उन 5 जजों की पूरी कुंडली जिन्होंने अयोध्या मामले पर फैसला सुनाया है ?


अयोध्या भूमि विवाद पर आखिरकार सुप्रीम कोर्ट का फैसला आ गया है जिसमें विवादित राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद जमीन का मालिकाना हक हिंदू पक्षकारों यानि राम जन्म भूमि न्यास को दिया गया है वहीं मुस्लिम पक्ष यानि सुन्नी सेन्ट्रल वक्फ बोर्ड को मस्जिद के लिए वैकल्पिक जमीन देने का फरमान सुनाया गया है।

मंदिर के लिए केंद्र सरकार को 3 महीने के अंदर एक योजना बनाने के लिए भी कोर्ट ने आदेश दिया है। चीफ जस्टिस रंजन गोगोई की अध्यक्षता में पांच जजों की संवैधानिक बेंच ने इस पूरे मामले पर फैसला सुनाया है।

गौरतलब है कि इस पूरे मामले पर तीन बड़े पक्ष थे जिन्होंने कानूनी लड़ाई लड़ी- रामलला विराजमान, सुन्नी सेन्ट्रल वक़्फ़ बोर्ड और निर्मोही अखाड़ा।

फैसला सुनाने वाले पांच जज हैं-

चीफ जस्टिस रंजन गोगोई, जस्टिस एसए बोबड़े, जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस अशोक भूषण, और जस्टिस एसए नज़ीर। आइए एक नजर डालते हैं कौन है ये पांचों जज और क्या रहा है इनका कानूनी इतिहास।

चीफ जस्टिस रंजन गोगोई

असम में डिब्रूगढ़ के रहने वाले रंजन गोगोई के पिता केशब चंद्र गोगोई दो महीने के लिए असम के मुख्यमंत्री रह चुके हैं. दिल्ली यूनिवर्सिटी से ग्रेजुएशन पूरा किया जिसके बाद लॉ की डिग्री से ली फिर गुवाहाटी हाई कोर्ट में काम शुरू किया. 2001 में वहीं जज बने, 2010 में पंजाब और हरियाणा हाई कोर्ट में जज रहते हुए 2011 में वहीं चीफ जस्टिस बने।

2012 में सुप्रीम कोर्ट पहुंचे और 2018 में भारत के चीफ जस्टिस बनाए गए।

अपने कार्यकाल में गोगोई ने कई अहम फैसले दिए जिनमें 2018 में उन्होंने लोकपाल एक्ट में किसी भी तरह की कमी होने और सरकार के लोकपाल पर ढुलमुल रवैये पर सख्त नाराज़गी जताई थी। आपको बता दें कि आने वाली 17 नवम्बर को गोगोई रिटायर होने जा रहे हैं इससे पहले वो सबरीमाला मंदिर, राफेल डील और आरटीआई के दायरे में चीफ जस्टिस आएं जैसे अहम फैसले सुनाएंगे।

जस्टिस शरद अरविन्द बोबड़े

महाराष्ट्र के एडवोकेट जनरल अरविंद बोबड़े के बेटे शरद अरविन्द बोबड़े ने नागपुर यूनिवर्सिटी से बीए की पढ़ाई की फिर एलएलबी की डिग्री ली। 1978 में बार काउंसिल ऑफ महाराष्ट्र पहुंचे और मार्च 2000 में बॉम्बे हाईकोर्ट की खंडपीठ में शामिल हुए. इससे पहले एसए बोबड़े ने मध्य प्रदेश हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस का पद भी संभाला है।

बोबड़े अप्रैल 2013 में सुप्रीम कोर्ट पहुंचे जिसके बाद वो कई अहम फैसलों में शामिल रहे। बोबड़े आधार कार्ड मामला, कर्नाटक में चुनाव के बाद हुए घमासान में जब रात 2 बजे सुप्रीम कोर्ट खुला तब वहां मौजूद थे।

जस्टिस धनञ्जय यशवंत चंद्रचूड़

मुंबई के रहने वाले धनञ्जय चंद्रचूड़ के पिता देश के सबसे ज्यादा समय तक चीफ जस्टिस पद पर रहे। चंद्रचूड़ ने दिल्ली यूनिवर्सिटी से ग्रेजुएशन किया जिसके बाद हार्वर्ड लॉ स्कूल से LLB किया। 1998 में बॉम्बे हाईकोर्ट में सीनियर एडवोकेट बने और 2000 में वहीं जज बने। सुप्रीम कोर्ट पहुंचने से पहले चंद्रचूड़ 3 साल तक इलाहाबाद हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस रहे।

मई 2016 में सुप्रीम कोर्ट पहुंचने वाले चंद्रचूड़ ने धारा 377 को भ्रमित और गुलामी वाली बताया जो बराबरी, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और निजता के मूलभूत अधिकारों को रोकती है।

जस्टिस अशोक भूषण

उत्तर प्रदेश में जौनपुर के रहने वाले भूषण ने बीए करने के बाद इलाहाबाद यूनिवर्सिटी से कानून की पढ़ाई की। 1979 में उत्तर प्रदेश बार काउंसिल में शामिल हुए जिसके बाद इलाहाबाद हाई कोर्ट में काम शुरू किया। 2001 में इलाहाबाद हाई कोर्ट के जज, 2014 में केरल हाई कोर्ट के जज रहे।

जस्टिस एस अब्दुल नज़ीर

तीन तलाक मामले पर सुनवाई करने वाली बेंच के सदस्य नजीर कर्नाटक में बेलूवाई के रहने वाले हैं। मंगलुरु के लॉ कॉलेज से कानून की पढ़ाई की जिसके बाद कर्नाटक हाई कोर्ट में काम शुरू किया बाद में वहीं जज बने।

2017 में सुप्रीम कोर्ट पहुंचने वाले नजीर ट्रिपल तलाक मामले में फैसला सुनाने वाले अहम चेहरा थे, वहीं निजता का अधिकार एक मौलिक अधिकार है का फैसला सुनाने वालों में भी नजीर शामिल थे।

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