पुलिस सुरक्षा में रोज़ जान गंवाते कैदी, क्यों राजस्थान की जेल कैदियों के लिए बन गई है कब्रगाह ?


बारां जिले में पिछले कुछ महीनों से जेल व्यवस्था पर गंभीर सवाल खड़े होने लगे हैं। अब तक बारां जिले के तीन व्यक्तियों की पुलिस हिरासत में मौत हो चुकी है और तीनों ही मामलों में मृतकों के परिजनों द्वारा जेलकर्मियों पर मारपीट कर हत्या करने का आरोप लगा है। पुलिस सुरक्षा में कैदियों की मौत का आरोप जेलकर्मियों पर लगना बड़ी भयावह स्थिति को दर्शाता है। किसी भी मामले में आरोप सही पाए गए तो लगेगा कि कानून के रखवाले ही कानून की धज्जियां उड़ा रहे हैं। हमारे देश के संविधान में अनुच्छेद 14,19 और 21 के अनुसार कैदियों को भी कुछ मौलिक अधिकार प्राप्त है। कैदियों को प्राप्त अधिकारों में प्रमुख अधिकार स्वास्थ्य सुविधा का है। बारां जिले में पुलिस अभिरक्षा में हुई कैदियों कि मृत्यु के तीनों मामलों में पुलिस पर मृतकों के परिवार द्वारा कैदियों के अधिकारों के हनन करने और हत्या करने के आरोप लगाए गए है। क्या है पूरा मामले नीचे जानिए।

पहला मामला। यह मामला बारां जिले के मांगरोल कस्बा निवासी मोहम्मद रमजान पुत्र अलीमुद्दीन (52) का है। मोहम्मद रमजान पर धारा 307 का मुकदमा चल रहा था जिसमें उन्हें ट्रायल कोर्ट ने 4 साल की सजा सुनाई थी। मोहम्मद रमजान 28 अगस्त 2018 से जिला कारागार बारां में सजा काट रहे थे। बंदी रमजान जेल में प्रवेश पूर्व भी बीमारी से ग्रसित थे। कारागृह में चिकित्सा अधिकारियों की राय के अनुसार बंदी का उपचार जारी था। बंदी रमजान का जेल ओपीडी में उपचार किया जा रहा था आवश्यकतानुसार जिला अस्पताल बारां और न्यू मेडिकल कॉलेज कोटा में भी उपचार के लिए ले जाया गया था। बंदी का 7 मार्च 2018 से 21 मार्च 2018 तक 15 दिन का पैरोल लीवर एवं डायबिटीज कि जांच हेतु स्वीकृत हुआ था।

पैरोल समाप्ति के पश्चात बारां जेल से बंदी को इलाज के लिए राजकीय चिकत्सालय बारां भिजवाया गया जहां से 23 मार्च को उपचार हेतु न्यू मेडिकल कॉलेज कोटा के लिए रेफर किया गया जहां अस्पताल के कैदी वार्ड में मोहम्मद रमजान की भर्ती कर लिया गया और इलाज जारी रहा। बाद में 21 अप्रैल को उपचार हेतु एसएमएस अस्पताल जयपुर रैफर किया गया था। एसएमएस अस्पताल जयपुर में डॉक्टर के अपने डिपार्टमेंट से डिस्चार्ज कर दूसरे वार्ड में रेफर करने पर  पुलिस के गार्ड ने कैदी को डॉक्टर और परिवार को बताए बगैर वापस कोटा ले आए,जहां रात्रि 11 बजे न्यू मेडिकल कॉलेज के डॉक्टर द्वारा उन्हें मृत घोषित कर दिया गया।

परिजनों ने कैदी वार्ड के गार्डों पर लगाया हत्या का आरोप

मृतक के पुत्र रिजवान द्वारा न्यू मेडिकल कॉलेज कोटा के कैदी वार्ड के गार्डों पर कई गंभीर आरोप लगाए गए हैं। रिजवान का कहना है कि गार्डों द्वारा बेरहमी से पीटने के कारण पिता की मृत्यु हुई है। रिजवान ने कहा कि पिता की तबीयत बिगड़ी होने की सूचना पाकर जब वो अन्य परिजनों के साथ अस्पताल पहुंचे तो गार्डों ने उन्हें अपने पिता से मिलने की अनुमति नहीं दी। गार्डों ने कैदी से मिलने की एवज में परिजनों से 500 रुपए रिश्वत की भी मांग की। मना करने पर कैदी के परिजनों की पुलिस गार्डों से कहासुनी हो गई। जिसकी शिकायत कैदी पुत्र मोहम्मद रमजान ने अस्पताल प्रशासन से भी की जिसके कारण गार्डों ने नशे की हालत में बंदी मोहम्मद रमजान की पाइप और जंजीरों से पिटाई की। पिटाई से ज्यादा तबीयत बिगड़ने के बाद उन्हें एसएमएस अस्पताल जयपुर रेफर कर दिया गया।

