मानवाधिकार संगठन NCHRO ने जारी की फैक्ट फाइंडिंग रिपोर्ट “करौली के बाद..?”

 

राजस्थान के करौली में 2 अप्रैल को हुई सांप्रदायिक हिंसा के कारणों का पता लगाने और वहां के हालात का जायज़ा लेने के लिए 12 अप्रैल को मानव अधिकार संगठन नेशनल कॉन्फेडरेशन ऑफ ह्यूमन राइट्स आर्गेनाइजेशन (एनसीएचआरओ) के एक जांच दल ने करौली का दौरा किया. जांच दल में एडवोकेट अंसार इन्दोरी (राष्ट्रीय सचिव),
रुखसार अहमद (पत्रकार दिल्ली), एडवोकेट आशुतोष मिश्रा( दिल्ली प्रदेश उपाध्यक्ष), शोएब अहमद (दिल्ली प्रदेश कमिटी सदस्य) और रुखसार (सामजिक कार्यकर्ता) शामिल रहे.

मंगलवार 20 अप्रैल को पिंक सिटी प्रेस क्लब जयपुर में प्रेस कांफ्रेंस कर मानवाधिकार संगठन NCHRO ने करौली सांप्रदायिक हिंसा पर एक तथ्यात्मक जांच रिपोर्ट जारी की. प्रेस कांफ्रेंस में संगठन के प्रदेश अध्यक्ष टी. सी.राहुल, हाईकोर्ट अधिवक्ता अखिल चौधरी और एडवोकेट अंसार इंदौरी शामिल हुए.

मानवाधिकार संगठन ने अपनी रिपोर्ट में बताया कि करौली में जिस तरीके से हिंसा हुई है यदि स्थानीय प्रशासन चाहता तो इतनी बड़ी घटना को होने से रोक सकता था. प्रशासन की लापरवाही और कुछ संगठनों की साजिश के तहत करौली में यह हालात बने.

जांच दल ने पीड़ित पक्षों से मुलाकात करके हिंसा से संबंधित जानकारी और तथ्य इकट्ठा किए. साथ ही करौली के एसपी और शहर के कई लोगों से भी जांच दल ने बात की. प्राथमिक तौर पर जांच दल के सामने जो तथ्य उभर कर सामने आए हैं वो इस तरफ इशारा करते हैं की बगैर परमिशन के भगवा रैली में डीजे बजाया गया और उस डीजे में भड़काऊ गाने चलाए गए और रैली जब मस्जिद के सामने पहुंची तब भड़काऊ नारे लगाए गए. जिसके फलस्वरूप हिंसा हुई। यदि स्थानीय प्रशासन चाहता तो घटना इस तरीके का बड़ा विकराल रूप धारण नहीं करती. प्रदेश के डीजीपी के निर्देश का पूरी तरह पालन नहीं किया गया, यदि स्थानीय प्रशासन चाहता तो उचित प्रबंध कर के हिंसा होने से रोक सकता था. परिणाम स्वरूप शांति की दुश्मन ताकतों को साम्प्रदायिक षड्यंत्र रचने का पूरा मौका मिला.

