जयपुर: मुस्लिम बाहुल्य क्षेत्रों में धड़ल्ले से चल रहा है स्मैक का धंधा, नशे की गिरफ्त में युवा पीढ़ी


राजस्थान की राजधानी जयपुर में धीमे जहर स्मैक का नशा गुलाबी नगरी के कोने कोने में फैल चुका है. हजारों युवा इस नशे की गिरफ्त में आ चुके हैं. स्मैक की सप्लाई भी क्षेत्र के ही लोग कर रहे हैं, जो हर रोज 200 से अधिक स्मैक की पुडिय़ा बेच कर युवा पीढ़ी की सांसोंं में नशीला धुंआ घोल रहे हैं. स्मैक की एक पुड़िया की कीमत 300 से 400 रूपये तक होती है.

जयपुर में कई ठिकानों पर स्मैक का धंधा चोरी छिपे और कहीं कहीं तो खुलेआम ही हो रहा है, जहां 300 से 400 रुपए में स्मैक की पुड़िया बड़ी आसानी से मिल जाती है. ऐसा नहीं है कि पुलिस को इसकी जानकारी ना हो, लेकिन आरोप है कि पुलिस व प्रशासन की गंभीरता ना होने और मिलीभगत से ही यह कारोबार पूरे जयपुर में फैल चुका है.

सूत्र बतातें है कि स्मैक की 1 ग्राम की पुडिया 2500 रुपए में आती है, इसकी यहां 14 प्वांइट की 8 पुडिया बनती है, जो 300 से 400 रुपए में बिकती है. यानि 1 ग्राम के 32 सौ रुपए तक वसूले जाते हैं.

जिस तरह से शराब पीने वाले बार में जाकर शराब पी सकते हैं उस तरह से स्मैक पीने वालों के लिए ऐसी कोई फिक्स जगह नहीं है. स्मैक का नशा करने वाले कब्रिस्तान, सुनसान जगह, गंदे नाले, झाड़ियां व जंगल इस तरह की जगह पर बैठ कर नशा करते हैं. इसीलिए जयपुर के कब्रिस्तान, शमशान, पुराने खंडहर, आजाद नगर व आमागढ़ का पहाड़ी एरिया तथा सभी सूनी जगहों पर यह व्यापार तेजी से पनप रहा. स्मैक का नशा करने वाले लोगों का कहना है कि ऐसी सुनसान जगहों पर अमूमन कोई आता नहीं है इसलिए बिना किसी डर के वो यहां पर नशा कर सकते हैं. नशा करने वाले लोगों का कहना है कि गंदगी वाली जगह पर नशा करने में एक अलग ही आनंद की अनुभूति या “फील” आता है.

इस नशे को करने वाले और इसको बेचने वाले लोगों में ज्यादातर 14 से लेकर 30 साल तक के युवा शामिल हैं.

जानकार लोगों का कहना है कि जो नशा यहां बेचा जा रहा है वो असली नहीं है इसको केमिकल से बनाया जाता है जो अमीर और सेलेब्रिटी नशा करते हैं वो बहुत महंगा होता है.
जयपुर के मुस्लिम बाहुल्य इलाकों में किराने की दुकान पर भी पंक्चर जोड़ने वाली ट्यूब सुलोशन या सुलोचन बड़ी आसानी से मिल जाती है जिसका इस्तेमाल भी सस्ते नशे के तौर पर किया जाता है. यही नहीं मुस्लिम बाहुल्य इलाकों में खुली हुए मेडिकल स्टोर पर भी बड़ी आसानी से नशे की दवाइयां मिल जाती है.

जयपुर के नशा मुक्ति केंद्र पर काम करने वाले एक डॉक्टर का कहना है कि उनके पास आने वाले 10 में से 7 मरीज मुस्लिम समुदाय के होते हैं.

