पूजा वर्मा की ऐतिहासिक जीत ने किन किन समीकरणों को धराशायी कर दिया!


राजस्थान विश्वविद्यालय छात्र संघ चुनाव 2019 का परिणाम सामने है! अध्यक्ष पद पर निर्दलीय प्रत्याशी पूजा वर्मा ने जीत दर्ज की है! ये लगातार तीसरा साल है जब छात्रों ने एन॰एस॰यू॰आई॰ और ए॰बी॰वी॰पी॰ दोनों को ही नकार दिया है!

इस परिणाम ने ना सिर्फ़ चौंकाया है बल्कि छात्र राजनीति में स्थापित हो चुके कई मिथ्यों को तोड़ा है!

नारी शक्ति की जीत

राजस्थान विश्वविद्यालय के इतिहास में ऐसा सिर्फ़ दूसरी बार हुआ है जब अध्यक्ष पद पर महिला प्रत्याशी जीत कर आयी है! पहली बार प्रभा चौधरी छात्र संघ अध्यक्ष रहीं थी!छात्र संघो की लाठी भाटा मर्दवादी राजनीति में इस तरह के संकेत सुखद अहसास कराते हैं!

जातिगत वर्स्चव का ख़ात्मा

राजस्थान यूनिवर्सिटी छात्र संघ चुनाव में एक जाति ख़ास तौर पर जाट और राजपूतों का दबदबा रहा है! इनमें भी जाट हमेशा आगे रहे हैं! लेकिन इसे भी ज़बरस्त चुनौती मिली है!

इसका सिलसिला पिछले साल आरंभ हुआ जब यूनिवर्सिटी के इतिहास में पहली बार दलित जाति से अध्यक्ष बना था!विनोद जाखड़ ने भी निर्दलीय चुनाव जीता था!

यह लगातार दूसरा साल है कब किसी दलित प्रत्याशी ने जीत दर्ज की है! हालाँकि हार के बाद एन एस यू आयी से अध्यक्ष पद प्रत्याशी उत्तम चौधरी ने इस पूरे चुनाव को ही जातिवाद का चुनाव बता दिया ! लेकिन शायद ऐसा लगता है कि सिर्फ़ जातिवाद के पैनल में जातियां बदली है जातिवाद तो छात्र संघ चुनावों में पहले से था और वो भी बहुत मज़बूती से !

छात्र संगठनों को नकारने का अर्थ

ABVP एन एस यू आई जैसे छात्र संगठनों को छात्रों ने लगातार पांचवें साल भी नकार दिया है छात्र संगठनों पर मुख्यधारा की राजनीति और सरकार का भी हाथ होता है ! हर बार जब भी टिकट बँटवारे का समय आता है तब टिकट माँग रहे कुछ संगठन सदस्य बाग़ी हो जाते हैं वो टिकटों को बेचने का आरोप लगाते हैं इसने भी छात्र संगठनों की गरिमा को नष्ट किया है!

ABVP ने तो छात्र संघ चुनाव का मुद्दा ही राष्ट्रवाद बना दिया था जिसे विश्वविद्यालय के छात्रों ने पूरी तरह नकार दिया इस बार ABVP तीसरे नंबर पर रही है!

वहीं NSUI पर पैसे देकर टिकट देने का आरोप हमेशा लगता है इस बार भी भागी मुकेश चौधरी ने 52 लाख रुपये में टिकट बेचे जाने की बात कहकर बग़ावत कर दी और संगठन के ख़िलाफ़ ही खड़े हो गए!

छात्र संघ चुनावों में संगठनों की हैसियत लगातार कम हो रही है अब चुनाव व्यक्तिगत मेहनत और संघर्ष के बलबूते जीते जा रहे हैं!

वहीं NSUI की हार कई मायनों में अहम है, क्योंकि एक तरफ जहां सूबे में कांग्रेस की सरकार है वहीं NSUI की हार संगठन के लिए चिंतनीय है और सरकार की साख पर सवालिया निशान लगाती है।

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