करौली की ऐतिहासिक, धार्मिक और सांस्कृतिक पृष्ठभूमि

करौली की स्थापना 955 ई. के आसपास राजा विजय पाल ने की थी जिनके बारे में कहा जाता है कि वे भगवान कृष्ण के वंशज थे. एक समय जैसलमेर व करौली राज्यों पर जादौन राज परिवारों का शासन रहा है. 1818 में करौली राजपूताना एजेंसी का हिस्सा बना. 1947 में भारत की आजादी के बाद यहां के शासक महाराज गणेश पाल देव ने भारत का हिस्सा बनने का निश्चय किया. 7 अप्रैल 1949 में करौली भारत में शामिल हुआ और राजस्थान राज्य का हिस्सा बना. करौली का सिटी पेलेस राजस्थान के प्रमुख पर्यटक स्थलों में से एक है. मदन मोहन जी का मंदिर देश-विदेश में बसे श्रृद्धालुओं के बीच बहुत लोकप्रिय है. अपने ऐतिहासिक किलों और मंदिरों के लिए मशहूर करौली दर्शनीय स्थल है. करौली उपखंड शिक्षा के क्षेत्र में सरकारी एवं निजी शैक्षणिक संस्थान स्थित है जो शिक्षा के क्षेत्र में अपना कर्तव्य बखूबी निभा रहे है. करौली में स्कूली शिक्षा,कॉलेज शिक्षा,तकनिकी शिक्षा आदि के संस्थान स्थित है. करौली में चमड़े की जूतियां, चांदी के गहने और स्टील का सामान बहुत मशहूर है. इन्हें खरीदने के लिए सिटी पेलेस के पास के बाजार में जा सकते हैं. इसके अलावा मिट्टी से बनी भगवान की मूर्तियां और दूध की मिठाइयां भी लोगों को खूब पसंद आती हैं. इस बाजार में कोई बड़ा सामान मिलना मुश्किल है लेकिन स्थानीय लोगों द्वारा बनाए जाने वाली लाख और कांच की चूड़ियां खरीदी जा सकती हैं. लकड़ी के खिलौने सैलानियों को लुभाते हैं. करौली की जनता में कोई आपसी दुश्मनी नहीं है. करौली में 50 साल पहले से मुहर्रम और गणगौर के जुलूस निकलते रहे हैं. करौली की जनसंख्या क़रीब एक लाख के क़रीब है और मुस्लिम आबादी 20 प्रतिशत के क़रीब. वर्ष 2006 में एक दंगा हुआ था और एक 2012-13 के आसपास दंगा हुआ था. करौली ज़िला हमेशा से भाईचारे की मिसाल रहा है, यहाँ हिंदू-मुस्लिम भाईचारा बनाकर रहे हैं.

करौली में 2 अप्रैल को हुई घटना का ब्यौरा

जांच दल ने अपनी रिपोर्ट में बताया कि विश्व हिन्दू परिषद ,बजरंग दल और अन्य हिंदूवादी संगठनों ने हिंदू नव वर्ष नव संवत्सर के अवसर पर 2 अप्रेल को भगवा रैली का करौली में आयोजन किया था. इस रैली में शामिल होने के लिए इन संगठनों के पदाधिकारियों ने आसपास के गावों में पीले चावल भी बटवायें थे. 2 अप्रैल की शाम 4 बजे कलेक्ट्रेट सर्किल से रैली में शामिल करीब 200 बाइकों पर सवार 400 लोग रवाना हुए. बाइक रैली के आगे पिकअप में डीजे में आपत्तिजनक गाने चल रहे थे जिनमे टोपी वाला भी सर झुका के जय श्री राम बोलेगा… और हर घर भगवा छायेगा….. जैसे गाने चल रहे थे. रैली में शामिल लोग भी हिन्दुस्तान में रहना होगा वन्दे मातरम कहना होगा और जब मुल्ले काटे जाएंगे राम राम चिल्लायेंगे जैसे भड़काऊ नारे लगा रहे थे. रैली जब मुस्लिम इलाके में दाखिल हुई तो डीजे की आवाज़ और नारों का शोर तेज़ हो गया उसकी भाषा में इतनी उत्तेजना थी कि माहौल खराब हो गया. रैली का स्वागत होना चाहिए था, पर हिंसा हो गई। लोगों ने हथियार चलाए और अभद्र भाषा का प्रयोग किया, उससे पथराव शुरू हो गया.

पुलिस ने स्थिति को काबू कर लिया था. तब जुलूस निकालने वाले एक जगह जुटे और विरोध में कुछ दुकानों में आग लगा दी. 39 लोगों की दुकानें जला दी गई. 20-25 गरीबों के ठेले जला दिए गए. इसके बाद तुरंत कर्फ्यू लगा दिया गया.

पुलिस ने घटना के बाद कर्फ्यू का ऐलान किया तब तक उन्मादी भीड़ ने काफी जगह आगज़नी कर दी. नवरात्रि और रमजान को ध्यान में रखते हुए छूट दी गई थी. इस छूट में भी कुछ दुकानों में आग लगा दी गई. प्रदेश के पुलिस मुखिया के मुताबिक 80 लोगो की सम्पत्तियों को नुक्सान पहुंचाया गया. साथ ही पथराव और हिंसा में छह पुलिसकर्मियों सहित 22 लोग घायल हुए, जिनमें से पाँच को गंभीर चोट लगी. एक गंभीर घायल को जयपुर के एसएमएस अस्पताल में एडमिट करवाना पड़ा. फूटाकोट बाज़ार और हठवाड़ा बाज़ार में हुई तबाही में लगभग सवा दो करोड़ रुपए का आर्थिक नुक़सान हुआ. यह बाज़ार बेहद संकरी गलियों में बसे हैं, जहाँ दुकानें एक दूसरे के बेहद नज़दीक बनी हैं और भीड़भाड़ में गाड़ियों से निकलना भी आसान नहीं है. दुकानों में लाख की चूड़ियां जलने से दमकल भी आग को काबू नहीं कर पा रही थीं. साथ ही दुकानें इतनी नज़दीक थीं कि आग एक दुकान से दूसरी दुकान तक फैलती चली गई.