एसएमएस हॉस्पिटल जयपुर में भर्ती रहने के बाद जब बंदी मोहम्मद रमजान की तबीयत में कुछ ठीक हुई तो उनको पुलिस गार्डों द्वारा पीते जाने की बात उन्होंने परिवारजनों से कही जिसकी एक वीडियो रिकॉर्डिंग भी मौजूद है। वीडियो में देखा जा सकता है की मोहम्मद रमजान रोते हुए कह रहे है पुलिस गार्डों ने उन्हें पाइप से पीटा है और किसी से बोलने पर और अधिक पीटने की धमकी दी है।एसएमएस अस्पताल जयपुर में जब डॉक्टर ने बंदी को अपने डिपार्टमेंट से डिस्चार्ज कर दूसरे वार्ड में भर्ती करने को कहा तो पुलिस गार्ड परिवार के किसी सदस्य को बताए बिना सीधा कोटा ले आए। डॉक्टर से शिकायत करने पर जब गार्डों को फोन किया गया तब भी गार्ड नहीं रुके।

न्याय की मांग की लेकर दिये धरने, किए गए विरोध प्रदर्शन

उक्त मामले में शुरू ही से परिवार वालों द्वारा शिकायत और विरोध जारी था। पहले पुलिस गार्डों की बदसुलूकी और रिश्वत मांगने की, फिर एसएमएस अस्पताल जयपुर स्स बिना परिवार को बताए कोटा लाने की शिकायत की। बंदी की अस्पताल में मृत्यु के बाद परिजनों ने कई मांग रखते हुए डेड बॉडी लेने से इंकार कर दिया। परिवार की मांग थी कि न्यू मेडिकल कॉलेज कोटा के कैदी वार्ड के गार्डों पर मोहम्मद रमजान की हत्या का मुक़दमा दर्ज हो उन्हें तुरंत प्रभाव से सस्पेंड किया जाए। परिवार वाले शाम तक अपनी मांगों पर अड़ें रहे। परिवार वालों के साथ कुछ समाजिक राजनीतिक संगठनों ने भी विरोध करते हुए नारेबाजी की। बाद में न्यायिक जांच का भरोसा दिलाकर मृतक की लाश परिजनों को सौंप दी गई साथ ही पुलिस अभिरक्षा में इलाज के दौरान मृत्यु के मामले में अतिरिक्त मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट द्वारा जांच प्रारंभ कर दी गई थी। जांच प्रभावित ना हो इसलिए कैदी वार्ड के एक हेड कांस्टेबल व चार कांस्टेबल को निलंबित कर दिया गया था।

परिवार की मांग थी कि पुलिस गार्डों पर धारा 302 के हत्या का मुक़दमा दायर हो और परिवार को आर्थिक सहायता हेतु 50 लाख रुपए की मुआवजा राशि दी जाए। परिवार की मांगे ना मानने पर राजनीतिक दल एसडीपीआई ने जिला मुख्यालय बारां में रैली निकालकर विरोध प्रर्दशन किया साथ ही मृतक में कस्बा मांगरोल में एक दिवसीय धरना भी दिया गया था। मामला कुछ दिनों सोशल मीडिया पर भी छाया रहा यहां तक कि एमआईएम प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी ने भी इस मामले पर ट्वीट कर राहुल गांधी और राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत को घेरने की कोशिश की।

मृतक के पुत्र रिजवान इस पूरे प्रकरण के बारे में मुख्यमंत्री अशोक गहलोत को भी आवगत करा चुके है लेकिन मुख्यमंत्री ने न्यायिक जांच का हवाला देते हुए मामले को टाल दिया था। प्रकरण के 5 महीने गुजर जाने के बाद भी पोस्टमार्टम रिपोर्ट पेश नहीं की गई है। न्यायिक जांच की भी किसी भेद तरह की रिपोर्ट अभी तक सामने नहीं आई है।

दूसरा मामला।  जिला कारागार बारां में बंद कैदी सुरेन्द्र पुत्र चौथमल कोली की कोटा मेडिकल कॉलेज चिकित्सालय में उपचार के दौरान 19 जुलाई की रात को 9 बजे संदिग्ध अवस्था में मौत हो गई थी। सूचना पाकर पहुंचे परिजनों ने शव लेने से इंकार करते हुए जेलकर्मियों पर मारपीट का आरोप लगाया। बाद में मामले कि निष्पक्ष न्यायिक जांच आश्वासन के बाद परिजनों ने शव का पोस्टमार्टम कराया।

