मेरे बेकसूर बेटे ने अपनी ज़िंदगी के 12 साल और 6 महीने जेल में गुज़ारे, इसका ज़िम्मेदार कौन?


राजस्थान की राजधानी जयपुर में 13 मई 2008 को 8 अलग-अलग जगहों पर हुए बम धमाकों से पूरा शहर दहल उठा था। इस आतंकी घटना में 71 लोगों की मौत हुई थी और करीब 176 लोग घायल हो गए थे। जयपुर ब्लास्ट मामले में एटीएस ने 11 लोगों को नामजद किया था।

शाहबाज अहमद को 25 अगस्त 2008 को जयपुर पुलिस ने जयपुर में हुए बम ब्लास्ट के मामले में लखनऊ से गिरफ्तार किया था। 18 दिसम्बर 2019 को शाहबाज़ को इस केस से जुड़े 8 मामलों में जिला एंव सत्र न्यायालय जयपुर द्वारा बरी कर दिया गया था।

शाहबाज पर यह आरोप था कि उन्होंने जयपुर बम ब्लास्ट के बाद इसकी जिम्मेदारी लेते हुए मीडिया को ईमेल किया था।

दिसम्बर 2019 में शाहबाज़ के 8 मुकदमों में बरी होकर घर जाने का समय आने पर राजस्थान पुलिस की ATS सेल ने उस पर जयपुर में नवें बम के पाये जाने के मामले में 25 दिसम्बर 2019 को गिरफ्तार कर लिया जिससे शाहबाज की रिहाई रुक गई। पुलिस ने इस मामले में 6 महीने बाद 24 जून 2020 को चालान पेश किया।

इस नवें मामले में सुनवाई करते हुए राजस्थान हाई कोर्ट के एकल पीठ के न्यायाधीश पंकज भंडारी ने कहा कि यह आश्चर्य की बात है कि शाहबाज़ इतने लम्बे समय से जेल में बंद हैं। न्यायाधीश द्वारा अतिरिक्त महाधिवक्ता से पूछे जाने पर कि शाहबाज़ के 12 साल से हिरासत में रहने के बावजूद, इस नवें केस में गिरफ्तार क्यों नहीं किया गया था, इस पर अतिरिक्त महाधिवक्ता कोई जवाब नहीं दे पाए.

अतिरिक्त महाधिवक्ता यह भी नहीं बता सके कि जब शाहबाज़ को जयपुर बम ब्लास्ट से जुड़े 8 मामलों में बरी किया जा चूका है, तो उसे अब इस नवें मामले में क्यों गिरफ्तार किया गया है?

न्यायाधीश महोदय ने यह माना कि क्योंकि यह FIR पिछले 8 मामलों जैसी ही है, जिन सबमें शाहबाज़ बरी हो चुके हैं, इसलिए इस नवें मामले में भी वो जमानत के हकदार हैं.

नवें मामले में जमानत मिलने के बाद शाहबाज को 1 मार्च 2021 को रात 10 बजे जयपुर सेंट्रल जेल से रिहा कर दिया गया.

शाहबाज़ अहमद के विरुद्ध 2 अन्य मार-पीट के मामले भी थे. 30 मार्च 2019 को जेल प्रशासन ने शाहबाज़ पर आरोप लगाया गया था, कि उन्होंने जेल के कर्मचारियों के साथ मारपीट की है. इसमें उच्चतम न्यायालय ने 8 जनवरी 2021 को यह कहते हुए ज़मानत दे दी कि 11 चोटें खुद शाहबाज़ को आई हैं, इसलिए जमानत देना ही सही निर्णय है. साथ ही उच्चतम न्यायालय ने राज्य सरकार के वरिष्ठ अधिकारी द्वारा इस घटना की जांच करने का भी आदेश दिया था.

शाहबाज के पिता मुमताज़ अहमद ने बताया कि हमारे बेटे के साथ जो ज्यादती और नाइंसाफी हुई है उसकी ज़िम्मेदारी कौन लेगा? उसने बेकसूर होते हुए भी अपनी जिंदगी के कीमती 12 साल और छह महीने जेल में गुजार दिए आज इस बात का जवाब कौन देगा? क्या कोई सरकार इसका मुआवजा दे सकती है?