पुलिस अधीक्षक ने बताया कि डीजे गाड़ी से कथित तौर पर बजे विवादित गानों की जांच हो रही है. उन्होंने बताया कि आयोजकों के यात्रा निकाले जाने की कुछ शर्तें थीं, जैसे वहाँ डीजे की परमिशन नहीं थी लेकिन ऐसा हुआ. साथ ही ये भी शर्त थी कि क्रिमिनल बैकग्राउंड का कोई भी व्यक्ति यात्रा में नहीं होना चाहिए. इसके बावजूद कई आपराधिक प्रकरणो के लोग रैली में शामिल रहे.

घटना का ब्यौरा जो पीड़ितों ने जांच दल को बताया

तथ्यान्वेषण के दौरान जांच दल ने कई पीड़ितों से बातचीत की, हालांकि उपद्रव की वजह से हिंदू मुस्लिम दोनों पक्षों को काफी नुकसान झेलना पड़ा है परंतु सभी पीड़ितों से समय की कमी की वजह से मुलाकात नहीं हो पाई जिन पीड़ितों से चर्चा हुई उसके मुख्य अंश निम्न प्रकार है,

1. जांच दल ने एक पीड़ित,जिसका नाम अतीक अहमद है,से बात की. अतीक अहमद कन्डक्टरी का काम करते हैं. उनके दो बेटियां है जो मानसिक रूप से कमज़ोर है उन्होंने बताया की वे 2 अप्रेल को शाम करीब 6:30 बजे अपने घर पहुंच कर, नहा कर नमाज पढ़ने को जाने को ही थे कि पुलिस घर में घुसी जिसमे कई पुलिस वाले वर्दी में भी नहीं थे और आते ही उन्होंने भद्दी भद्दी गलियां देना शुरू कर दिया और घर के सब सदस्यों से मारपीट करने लगे. पुलिस मुझे पकड़ कर थाने ले गई. पुलिस ने घर पर भी और थाने में भी मेरी बुरी तरह पिटाई की.थाने ले जाकर इतना मारा कि मेरे हाथ की हड्डी तोड़ दी. वो बताते है की पुलिस ने उन्हें दो दिन अवैध हिरासत में रखा खाने के नाम पर सिर्फ एक रोटी दी और मांगने पर पानी पिलाया गया. पुलिस बार बार उन्हें पत्थर फेंकने का इलज़ाम कबूल करने का दबाव बना रही थी उन्होंने ने यह भी बताया कि घटनास्थल से मेरे घर की दूरी बहुत ज्यादा है इतनी दूर से पत्थर फेंकना सम्भव ही नहीं था. जांच दल के सदस्यों को उन्होंने शरीर में कई जगहों पर मारपीट की वजह से पड़े निशान भी दिखाए. अतीक अहमद बताते है की हिंसा होने के बाद उनके मोहल्ले के कई लोग डर कर उनके घर में शरण लिए हुए थे इसलिए शायद पुलिस ने उनको निशाना बनाया.

2. नौशीन अहमद, मतलूब अहमद की पत्नी है. पुलिस को मतलूब अहमद की तलाश है. उनके घर के सामने और आसपास पुलिस का पीला सेफ़्टी फ़ीता लगा हुआ है और आरोप हैं कि सड़क के इसी हिस्से पर मौजूद घरों की छतों से रैली में शामिल लोगों पर पथराव हुआ था. नौशीन अहमद ने बताया की “रैली में ज़ोर-ज़ोर से नारे लग रहे थे. टोपी वाला भी सिर झुकाकर एक दिन जय श्रीराम बोलेगा.“ ये नारे या गाने रैली में मौजूद एक डीजे गाड़ी पर बज रहे थे. मेरे शोहर तो उग्र हो रहे मुस्लिम युवकों को समझा रहे थे. नौशीन का आरोप है कि उनके पति को फँसाया जा रहा है. उनके मुताबिक़ उस दिन उनके पति तो घायलों की मदद कर रहे थे, उनका ख़ून साफ़ कर रहे थे. पुलिस ने मीडिया के दबाव में आकर उन्हें ही आरोपी बना दिया और उनको गिरफ्तार करने के लिए घर में दबिश देने लगी. एक दिन पुलिसवाले लेडिस पुलिस के साथ आये और जबरन घर में दाखिल हो गये. घर में तोड़फोड़ शुरू कर दी मुझे और मेरी ननद को लेडिस पुलिस ने पकड़ लिया और हमे थाने ले गये. वहां एक पुरुष पुलिस वाले ने मेरे मुँह पर मारा जिससे मेरी नाक से खून बहने लगा वो लगातार मेरे पति मतलूब के बारे में सवाल पूछ रहे थे और मुस्लिम समुदाय के बारे में गंदा गंदा बोल रहे थे. कुछ घंटो के बाद पानी से हमारा मुँह धुलवाकर और खून साफ़ करवा हमारे सभी रिश्तेदारों के नाम और पते लिखे और फिर हमें छोड़ दिया.