शव बंदी के घर सुसवान बस्ती बारां पहुंचते ही भीड़ उमड़ पड़ी। आक्रोशित परिजनों और मोहल्लेवासियों ने हंगामा करते हुए दोषियों पर मुकदमा ना होने तक शव का अंतिम संस्कार करने से मना कर दिया। तकरीबन डेढ़ घंटे तक शव एम्बुलेंस में ही रखा रहा।

मृतक के घर पहुंचे एस डी ओ हीरालाल मीणा को परिवार की ओर से आर्थिक सहायता और दोषियों को सजा की मांग पर एक लिखित ज्ञापन पत्र दिया गया। बाद में एसएसडीओ हीरालाल मीणा की समझाइश पर परिजनों ने शव एम्बुलेंस से उतारा।

यह है पूरा मामला

बारां जिले के सुसावन बस्ती निवासी सुरेन्द्र को पुलिस ने अवैध हथियार रखने के मामले में गिरफ्तार किया था। सुरेन्द्र को 29 जून को कोर्ट से जेल भेज दिया गया था। तबीयत खराब होने पर सर्वप्रथम उसे 29 जून को ही बारां अस्पताल में दिखाया गया था। बाद में 2 व 3 जुलाई को जेल ओपीडी दिखाया। 7 जुलाई को उसे न्यू मेडिकल कॉलेज कोटा रेफर कर दिया गया था।

कोटा से लाने के बाद दोबारा 15 जुलाई को तबीयत बिगड़ने पर उसे बारां अस्पताल में भर्ती कराया गया जहां से उसे 17 जुलाई को कोटा न्यू मेडिकल कॉलेज में रेफर कर दिया गया। जहां 19 जुलाई की शाम को सुरेन्द्र की मृत्यु हुई।

परिवार को नहीं थी गिरफ्तारी की खबर

मृतक के छोटे भाई भगवान कोली ने बताया कि भाई की गिरफ्तारी के बारे में परिवार को पुलिस की ओर से पहले कोई सूचना नहीं दी गई थी। बाद में 16 जुलाई की दोपहर पुलिस ने सुरेन्द्र से घर फोन करवाकर अस्पताल में खाना मंगवाया। उस समय सुरेन्द्र जिला अस्पताल बारां में भर्ती था। फोन आने पर अस्पताल पहुंचे भाई को पुलिस ने मुलाकात के लिए सिर्फ दो मिनट का समय दिया।

5 दिन से था भूखा

अस्पताल पहुंचे छोटे भाई भगवान कोली को सुरेन्द्र ने बताया कि उसे पांच दिन से खाना नहीं दिया गया है। साथ ही सुरेन्द्र ने ये भी कहा कि उसके साथ जेल में मारपीट की गई,उसे पीटने के लिए लाठी और डंडों का भी इस्तेमाल किया गया।

हालांकि इस में पुलिस पक्ष आना बाक़ी है ! ये सब पोस्ट मार्टम रेपर्ट आयने के बाद ही सही पता चल पायेगा !हालाँकि पोलिस का कहना है की क़ैदी को गंभीर बीमारी थी !

मामले में अभी तक प्रशासन की और से कोई कार्यवाही नहीं की गई है। सुरेंद्र की मृत्यु को 2 महीने बीत चुके है परन्तु अभी तक प्रशासन ने पोस्टमार्टम रिपोर्ट भी पेश नहीं की है। मृतक का सम्बन्ध एक गरीब मजदूर परिवार से है। परिवार को अभी तक किसी भी तरह की मुआवजा राशि भी नहीं दी गई। किसी भी राजनीतिक दल का कोई भी बड़ा नेता और कोई भी संगठन परिवार के साथ नहीं खड़ा है।

तीसरा मामला। यह मामला मांगरोल थाना क्षेत्र के गांव रावल जावल निवासी युवक गिरिराज सुमन का है। गिरिराज सुमन को 5 सितंबर 2019 की रात 11 बजे तबीयत बिगड़ने पर थाने से मांगरोल सीएचसी ले जाया गया।  मांगरोल अस्पताल में प्राथमिक उपचार कर उसे जिला अस्पताल बारां रेफर कर दिया गया। जहां उसकी मौत हो गई। डॉक्टर्स की जांच ने विषाक्त पदार्थ का सेवन हीना पाया गया है।

प्रेम प्रसंग के मामले में थाने आया था

मृतक गिरिराज सुमन को पुलिस द्वारा गिरफ्तार नहीं किया गया था  बल्कि वो खुद थाने पहुंचा था दरअसल युवक गिरिराज और गांव की एक विवाहिता प्रेम प्रसंग के चलते करीब 15 दिन पहले गांव छोड़कर भाग गए थे।19 अगस्त को विवाहिता के पति ने मांगरोल थाने में पत्नी की गुमशुदगी की रिपोर्ट दर्ज कराई थी। परिवार पर पुलिस द्वारा दबाव बनाए जाने के बाद परिजनों से बात कर युवक गिरिराज सुमन विवाहिता के साथ स्वेच्छा से थाने पहुंचा था। पुलिस द्वारा विवाहिता को उसके पति की सौंपकर युवक को लॉकअप में बन्द कर दिया गया था। हालांकि विवाहिता का अभी बयान दर्ज नहीं हुआ था  इसलिए गिरिराज की टेक्निकली रूप से गिरफ्तार नहीं किया गया था।