सरकार पर केस करने के सवाल पर वो कहते हैं कि अब सरकार पर केस करके भी हमें क्या मिलेगा हम तो यही चाहते हैं कि जो भी केस चल रहे हैं वो सब भी जल्दी ही खतम हो जाए. अब तक हमारे करीब 10 लाख रूपये इन अदालतों के चक्कर लगाने में ही खर्च हो गए हैं.

मुमताज अहमद का उत्तर प्रदेश के भदोही में गलीचे (कारपेट) बनाने का बिजनेस है. वो बताते हैं कि शाहबाज की शादी 2002 में यूपी के सुल्तानपुर में हुई थी, शादी के बाद ही शाहबाज अपनी फैमिली के साथ लखनऊ रहने चला गया था, वहां से 25 अगस्त 2008 को जयपुर बम ब्लास्ट के मामले में पुलिस ने उसे गिरफ्तार कर लिया था. शाहबाज के 3 बच्चे है जिनसे अब वो 12 साल बाद मिलेगा.

जमाते इस्लामी हिंद राजस्थान के प्रदेश महासचिव डॉ मोहम्मद इक़बाल सिद्दीक़ी ने बताया कि हम शुरू से यही कहते आएं हैं कि शाहबाज बेकसूर है और आज वो बात साबित भी हो गई है. पुलिस ने अपनी पोल खुल जाने के डर से बेगुनाही साबित हो जाने के बाद भी आसानी से रिहा नहीं किया और 8 केस में बरी हो जाने के बाद एक 9 वें केस में फिर से गिरफ्तार कर लिया. अल्लाह का शुक्र है कि आज शाहबाज को उस नवें केस में जमानत मिल गई है अब वो अपने परिवार के साथ सुकून से रह सकेगा.

एसोसिएशन फॉर प्रोटेक्शन ऑफ सिविल राइट ( एपीसीआर) के प्रदेश महासचिव मुज़म्मिल हुसैन रिज़वी ने बताया कि एपीसीआर के पूर्व प्रदेशाध्यक्ष स्व. एडवोकेट पैकर फारूक खुद इस केस को देख रहे थे. हमें बहुत खुशी है कि हम सब की कोशिशों की वजह से आज शाहबाज जेल से बाहर आकर खुली हवा में सांस ले पा रहा है. अभी और भी जो बेकसूर लोग जेल में झूठे मुकदमों में बंद है एपीसीआर उन सब की रिहाई के लिए भी कोशिश कर रही है.

इस पूरे मामले पर बात करते हुए पीयूसीएल राजस्थान की प्रदेशाध्यक्ष कविता श्रीवास्तव कहती हैं कि हमें ख़ुशी है की आखिरकार शाहबाज़ अहमद को राजस्थान हाई कोर्ट ने जमानत दे दी है.

उन्होंने बताया कि PUCL ने अगस्त 2008 में अपनी टीम द्वारा किये गए इस मामले के स्वतंत्र तथ्यान्वेषण के बाद ही कह दिया था कि शाहबाज़ पर लगाये गए सभी आरोप झूठे हैं . यह तथ्यान्वेषण PUCL लखनऊ और जयपुर ने मिलकर किया था.

वो कहती हैं कि पीयूसीएल का मानना है कि किसी बेगुनाह व्यक्ति से 12 साल उसकी आज़ादी छीनना अपने आप में अपराध है. शाहबाज़ के 12 साल तो हम लौटा नहीं सकते, लेकिन जिन्होंने उन्हें झूठे मामलो में फसाया उन उच्च पुलिस अधिकारीयों के खिलाफ FIR दर्ज हो और कड़ी प्रशासनिक व कानूनी कार्यवाही की जानी चाहिए.

आगे वो कहती हैं कि शाहबाज के 3 बच्चे, पत्नी, माँ-बाप, भाई-बहन, सास-ससुर और अन्य रिश्तेदारों को भी अत्यंत मानसिक पीड़ा से गुजरना पड़ा है साथ ही उन्हे आतंकवादी के परिवार-जन होने का कलंक सहना पड़ा. शाहबाज़ को आतंकवादी होने के कलंक के साथ 12 साल 6 माह जेल में गुजारने पड़े इसकी भरपाई के लिए पीयूसीएल शाहबाज़ के लिए एक करोड़ रूपये के मुआवजे की मांग करता है.


 

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