3. डीजे गाड़ी के मालिक सोनू प्रजापति ने एक समाचार एजेंसी को बताया की उस दिन यात्रा में शामिल लोग नाच रहे थे, जय श्रीराम का नारा लगा रहे थे और टोपी वाला गाना चल रहा था. प्रजापति ने बताया कि हिंदू समाज के एक नेता ने दो अप्रैल के लिए इस गाड़ी को 5,100 रुपए में बुक किया था. यात्रा से जुड़े कई लोग गिरफ़्तारी के डर से चुप हैं और उन्होंने अपना फ़ोन बंद कर दिया है. प्रजापति के साथ काम करने वाले रवींद्र पुनिया ने बताया कि गाड़ी में किसी ने अपना मोबाइल लगा दिया था, जिसमें गाने बज रहे थे. उन्हें गानों के बोल याद नहीं और वो कहते हैं कि गाड़ी से धार्मिक गाने चल रहे थे. दो अप्रैल की हिंसा में ये गाड़ी क्षतिग्रस्त हुई, जिससे सोनू प्रजापति को पाँच से छह लाख रुपए का नुक़सान हुआ. उस दिन सोनू और रवींद्र पत्थरों और लाठियों से बचने के लिए इसी गाड़ी के भीतर एक केबिन में छिप गए और पुलिस के आने के बाद ही वहाँ से निकले. अब उनकी गाड़ी कोतवाली थाने में खड़ी है.

4. ज़ाकिर खान की हेयर सेलून की दूकान थी हमलावरों ने पहले ज़ाकिर खान की दूकान में लूटमार की उसके दूकान के सामन लेकर चले गए उनके भतीजे की कपड़े की दूकान में लूटमार और तोड़फोड़ की गयी. अभी तक सरकार से कोई मुआवज़ा नहीं मिला है न ही कोई सरकारी कर्मचारी सर्वे के लिए आया अपनी लूटी पिटी दूकान के बारे में बताते हुए ज़ाकिर कह रहे थे की अब उसके सामने परिवार को पालने का संकट खड़ा हो गया है.

5. शाहिद खान ने जांच दल को बताया की मेरी दूकान हिंसा में जलाई गई. हम बवाल की खबर सुनके दूकान बंद करके चले गए थे। शहीद खान बताते है की उनके चाचा की दूकान और मकान को जलाया गया. शाहिद खान ने बताया की उनके भाई जफर की दूकान भी जलाई गए है. उन्होंने जांच दल को बताया की हमारी दुकानों को पहले लुटा गया फिर उनमे आग लगाई गई.

पुलिस कर्मी नेत्रेश शर्मा का मानवीय चेहरा और कर्तव्य निष्ठा

दो अप्रैल को नवरात्र के पहले दिन विनीता अग्रवाल अपनी ढाई साल की बेटी पीहू और महिला रिश्तेदारों के साथ फूटाकोट बाज़ार शॉपिंग के लिए गई थीं कि तभी वहाँ भगदड़ और आगज़नी शरू हो गई. विनीता एक घर में घुस गई, इसके बाद पुलिस आई और पुलिसकर्मी नेत्रेश शर्मा ने उनकी बेटी और उन्हे आग से बचा कर निकाला. उस दिन शाम को स्थानीय पत्रकार उमेश शर्मा की खींची वो तस्वीर वायरल हो गई. जिसमे पीहू को एक स्टोल में लपेटकर आग की लपटों से दूर भाग रहे थे. तस्वीर में थोड़ी ही दूर पीछे उनकी मां विनीता अग्रवाल भागती नज़र आती हैं. जब पुलिस आई तब उन्हें नेत्रेश शर्मा और अन्य पुलिसकर्मियों की मदद से निकाला गया.