मौत के बाद ग्रामीणों ने किया हंगामा

गिरिराज सुमन की पुलिस हिरासत में राजकीय चिकित्सालय बारां में मृत्यु हो जाने के पश्चात पुलिस ने पोस्टमार्टम करवाकर शव परिजनों को सौंपना चाहा लेकिन मृतक के परिजनों ने पुलिस ही पर हत्या का आरोप लगाते हुए शव लेने से इंकार कर दिया। परिवार वालों का आरोप था कि युवक की मौत पुलिसकर्मिर्यों की मारपीट से हुई है और पुलिस मामले की दबाने का प्रयास कर रही है। गुस्साए ग्रामीणों ने मांगरोल थाने पर प्रदर्शन करते हुए पत्थरबाजी भी की।

ग्रामीणों ने दोपहर दो बजे तक बारां मांगरोल रोड पर भी जाम लगाए रखा। विरोध कर रहे ग्रामीणों को बाद में भाजपा कार्यकर्ताओं का भी समर्थन हासिल हो गया। मामला तीन दिनों तक गरमाता रहा। भाजपा कार्यकर्ताओं का ग्रामीणों के साथ मिलकर परिजनों की मांगों को पूरी करवाने के लिए आंदोलन जारी रहा।  रोड जाम कर,पुलिस थाने का घेराव कर,कस्बे का बाजार बन्द करवाकर प्रदर्शनकारी अपनी मांगो पर अडें रहे।

मांगे मान लेने पर पांचवे दिन हुआ मृतक का अंतिम संस्कार

अपनी मांगों पर अडिग रहते हुए विरोध प्रदर्शन करने से सरकार को परिजनों की मांगे मानने पर मजबूर होना पड़ा। परिजनों से पुलिस प्रशासन की समझौते के लिए कोशिश शुरू ही से जारी थी। लेकिन अंत में चौथे दिन तहसील कार्यालय में हुई वार्ता में सहमति बन पाई।वार्ता में सांसद दुष्यंत सिंह,पूर्व मंत्री किरण माहेश्वरी,कलेक्टर इन्द्र सिंह राव, एसपी किशोरी लाल मीणा और अन्य शामिल हुए। इस वार्ता में दोषी पुलिसकर्मियों के खिलाफ हत्या का मामला दर्ज करने, 3 लाख रुपए नकद सहायता राशि  देने और 25 लाख रुपए मुआवजा राशि के लिए राज्य सरकार से अनुशंसा करने की सहमति बनी।

सरकार का दोहरा चरित्र

लगभग एक ही जैसे और एक ही जिले के तीन मामलों की विस्तृत रिपोर्ट आप उक्त में पढ़ चुके है। अभिरक्षा में मृत्यु के तीनो ही प्रकरणों में पुलिस पर हत्या करने के आरोप लगे है। तीनो ही मामलों में परिवार वालों की और से पुलिसकर्मियों पर हत्या का मुकदमा दर्ज करने और मुआवजा राशि देने की मांगों को प्रमुखता से रखा गया है। हमें तीनों ही मामले एक समान नजर आ रहे हैं लेकिन सरकार का इन मामलों में रवैया एक समान नहीं है। तीन में से एक मामले में परिजनों की लगभग सभी मांगे सरकार द्वारा मान ली गई है। रावल जावल निवासी गिरिराज सुमन मृत्यु मामले में सरकार ने मांगे मान कर परिवार को सहायता राशि भी दी है और दोषियों पर हत्या का मुकदमा भी दर्ज कर लिया है।

इसी तरह के बाकी दो मामलों को सरकार क्यों नजरअंदाज कर रही है ये एक बड़ा प्रश्न है। यहां पर सरकार का दोहरा चरित्र साफ झलक रहा है।मृतक मोहम्मद रमजान वाला मामला पत्रकारों द्वारा भी मुख्यमंत्री के सामने उठाया जा चुका है लेकिन मुख्यमंत्री ने न्यायिक जांच का हवाला देकर मामले को टाला है। बाकी दो पीड़ित परिवार न्याय पाने से शायद इसलिए भी वांछित है क्योंकि एक परिवार दलित और दूसरा पसमांदा मुस्लिम समाज से संबंध रखता है। सरकार का दलितों मुस्लिमों के प्रति जो दोहरा चरित्र है वो इन मामलों से एक बार फिर उजागर हो चुका है।

शोएब अंसारी

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