कठुआ केस : जब पुलिस वाले ने कहा था उसकी साँसे रोके रखना मुझे भी कुछ करना है!”


‘‘पिन्हा था दाम-इ-सख्त क़रीब आशियां के, उड़ने न पाए थे कि गिरफ्तार हम हुए”

अर्थात शिकारियों ने इतना कड़ा जाल बिछा रखा था कि उड़ने से पहले ही पकड़ लिया गया.”

पठानकोट सेशन अदालत के न्यायधीश ने अपने फैसले में मिर्जा गालिब का यह शेर लिखकर कहा कि कठुआ कांड के तथ्यों पर यह पंक्ति पूरी तरह से चरितार्थ होती है।

8 साल की मासूम “आसिफ़ा” का सामूहिक बलात्कार और निर्मम हत्या साधारण बलात्कार की घटना नहीं थी बल्कि इस घटना की एक वजह “सांप्रदायिक” भी थी।

दरअसल संघ के समाज में पैदा किये नफरत के कारण सांजीराम, हेड कॉन्सटेबल तिलक और स्पेशल पुलिस ऑफिसर दीपक खजुरिया कठुआ में बकरवालों की मौजूदगी के खिलाफ थे।

इस घटना से डराकर बकरवाल समुदाय को इलाके से भगाने के लिए उन लोगों ने ये साजिश रची। नतीजन मासूम भूखी “आसिफा” इनके चपेट में आ गयी और यह दिल दहला देने वाले सामूहिक बलात्कार और हत्या की वारदात हुई।

केस में दायर की गई चार्जशीट में लिखी बातों को पढ़कर रोम-रोम सिहर उठता है। 10 जनवरी 2018 को अगवा करके भूख से बिलखती 8 साल की बच्ची को मंदिर में 6 दिन तक बंधक बनाया गया और नशे का इंजेक्शन देकर दीपक, प्रवेश, सांझी राम, आनंद दत्ता, तिलकराज और सुरेंद्र नाम के भेड़ियों ने नोच-नोच कर अपनी हवस पूरी की।

अदालत में सही सिद्ध हुई चार्जशीट के अनुसार “आसिफा के अपहरण के दौरान सांजी राम के भतीजे ने आसिफा को धक्का देकर गिरा दिया।

इसके बाद परवेश ने उसके पैरों को पकड़ा और भतीजे ने बच्ची को जबरन ड्रग खिलाया। बच्ची के बेहोश होने के बाद नाबालिग ने उसके साथ बलात्कार किया और फिर परवेश के साथ मिलकर आसिफा को मंदिर के अंदर ले गया।

इसके बाद मंदिर में एक टेबल के नीचे 2 चटाई बिछाई और आसिफा को इसपर लिटा कर ऊपर से 2 दरी डालकर उसे ढक दिया”

आसिफा को मारने के पहले स्पेशल पुलिस आफिसर “दीपक खजूरिया” कहता है कि “रुको एक बार और कर आऊँ”।

फाँसी की सज़ा होती तो ऐसा होना थोड़ा मुश्किल हो जाता। हैरानी की बात यह है कि अदालत ने “विशाल जंगोत्रा” नाम के एक आरोपी को बरी कर दिया है। विशाल इसी बलात्कार केस के आरोपी सांझी राम का बेटा है और आरोप था कि यह पूरा घृणित कार्य उसी ने अंजाम दिया।

खेल देखिए

इस मामले की जांच कर रही जम्मू-कश्मीर क्राइम ब्रांच के मुताबिक 15 जनवरी, 2018 को आसिफा की क्षत विक्षत लाश को जंगल में फेंकने का काम विशाल ने ही किया था।

मगर अदालत में मामला पहुंचने पर विशाल के वकील ने दावा किया कि 15 जनवरी, 2018 को विशाल मेरठ में परीक्षा दे रहा था जबकि बाद में यह सिद्ध हुआ कि विशाल ने परीक्षा नहीं दी थी। विशाल की जगह कोई और परीक्षा में बैठा और उसने विशाल के जाली दस्तखत किए।

इसके बाद विशाल के बचाव में कोर्ट में एक और सीसीटीवी फुटेज पेश की गई थी। ये फुटेज मुजफ्फरनगर के मीरापुर के एक एसबीआई एटीएम की थी। फुटेज के हिसाब से 15 जनवरी, 2018 की शाम 3 बजकर 3 मिनट से लेकर 3 बजकर 7 मिनट तक विशाल एटीएम में था और इसी आधार पर वह बरी हो गया।

फिर भी यह निर्णय उन लोगों के मुँह पर तमाचा है जो इस घटना को ही नकार रहे थे और आरोपियों को बचाने के लिए आसिफा के वकीलों को धमका रहे थे और तिरंगा यात्रा निकाल रहे थे।

यह फैसला संघ के पूरे तंत्र पर एक तमाचा है जिसने अपने मीडिया के माध्यम से यह परसेप्शन बनाने की पूरी कोशिश की कि “कठुआ बलात्कार हुआ ही नहीं”। आसिफा को भाभी बताने वालों के चेहरे इतने काले और कठोर हैं कि शायद ही कोई तमाचा उस पर असर करे

बेटी आसिफ़ा ? फिलहाल इतने से ही काम चला लो , आगे शायद यह सब बाईज़्ज़त बरी हो जाएँ क्युँकि तुम “आसिफ़ा” हो।

-मोहम्मद ज़ाहिद

(यह विचार लेखक की निजी हैं इनसे janamanas.com का सहमत होना ज़रूरी नहीं है)

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