राज्य के पुलिस महानिदेशक एमएल लाठर ने 8 अप्रेल को करौली शहर हिंसा के मामले को लेकर प्रेस कॉन्फ्रेस बुलाई और इस प्रेस कॉन्फ्रेस में करौली हिंसा की जानकारी देते हुए बताया कि आपत्तिजनक नारे और गानों की वजह से हिंसा भड़की, पुलिस असामाजिक तत्वों से सख्ती से निपट रही है. साथ ही उन्होंने कहा की पुलिस ने सभी दिशा निर्देशों का पालन नहीं किया जिस कारण हिंसा भड़क उठी.

 

पीएफआई का रोल

बीजेपी और मिडिया का एक वर्ग हिंसा की साजिश पीएफआई नाम के संगठन पर लगा रहा है जांच दल को करौली में संगठन के प्रदेश अध्यक्ष मोहम्मद आसिफ से भी मुलाकात करने का मौका मिला वो राज्य के सयुंक्त मुस्लिम संगठनों की कमेटी राजस्थान मुस्लिम फोरम के प्रतिनिधि मंडल के साथ करोली आये थे. उन्होंने बताया की उनके संगठन ने मुख्यमंत्री और डीजीपी को 31 मार्च को एक पत्र लिखा था, जिसमे उन्होंने पूरे प्रदेश में निकलने वाली भगवा रैली के संबंध में कुछ सुझाव दिए थे. इस पत्र में करौली का कहीं भी ज़िक्र नहीं था. मिडिया का एक वर्ग इसी पत्र को करौली हिंसा से जोड़ रहा है. साथ ही उन्होंने कहा कि करौली में उनके संगठन का कोई भी सदस्य अभी तक नहीं है फिर हमारा संगठन कैसे हिंसा की साजिश में शामिल हो सकता है ?

जांच दल का निष्कर्ष

सभी पक्षों और पुलिस अधीक्षक से हुई बातचीत के बाद जांच दल इस निष्कर्ष पर पहुंचा की 2 अप्रैल को जब हिंसा हुई तब जुलूस का रुट किसने तय किया? रैली में डीजे की अनुमति किसने दी? जिला पुलिस ने क्यों पुलिस महानिदेशक की गाइड लाइन का पूरी तरह पालन नहीं किया ? जब पुलिस जुलुस में शामिल थी और उनके सामने ही भड़काऊ नारे लगाए जा रहे थे तब पुलिस द्वारा ऐसे गाने और नारो को रोका क्यों नहीं गया. हिंसा के बाद पुलिस ने जिस गैर क़ानूनी तरीके से लोगो के घरों में दबिश दी और परिवार वालो के साथ दुर्व्यवहार किया वो पूरी तरह से गैरकानूनी था. स्थानीय पुलिस ने जांच दल को भी तथ्य संकलन करने में परेशान किया. स्थानीय थाने के निरीक्षक दिगंबर सिंह ने जांच दल को हिरासत में लेने के लिए धमकाया और थाने ले जाने की कोशिश की. पुलिस के इस रवैए से स्पष्ट होता है की पुलिस और स्थानीय प्रशासन ने साम्प्रदायिक मानसिकता के चलते ऐसा होने दिया. जब आगज़नी की घटना हुई, तो ऐसे कई उदाहरण भी मिले हैं, जिसमें हिंदू महिला पुरुष अपनी जान बचाने के लिए मुस्लिम के घर में छिपे हुए थे और मुस्लिम हिंदू के घर में छिपे हुए थे.

सांप्रदायिक हिंसा के इतिहास पर नज़र डाले तो पता लगता है की हिंसा के बाद हालात सामान्य होने तक स्थानीय नागरिक सुरक्षित स्थानों पर जाते हैं और फिर हालत सामान्य हो जाने पर दुबारा आ भी जाते हैं। कुछ लोग हिंसा के बाद पुलिस के एक्शन से डर कर भी अपने घरों को छोड़ कर चले जाते हैं. बीजेपी इसे ही पलायन का नाम दे रही है. करोली में 2006 और 2013 में भी साम्प्रदायिक तनाव हुआ था लेकिन इतनी बड़ी हिंसा नहीं हुई थी. जांच दल का मानना है कि इस घटना का आपसी संबंधों पर आंशिक रूप से असर पड़ेगा. हिंसा में जिसका भी नुक़सान हुआ है वो ग़रीब तबके के लोग थे. उनका तो सामान था लेकिन जो बिल्डिंग हैं वो अधिकांश हिंदुओं की हैं. नुकसान दोनो समाजों का हुआ है. करोली की हिंसा के पीछे इस बात को भी नज़र अंदाज़ नहीं किया जा सकता की राजस्थान में ये सब ऐसे वक़्त हुआ है जब विधानसभा चुनाव अगले साल 2023 में ही होने वाले हैं.

