प्रियंका गांधी और योगी आदित्यनाथ में से आख़िर बसों पर ओछी राजनीति कौन कर रहा है?


प्रियंका वर्सेज योगी में राजनीति कौन कर रहा है?

-16 मई को प्रियंका गांधी ने उत्तरप्रदेश के मुख्यमंत्री को पत्र लिखकर 1000 बसें देने की पेशकश की।

-18 मई को उत्तरप्रदेश सरकार ने प्रियंका की पेशकश मान ली, लेकिन एक स्वांग रचा, स्वांग क्या था?

स्वांग ये कि प्रदेश के अपर मुख्य सचिव अवनीश अवस्थी ने प्रियंका से कहा कि वे बसों के फिटनेस सर्टिफिकेट, ड्राइविंग लाइसेंस, इन्स्युरेन्स, परमिट, ड्राइवरों का ब्यौरा और बसों को लेकर तय समय पर राजधानी लखनऊ पहुंच जाएं।

विपत्ति के समय जबकि फंसे हुए मजदूरों के लिए एक-एक घन्टा मुश्किल हो रहा है तब प्रदेश सरकार इन्स्युरेन्स, फिटनेस, परमिट सब जांचने बैठ गई है।

क्या आपको नहीं लगता कि जब आप केवल एक बाइक लेकर भी सड़क पर निकलते हैं तब ट्रैफिक पुलिस चाहे तो कोई न कोई एक कमीं निकालकर आपके वाहन को अनफिट घोषित कर सकती है? यहां तो 1000 बसों की बात थी।

इतने कम समय में सभी कागजात तैयार करने का क्या अर्थ है? संकट के समय उत्तरप्रदेश सरकार द्वारा ज्यादा से ज्यादा बसों को अनफिट करने के पीछे क्या मन्तव्य रहा होगा, इसे समझना उतना मुश्किल भी नहीं है।

ये हाल तब है जब बसों के इन्स्युरेन्स, परमिट, रिपेयरिंग का काम पिछले दो महीने से ठप्प पड़ा हुआ है। कुछ बसें तो इस कारण भी अनफिट घोषित की जा सकती थीं।

दूसरा सवाल ये कि मजदूर बोर्डरों से आ रहे हैं जैसे कि दिल्ली बॉर्डर, हरियाणा बॉर्डर, फिर बसों की सामान्य जांच के लिए, ब्यौरे देने के लिए लखनऊ बुलाने का औचित्य क्या रहा?

दिल्ली बॉर्डर से लखनऊ बॉर्डर की दूरी करीब 583 किमी है। वापस दिल्ली आने में भी इतने ही किमी की दूरी तय करनी पड़ती। अब आप सोचिए उत्तरप्रदेश सरकार महामारी जैसे आपातकालीन समय में 1000 बसों को 1170 किमी तक व्यर्थ में दौडवाने के पीछे क्या सोच काम कर रही थी?

क्या अब भी समझना मुश्किल है कि यहां राजनीति कौन कर रहा था? मुश्किल वक्त में जल्दी से जल्दी मदद देने की मंशा से प्रियंका ने दोबारा अपील की कि लखनऊ की बजाय बोर्डरों पर ही उनकी बसों की जांच की जाए तो अच्छा रहे।

-19 मई यानी कल, सुबह 10 बजे उत्तरप्रदेश के प्रमुख गृह सचिव ने प्रियंका गांधी से सभी बसों को पूरे ब्यौरे के साथ गाजियाबाद, नोएडा बॉर्डर आने के लिए कहा।

अवनीश अवस्थी, अपर मुख्य सचिव (होम)

-3 बजकर 45 मिनट पर प्रियंका ने उत्तरप्रदेश प्रशासन को सूचना दी कि हम अपनी बसें लेकर यूपी बॉर्डर (ऊंचा नागला) पहुंच चुके हैं, आगरा का प्रशासन हमें प्रवेश करने नहीं दे रहा है। कृपया हमें जल्दी से जल्दी अनुमति दें।

-उसके बाद प्रदेश सरकार ने बसों से सम्बंधित कागजातों की जांच की और मीडिया में खबर दी कि कांग्रेस ने बसों की जो लिस्ट दी है, उसमें से 31 ऑटो हैं। 69 स्कूलों की बसें, एम्बुलेंस, मैजिक, डीसीएम हैं यानी चारपहिया वाहन हैं। 297 वाहनों के बीमा और फिटनेस नहीं हैं।

यानी जितने ऐब निकाले जा सकते थे, प्रदेश सरकार ने निकालकर मीडिया को बता दिए। मीडिया में भी भाजपा सरकार के पक्ष में माहौल बनाकर, प्रियंका गांधी पर राजनीति करने का आरोप लगाया जाता रहा।

अब यहां एक बात पर गौर करने की जरूरत है, इतने सारे ऐब निकालने के बावजूद प्रदेश सरकार के ही अनुसार प्रियंका द्वारा सौंपे बेड़े में 879 बसें हैं।

इतनी बाधाएं डालने के बावजूद यदि प्रियंका ने इतनी बसों का इंतजाम कर दिया तो कायदे से प्रदेश सरकार को विपक्ष का धन्यवाद करना चाहिए था, अच्छा होता मुसीबत के समय सरकार और मज़दूरों का साथ देने के लिए प्रियंका की सराहना की जाती।

इससे भारतीय राजनीति में एक अलग चलन की शुरुआत होती। हर काम में भारतीय प्रधानमंत्री कहते हैं कि हम विपक्ष से आग्रह करते हैं कि विपक्ष हमारे साथ कंधे से कंधा मिलाए। लेकिन जब विपक्ष साथ आया तो उन्हें ही लपेटने का काम शुरू कर दिया गया।

बोलने में ये बात बड़ी सुंदर लगती है कि विपक्ष हमारा साथ दे। लेकिन प्रियंका जब कंधा से कंधा मिलाने आईं तो सरकार ने छोटे से छोटे ऐब निकालने के लिए पूरा प्रशासन लगा दिया।

हद्द तब हो गई जब इस ब्यौरे में मामूली लापरवाहियों की वजह से प्रियंका के निजी सचिव पर ही धोखाधड़ी का आरोप लगाते हुए FIR दर्ज कर दी गई। राजनीति कौन कर रहा है? बसों को चलने से कौन रोक रहा है? बाधाएं कौन बन रहा है?

प्रियंका या उत्तरप्रदेश सरकार? ये आप तय कीजिए।

लेकिन इस प्रकरण से इतना तो पता चल रहा है उत्तरप्रदेश सरकार अपनी निर्लज्जता और असंवेदनशीलता के सबसे ऊंचे शिखर पर पहुँच चुकी है। जहां पर सिर्फ और सिर्फ विशुद्ध राजनीति और घृणा का साम्राज्य बचा रह गया है।

-श्याम मीरा सिंह (लेखक पत्रकार हैं और यह लेख उनकी फेसबुक वॉल से लिया गया है)


 

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