“ना फ़नकार तुझ सा तेरे बाद आया
मोहम्मद रफ़ी, तू बहुत याद आया……”
इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता कि भारतीय सिनेमा में मोहम्मद रफ़ी जैसा गीतकार न कोई आया है और ना कोई इनका मुक़ाम हासिल कर सकता है। जिस बुलंदी को रफ़ी साहब ने छुआ है वहाँ पहुँचना मुश्किल ही नहीं नामुमकिन भी है।
इनकी गायकी के ज़रिए करोड़ों लोगों के चेहरों पे मुस्कुराहट आई। आवाज़ ऐसी कि जैसे किसी फूल पर शबनम टपक रही हो। शख़्सियत ऐसी कि कोई इनसे कभी उदास न हुआ। जो मिला वो इनकी मोहब्बत की गिरफ्त में आ गया। बेहद शांत स्वाभाव के दयालु इंसान थे। रफ़ी साहब सच्चे मायने में फ़क़ीर इंसान थे जिन्हें दुनिया की चकाचौंध से कोई मतलब नहीं। बुलंदी पर होने के बाद भी इनकी पूरी ज़िंदगी सहजता और सरलता से भरपूर दिखाई देती थी।
कहा जाता है कि अपने पड़ोस की एक बेवा को वो बिना बताये चुपचाप मदद करते रहे, पैसे भेजते रहे। जब उनका इंतकाल हो गया तभी उस महिला को ये मालूम हुआ कि मोहम्मद रफ़ी ही उनकी मदद करते थे।
इनके बारे में आता है कि ये कभी फीस का जिक्र नहीं करते थे और कभी कभी तो एक रुपये में भी गीत गा दिया करते थे। सच तो ये है कि रफ़ी साहब जितने बड़े कलाकार थे, उससे बड़े इंसान भी थे।
दशकों पहले गाये हुए इनके गीत आज भी लोगों के दिलों पर राज कर रहे हैं। इनके गानों ने सुख, दुःख, तन्हाई, प्यार, आस्था, देशभक्ति एवं इंसानी रिश्ते दिखाई देते हैं जिसको सुनकर लगता है इनकी आवाज में ये मुल्क बात कर रहा है।
रफ़ी साहब का नाम रहती दुनिया तक हमेशा उस गायक के रूप में स्वर्ण अक्षरों में लिखा रहेगा जिन्होंने लोगों को जीने की राह दिखाई। रफ़ी साहब विश्व रत्न थे, हैं और जबतक ये दुनिया रहेगी तब तक हमेशा रहेंगे।
– पुण्यतिथि पर सादर नमन।
-माजिद मजाज़