जांच दल की मांगें

1. पूरे घटनाक्रम की हाईकोर्ट के रिटायर्ड जज से निष्पक्ष जांच करवाइये जाए.

2. जो लोग उक्त घटना में शामिल नहीं थे परंतु उनके नाम से झूठा मुकदमा दर्ज हो गया है ऐसे लोगों के नाम निकाले जाएँ.

3. इस उपद्रव की वजह से जिन लोगों के वाणिज्यिक प्रतिष्ठानों को आर्थिक नुकसान हुआ है उन सभी को बिना भेदभाव के राज्य सरकार द्वारा उचित मुआवजा तय किया जाए एवं उसकी भरपाई जल्द की जाए ताकि ये बेगुनाह अपनी जिंदगी को दोबारा से पटरी पर ला सकें और खत्म हो चुके उनके व्यापार और धंधे सुचारू रूप से पुनः शुरू हो सकें एवं इन सभी को उचित मुआवजा दिया जाए.

4..प्रशासन द्वारा दोनों पक्षों के जिम्मेदार व्यक्तियों को बिठाकर सांप्रदायिक सद्भाव स्थापित करने के लिए प्रयास किये जायें.

5. पुलिस अधीक्षक शैलेन्द्र इंदौलिया की भूमिका पूरी घटना में निष्पक्ष नहीं थी इसलिए उन्हें जल्द से जल्द पद से हटाया जाए.

6. स्थानीय प्रशासन द्वारा अनुमति नहीं होने के बावजूद डीजे के साथ रैली निकालने वाले और रैली को सांप्रदायिक रंग देने वाले व्यक्तियों और संगठनों के विरूद्ध कठोर कार्यवाही की जाए ताकि दोबारा करौली का सौहार्दपूर्ण वातावरण खराब नहीं हो सके.

7. जो भी इस उपद्रव मे दोषी है और सही में लूटपाट और आगजनी में लिप्त हुए उनकी जांच हो कर सभी अपराधियो के खिलाफ बिना भेदभाव के फास्ट ट्रैक अदालती कार्यवाही होनी चाहिए.

जांच दल के सुझाव

मानवाधिकार संगठन एनसीएचआरओ के प्रतिनिधियों ने टीम के रूप में उपरोक्त घटनाक्रम के तथ्यों की जांच की तथा पाया कि इस प्रकार की घटनाएं प्रशासन की लापरवाही के साथ साथ कट्टरपंथी संगठनों की उग्रता तथा महत्वाकांक्षी नेताओं के राजनीतिक फायदे के लिए पूर्व नियोजित होकर अंजाम दी जाती है. परंतु इस प्रकार की घटनाओं में कोई भी प्रशासनिक अधिकारी अपनी औपचारिकता को छोड़कर अपने कर्तव्यों का निर्वहन करें तो ऐसी घटनाएं होना मुश्किल है. अगर कभी हो भी जाए तो उनका इतना उग्र रूप धारण करना नामुमकिन है. अतः प्रशासन,नेता और सामाजिक संगठन के साथ-साथ जनप्रतिनिधि और आमजन भी अपने कर्तव्यों का निर्वहन करें तो उनकी तरफ से यह सबसे बड़ी देश सेवा होगी और ऐसी घटनाएं होना नामुमकिन होगा. करौली के सभी नेताओं, जनप्रतिनिधियों, समाजसेवियों, आमजन तथा विशेषकर स्थानीय प्रशासन अभी से समय रहते करौली का वातावरण सुधारने के प्रयास शुरू कर दें तो बेहतर होगा अन्यथा आने वाले समय में यहां पर इससे भी बड़े उपद्रव और हिंसा हो सकती है जिसमे अप्रत्याशित जनधन की हानि हो सकती है. जांच दल का सुझाव है की सरकार जल्द से जल्द पीड़ितों को मुआवजा दे ताकि वो जल्द अपने कारोबार शुरू कर सके.

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