कर्बला के मैदान में हज़रत इमाम हुसैन के बलिदान से हमें यह पांच संदेश मिलते हैं !


प्रतिवर्ष हिजरी कैलेंडर के पहले महीने मोहर्रम के शुरू होते ही हजरत इमाम हुसैन और उनके साथियों के कर्बला में दिए बलिदान की चर्चा आम होने लगती है। हजरत इमाम हुसैन अंतिम ईश्दूत मोहम्मद साहब के नवासे थे।

हजरत इमाम हुसैन ने शासन के इस्लामी और मौलिक नियम तोड़ चुके एक अत्याचारी शासक यजीद का साथ देने से इनकार किया और उसका विरोध करने के लिए निकल पड़े।

यजीद के एक गवर्नर ने फौज भेज कर आपकी और आपके साथियों की रास्ते में ही हत्या करवा दी।जिस दिन आप की हत्या की गई उस दिन हिजरी वर्ष के मोहर्रम माह की 10 तारीख थी और जिस जगह आप शहीद हुए उसे आज कर्बला कहा जाता है।

इस घटना की चर्चा हर वर्ष की जाती है परंतु इमाम हुसैन ने यह बलिदान देकर समस्त मानव जाति को क्या संदेश दिया है इस पर कम ही विचार किया जाता है। इस घटना से हमें क्या संदेश मिलता है आइए निम्न में जानने का प्रयास करते हैं।

1. इस घटना से पहली सीख हमें यह मिलती है कि चाहे आप संख्या में कम हो आपके पास संसाधनों की कमी हो फिर भी आपको अन्याय और अत्याचार के विरोध में सत्य के साथ डटे रहना चाहिए।हजरत इमाम हुसैन भी यजीद की हजारों की फौज के मुकाबले में अपने 72 साथियों के साथ उठ खड़े हुए और अपनी जान दे दी।

2. सत्य की रक्षा के लिए जान देने की भावना रखना इस घटना की दूसरी सीख है। हजरत इमाम हुसैन के भेजे हुए एक साथी की पहले ही कूफा नामी शहर में हत्या हो गई थी आपको इस रास्ते पर आगे बढ़ने का अंजाम पता था फिर भी आपने वापसी की राह ना ली। जो लोग सत्य और न्याय के लिए लड़ते हैं वह अपने अंजाम की परवाह नहीं करते।

3.इस घटना से हमें तीसरी सीख यह मिलती है कि अत्याचार का विरोध भी शांतिपूर्ण तरीके से किया जाए याजीद की फौज के मुकाबले में इमाम हुसैन ने फौज तैयार करके यजीद पर हमला नहीं किया बल्कि अपने बीवी बच्चों को साथ लेकर विरोध करने के लिए निकल पड़े। इमाम हमें सबक दे गए कि अत्याचारों का खात्मा हथियारों के सहारे नहीं होता। वह हमें अत्याचारी सरकार का विरोध करने का तरीका सिखा गए।

4.चौथी सीख हमें इमाम हुसैन के बलिदान से यह मिलती है कि आपका त्याग ही आप को महान बनाता है। इतिहास में जिस व्यक्ति ने जितना त्याग किया वोह उतना ही महान बन गया हजरत इमाम हुसैन ने अपनी जान को त्याग कर अपने मर्तबे को और बढ़ा लिया। आप हर उस व्यक्ति के लिए नमूना बन गए जो अत्याचार के विरुद्ध खड़ा होता है और सत्य के लिए लड़ता है।

5.पांचवी सीख हमें हजरत इमाम हुसैन से यह सीखनी चाहिए कि आपने मोहम्मद साहब के नवासे होते हुए भी कभी भी आपने स्वयं के शासन का उत्तराधिकारी होने का दावा नहीं किया। इससे सीख लेकर हमें अपने अंदर से पद की लालसा को त्याग देना चाहिए।

उपरोक्त वर्णित बातें सच्चाई पर चलने वाले और अत्याचारों का विरोध करने वाले के लिए एक संदेश है और इमाम हुसैन इस मार्ग पर उनके लिए एक नमूना है। हमें इन बातों पर विचार करना चाहिए और हजरत इमाम हुसैन की तरह हर हाल में सत्य पर जमे रहना चाहिए।

— शोएब अंसारी

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