NSUI का टिकट 52 लाख में ! क्यों नाराज छात्रनेता अपने ही संगठन के कपड़े फाड़ने लग जाते हैं ?


NSUI का टिकट 52 लाख में ! क्यों नाराज छात्रनेता अपने ही संगठन के कपड़े फाड़ने लग जाते हैं ?

राजस्थान विश्वविद्यालय में असली चुनावी रंग संगठनों द्वारा टिकट बांटने के बाद चढ़ता है, बीते मंगलवार को जहां प्रदेश के दोनों मुख्य छात्र संगठन Abvp और Nsui ने अपने पैनल की घोषणा की।

जहां दोनों ही संगठन के पदाधिकारी को पिछले कुछ सालों से बागी प्रत्याशियों से खौफजदा हैं वहीं हर बार सभी दावेदारों को राजी कर एक घोषित उम्मीदवार को पूरा समर्थन दिलवाना संगठन के लिए टेढ़ी खीर साबित होता है।

NSUI का टिकट इस बार 52 लाख में बिका – मुकेश चौधरी (Facebook live)

Nsui ने इस बार अध्यक्ष पद के लिए उत्तम चौधरी को टिकट दिया है। हर बार की तरह नाम का ऐलान होते ही बागियों और नाराज छात्रनेताओं के ऐलानों का दौर शुरू हो जाता है। नाराज छात्र केम्पस में खड़े होकर अपने संगठन के टिकट का बाजार रेट बताते हैं।

टिकट फाइनल होते ही nsui से मुकेश चौधरी और ओमप्रकाश पांडर जैसे छात्रनेताओं के बागी सुर सुनने को मिले।

छात्रनेता मुकेश चौधरी ने अपने फेसबुक लाइव में संगठन पर 52 लाख में टिकट बेचने का आरोप लगाया तो ओमप्रकाश पांडर ने भी पैसे की मांग का ज़िक्र किया।

यही हाल हमें पिछली बार देखने को मिला जब विनोद जाखड़ ने बागी होकर एक गरीब किसान पुत्र की आवाज़ दबाने और टिकट की कीमत का आरोप लगाया था।

कमोबेश यही हाल abvp में देखने को मिला, हालांकि इस बार कोई बागी अभी तक सामने नहीं आया है लेकिन पिछली बार जहां अमित कुमार, अरुण शर्मा, सौरभ भाकर जैसे छात्रनेताओं ने खरीद फरोख्त के आरोप लगाए थे हालांकि बाद में संगठन ने इन्हें शांत करवा लिया था।

संगठन पर खरीद-फरोख्त के आरोप और गिरती छात्र राजनीति की साख

छात्र नेताओं के संगठन नेताओं को एक सूत्र में बांधकर छात्रों के लिए 1 साल का खाका तैयार करते हैं लेकिन चुनावों से पहले इनकी पोल खुद इनके की कार्यकर्ता खोलते हैं। संगठनों की कमजोर पकड़ और ढीला तालमेल ही आपस में टकराव पैदा करता है।

ऐसे में हमें सोचना होगा कि क्या छात्र राजनीति बस चुनावों की एक खानापूर्ति तक सिमट रही है ? संगठन अपने छात्रनेताओं को एक मत में नहीं ला पाते, वो छात्रों के लिए 1 साल कैसे लड़ेंगे ? ये सवाल हर उस आम छात्र के लिए अहम है जो छात्र राजनीति के गिरते स्तर को देखकर व्यथित है।

गौरतलब हो कि आरयू में abvp काना राम जाट (2013) के बाद अभी तक अध्यक्ष पद के लिए संघर्ष कर रही है तो वहीं nsui को भी सतवीर चौधरी (2015) आखिरी बार जीत दिलवा पाए थे।

– अवधेश पारीक ( स्वतंत्र )

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