राजस्थान के विभिन्न जनसंगठनों ने मुख्यमंत्री अशोक गहलोत को पत्र लिखकर उनसे आग्रह किया है कि वो कर्नाटक के मुख्यमंत्री बी. एस. येदुरप्पा से बात कर, इच्छुक राजस्थान के मज़दूरों की कर्नाटक सेे लौटने की पैरवी करें।
जनसंगठनों ने पत्र में लिखा है कि,
जैसा कि आपको विदित होगा, दिनांक 5 मई 2020 को कर्नाटक के मुख्यमंत्री येडुरप्पा की सरकार ने कर्नाटक में फँसे प्रवासी मज़दूरों और अन्य लोगों के लिए चलायी जा रही विशेष श्रमिक ट्रेन सुविधा के लिए केंद्र सरकार से अपना आवेदन वापस ले लिए है और सूचित किया की 6 मई से कर्नाटक को विशेष श्रमिक ट्रेन नहीं उपलब्ध करवाई जाये।
अंतर-राज्यीय मज़दूर इन्ही ट्रेन से अपने घर वापस लौटते । यह रिपोर्ट किया गया है कि मुख्य मंत्री ने यह फ़ैसला बिल्डरों के एक समूह (CEDRI) के साथ बैठक के बाद लिया।
लाक्डाउन को अब तीसरी बार 17 मई, 2020 तक बढ़ाया जा चुका है। इसके बाद भी क्या खुलेगा और क्या नहीं, ख़ास तौर पर यातायात, उसकी कोई गैरंटी नहीं है ।
मज़दूर मानसिक रूप से भी बहुत असहाय महसूस कर रहे हैं, न खाने की निश्चितता, न घर की, ना पानी की । प्रशासन द्वारा राहत भी बहुत कम मिली है।
इस अनिश्चितता और घबराहट के दौर में उनका अपने घर जा पाना, अपने क़रीबी लोगों के साथ समय गुज़ार पाना, आत्मविश्वास और मनोबल बढ़ाने के लिए बहुत ज़रूरी है।
2011 के सेन्संस के मुताबिक़ कर्नाटक में 4.63 लाख अंतर- राज्यीय मज़दूर पंजीकृत हैं जिनकी संख्या इन दस वर्षों की अवधि में एक चौथा और भी बढ़ गयी होगी।
प्रवासी मज़दूर उत्तर प्रदेश, बिहार, बेंगॉल, तमिलनाडू, आंध्र प्रदेश, महाराष्ट्र, असम और राजस्थान तक से कई लाखों मज़दूर औद्योगिक क्षेत्रों में काम के लिए आते और अब तो खेती में भी, ईंट भट्टे, खदानों, मसत्यपालन, घरेलू काम, निर्माण इत्यादि में।
हमारा अनुमान है कि राजस्थानी मजदूरों भी वहां लाख से अधिक होंगे ।
1 मई, 2020 को, लाक्डाउन के 40 दिन पूरे होने पर केंद्र सरकार द्वारा विशेष श्रमिक ट्रेन की शुरुवात की गई, जिससे जगह जगह फँसे हुए मजदूरों और अन्य तबके के लोग अपने घर वापस जा सके ।
इसके चलते देश भर में लाखों मज़दूरों ने अपना रेजिस्ट्रेशन करवाया और कुछ ने महंगे टिकट भी ख़ुद ख़रीदे। अब कर्नाटक सरकार का रेल सुविधा रद्द करना मज़दूरों पर एक गहरा आघात है।
आपने लॉक डाउन के दौरान प्रवासी मज़दूरों के अधिकारों और उन्हें घर भेजने में अगुवाई की है।
राजस्थान सरकार दिनांक 29 अप्रैल को ही प्रवासी मज़दूरों और अन्य फँसे हुए लोगों को घर भेजने के निर्देश निकालने वाली पहले सरकार थी।
मज़दूरों को मुफ्त भेजने का काम भी सरहनीय है।
कर्नाटक के मुख्यमंत्री को समझना होगा की मजदूरों को ज़बरदस्ती रखना और काम करवाना, बंधुआ मजदूरी की परिभाषा में आता है।
उनका निर्णय देश के संविधान की अनुछेद 19 (1) (d), (भारत में कहीं भी घुमने, फिरने की आजादी) व अनुछेद 14 (कानून के सामने बराबरी) का हनन है ।
और भी अच्छा रहेगा अगर आप,
· कर्नाटक के मुख्यमंत्री, बी. एस. येदुरप्पा से फ़ोन व ईमेल से सम्पर्क करें और उनसे कहें की वह मज़दूरों को उनकी इच्छा के विरुद्ध न रखें और न ही उनसे काम करवाएँ। इस भय और अनिश्चितता के दौर में उन्हें ज़बरदस्ती अपने घर वालों से इतनी कठिन परिस्थितियों में दूर रखना अमानवीय है ।
· अन्य राज्य, जैसे, बिहार, झारखण्ड, मध्य प्रदेश, गुजरात, पश्चिम बंगाल के मुख्य मंत्री को आप फ़ोन लगायी और कहे की वे भी बी एस येदुरप्पा से बात कर के मक्स्दूरों के हित में निर्णय लें ।
गुजारिश है की आप आज ही इस पर कुछ कार्यवाही करेंगे।
मुख्यमंत्री को पत्र लिखने वालों में निम्नलिखित संगठन शामिल हैं-
· पीयूसीएल राजस्थान – कविता श्रीवास्तव, अनंत भटनागर, भंवर लाल कुमावत (पप्पू),
· सेंटर फॉर इक्विटी स्टडीज, राजस्थान – कोमल श्रीवास्तव, हेमंत मोहनपुरिया, बाबूलाल व नवीन महिच
· निर्माण एवं जनरल मजदूर यूनियन – हरिकेश बुगालिया
· मजदूर किसान शक्ति संगठन – निखिल डे
· राजस्थान असंगठित मजदूर यूनियन – मुकेश गोस्वामी
· सूचना का अधिकार मंच – कमल टांक
· भारत ज्ञान विज्ञानं समिति – अनिल
· हेल्पिंग हैंड्स जयपुर – नईम रब्बानी, डॉ राशिद हुसैन, नुरुल अबसार, वकार अहमद,
· जमाते इस्लामी हिन्द राजस्थान -मो. नाजिमुद्दीन
· पिंक सिटी हज एंड एजुकेशन वेलफेयर सोसाइटी – अब्दुल सलाम जौहर
· एन ए पी एम राजस्थान – अखिल चौधरी