युवा क़लम

कविता: क़लम चलती है अब अंधेरों में कि धोखे खाए हैं इसने

By khan iqbal

September 27, 2019

क़लम चलती है अब अंधेरों में कि धोखे खाए हैं इसने क्षण भर के उजालों में भटकी भी है ये बहुत चकाचौंध गलियारों में

जान कर असलियत, धोखेबाज उजालों की सो गई थी फिर वो गहरी नींद में हुई है अब बेदार, होशियार जो हो गई क़लम चलती है अब अंधेरों में

चलते हुवे सदा है ये सोचती क्या ज़मीर हो गए गुम उजालों में! हो गए क्या वो भी क्षणिक! क्यों राह नहीं दिखाते अंधेरों में?

ये मान कर कि खो गए ज़िंदा ज़मीर उजालों में तब विकल्प खोजने इनका क़लम चलती है फिर अंधेरों में

                             – ✍️तूबा हयात