स्मैक बेचने वाले को पेडलर कहा जाता है सूत्रों से हमें मालूम चला कि एक पेडलर द्वारा 1 दिन में ₹80000 से ज्यादा का माल बेचा जाता है. हर इलाके में तीन से चार पेडलर होते हैं. बड़े तस्कर द्वारा छोटे पेडलर को एक फोन दिया जाता है और शाम को वह फोन वापस जमा करा देते हैं उसी फोन में बेचने वालों और खरीदने वालों सब के नंबर होते हैं.

स्मैक बेचने वाले एक पेडलर ने हमें बताया कि जो स्मैक पीने वाले लोग होते हैं वो ही आगे चल कर पेडलर बन जाते हैं. जब स्मैक खरीदने के पैसे नहीं होते तब लोग या तो छोटी मोटी चोरियां करना शुरू कर देते हैं या फिर पेडलर बनकर दूसरे लोगों को स्मैक बेचना शुरू कर देते हैं जिससे उनके स्मैक पीने का खर्चा निकल जाता है.

पेडलर ने बताया कि ऐसा नहीं है कि सिर्फ गरीब या मजदूरी करने वाले लोग ही स्मैक का नशा करते हैं कुछ अमीर घरों के लोग हमारे पास कार से भी स्मैक खरीदने आते हैं.

सूत्र बताते हैं कि शहर के चार दरवाज़ा, बांस बदनपुरा, ईदगाह, आमागढ़, नाहरी का नाका, शास्त्री नगर सहित ज्यादातर मुस्लिम इलाकों के थाने के बीट कांस्टेबल से लेकर दारोगा तक नशे के इस काले धंधे से वाकिफ हैं. हालांकि पुलिस व पुलिस के आला अधिकारियों द्वारा समय-समय पर ऐसे अपराधियों को पकड़ने के लिए अभियान भी चलाए जाते हैं. उनमें धरपकड़ भी की जाती है. लेकिन नशा तस्करों का इतना गहरा जाल बन चुका है की पुलिस की पकड़ में हमेशा छोटे-मोटे तस्कर ही आते हैं बड़ी मछलियां अभी भी पुलिस की पकड़ से दूर हैं.

नशे के आदी छोड़ना चाहते हैं नशा

नशे की जद में आए कई युवाओं का उनके परिजनों ने नशा मुक्ति केंद्र पर ले जाकर इलाज भी करवाया, मगर घर वापस लौटने पर वे फिर से इस धीमे जहर का शिकार बन रहे हैं. हालांकि इससे पीड़ित जो लोग हैं वो कोई अपराधी नहीं है ना ही हमें उनसे अपराधियों जैसा सलूक करना चाहिए. अधिकतर नशा करने वाले लोगों से बात करने पर पता लगा कि वह बीमार हैं और इसे छोड़ना भी चाहते हैं, लेकिन वह इतने आदी हो चुके हैं कि वह इसे इस्तेमाल नहीं करें तो उनके शरीर में तरह-तरह के दर्द और तकलीफ जैसी परेशानी का सामना करना पड़ता है. अब उन्हें मजबूरन यह नशा लेना पड़ रहा है. नशा करने वाले इसको तोड़ या टूटन नाम देते हैं.

नशा करने वाले युवाओं में नपुंसकता भी बढ़ रही है, जिन युवाओं की शादी हो चुकी है अब उनके बच्चे होने में भी परेशानी आ रही है.

अधिकतर 14 से 30 साल के युवा ड्रग माफिया के सॉफ्ट टारगेट बने हुए हैं. सिगरेट-तंबाकू गुटखा की बात छोड़ि‍ए, यहां युवा चरस, गांजा, अफीम और स्मैक से लेकर नशीले इंजेक्शन और गोलियों का खुलेआम सेवन कर रहे हैं.

जयपुर के मुसलमानों की धार्मिक आस्था से जुड़ी मौलाना साहब की दरगाह के आस पास का पूरा इलाका व उसके सामने स्थित कब्रिस्तान पूरे जयपुर का हॉटस्पॉट बन चुका है.

