो के लोगो का लम्बे समय से होते चले आना है। जिनमे से अधिकांश ने धर्म की आड मे खोफ मे रखकर दिल्ली की राजनीति से हमेशा से चुपचाप दूर रखने की कोशिशें की है।
इनके अतिरिक्त भारतीय ब्यूरोक्रेसी मे राजस्थान के मुस्लिम समुदाय की भागीदारी लगभग ना के बराबर होना भी बडा कारण है। सभी तरह की पोलिसी बनने व तय होने मे ब्यूरोक्रेसी का अहम किरदार होता है।
कुल मिलाकर यह है कि राजस्थान मे नो-दस प्रतिशत मुस्लिम आबादी होने के बावजूद भारत की राष्ट्रीय राजनीति के पटल पर राजस्थान के मुस्लिम समुदाय की भूमिका की कभी चर्चा तक क्यों नही होती है। उक्त सवाल पर मंथन करके सवाल का जवाब तलाश करके उस पर काम शुरू करना जरुर चाहिए।
अशफ़ाक कायमखानी

(लेखक स्वतंत्र पत्रकार और राजनीतिक विश्लेषक हैं)


 

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