शहर में बढ़ी चोरी की वारदातों में भी अधिकतर ऐसे ही नशे के आदी युवा शामिल हैं. पुलिस चोरी व झपटमारी की वारदातों में कई बार ऐसे अपराधियों को गिरफ्तार कर चुकी है, जिनकी तलाशी में नशीले पदार्थ बरामद होते हैं. पूर्व में किसी अपराध में शामिल न होने और परिवार की साफ सुथरी छवि होने के कारण पुलिस उनसे गहन पूछताछ करती है. पुलिस यह पता लगाने का प्रयास करती है कि उन्हें चोरी या अन्य अपराध करने की क्या आवश्यकता पड़ी थी. पूछताछ में बस यही सामने आता है कि वह नशा करने लगे हैं और नशे की पूर्ति के लिए उन्होंने यह अपराध किया है.

इन जगहों पर आसानी से उपलब्ध हो जाते हैं स्मैक व अन्य नशे

300-400 रुपये कीमत में बेचे जाने वाले स्मैक (सफेद पाउडर) व चरस का सबसे ज्यादा व्यापार शहर के चार दरवाजा, बास बदनपुरा, ईदगाह कॉलोनी, रामगंज, आमागढ़, जवाहर नगर, खो नागोरियान, नाहरी का नाका, भट्टा बस्ती और शास्त्री नगर सहित अधिकतर मुस्लिम इलाकों में बड़े पैमाने पर किया जा रहा है. इसकी जानकारी न सिर्फ आमजन को है बल्कि, प्रशासन और पुलिस महकमे के अधिकारियों को भी है.

हालांकि पुलिस द्वारा समय समय पर शहर में बड़े पैमाने पर अभियान चलाकर कार्रवाई तो हुई मगर ‘बड़ी मछली’ हमेशा पुलिस की पकड़ से दूर रही है. पुलिस छुटभैय्या तस्करों को गिरफ्त में लेकर कर्तव्यों की इतिश्री करती रही है लेकिन नेटवर्क तोड़ने में सफल नहीं हुई.

इन दिनों गलता गेट थाने में नए नियुक्त थानाधिकारी सतीश शर्मा इस पर काफी गंभीर नजर आए उनका कहना है कि राजधानी में नशे का फैलता नेटवर्क वाकई में चिंता की बात है, लेकिन पुलिस इस नेटवर्क को तोड़ने के लिए बड़े पैमाने पर कार्रवाई कर रही है. विशेष अभियान के तहत 2 टीमें बनाकर लगातार कार्यवाही की जा रही है बेचने खरीदने वालों को पकड़ा जा रहा है. जल्द सकारात्मक परिणाम दिखेंगे. नशे के तस्करों को बख्शा नहीं जाएगा.
प्रशासन की और से ऑपरेशन क्लीन स्वीप चलाया जा रहा है जिसके तहत थाना स्तर पर दो टीमें गठित की गई हैं पिछले दिनों हमने 60 से 70 नशा खोरों को पकड़ा है.

ये हैं इलाज के तरीके

एडिक्शन छुड़वाना बहुत मुश्किल भी नहीं है. अगर कोई एडिक्ट हो गया है तो उसे विशेष डॉक्टर से मिलने में हिचकिचाना नहीं चाहिए. ऐसा कोई शख्स फैमिली, फ्रेंड्स या सर्किल में हो तो उसे साइकायट्रिस्ट के पास ले जा सकते हैं. फैमिली को समझना पड़ेगा कि यह एक बीमारी है, न कि उसकी गलती. कोई जानबूझकर नशा कर रहा है और छोड़ना नहीं चाहता, जैसी बात नहीं सोचनी चाहिए. बीमारी है तो इसका इलाज भी है. मरीज को इलाज तक पहुंचने में और इलाज में मदद करें. मरीज को फिर से सुधरने के लिए कुछ मौका दें, थोड़ा वक्त दें. आजकल होम्योपैथी, यूनानी, एलोपैथी तीनों ही पेथियों में इसका इलाज संभव है. इन दिनों कई सामाजिक संस्थानों और अस्पतालों द्वारा नशा मुक्ति का इलाज निशुल्क भी किया जा रहा है.

(विशेष सहयोग – फरहान इसराइली)


 

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