Women’s Day : महिला किसानों के चश्मे से किसान आंदोलन


यूनाइटेड नेशन ने हर साल 8 मार्च को अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस के रूप में मनाने का फैसला किया। महिलाओं की उपलब्धियों का सम्मान करने के लिए अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस मनाया जाता है। इस वर्ष महिला दिवस की थीम ‘चूज टू चैलेंज’ रखी गई है। जिसका अर्थ है- चुनौती से परिवर्तन आता है, शायद इसी परिवर्तन के लिए आज महिलाएं किसी न किसी रूप में परिवर्तन की मिसाल बनती जा रही हैं।

भारत सरकार द्वारा लाए गए कृषि कानूनों के विरोध में दिल्ली बॉर्डर पर हजारों महिलाएं अपने परिवारों के साथ दिल्ली आ पहुची हैं। किसान आंदोलन 26 नवम्बर से शुरू हुआ जिसे अब 100 दिन से भी अधिक हो गए हैं।

इसी आंदोलन में जुड़ी महिलाओं में से एक हैं – सुदेश गोयत,

जो 100 दिन से लगातार किसान आंदोलन में सक्रिय रूप से अपनी उपस्थिति दर्ज करवा रही हैं।

सुदेश गोयत आंदोलन में पहले दिन से अपनी भागीदारी निभा रही हैं, सुदेश हमेशा सामाजिक न्याय और अधिकारों की लड़ाई में आगे रहती हैं। वो मानती है कि जीवन मे हर व्यक्ति को अपने अधिकारों के प्रति सजग होना चाहिए और उन्हें प्राप्त करने के लिए लड़ाई लड़नी चाहिए।

सुदेश का यह हौसला और बढ़ जाता है जब उनके परिवार से उनको इस तरह के कार्यों के लिए हौसला अफजाई होता है , उनके बच्चे और पति के अलावा माता – पिता और ससुराल पक्ष भी सुदेश के इस तरह के कार्यों के लिए उन्हें बधाई देते हैं।

सुदेश के पिता किसान हैं और पति भारतीय सेना में अधिकारी। सुदेश बताती हैं कि इस आंदोलन में महिला साथियों की भूमिका देख कर हमारी हिम्मत और भी बढ़ जाती है। सुदेश हमेशा महिला अधिकारों की बात करती हैं, इससे पहले भी वह “वन रैंक वन पेंशन” मुद्दे पर लगातार 810 दस दिन आंदोलन में सक्रिय रहीं। सुदेश का कहना है कि उनके तीन करवाचौथ आंदोलन के बीच ही मनाए गए।

सुदेश बताती हैं कि हजारों की संख्या में महिलाएं यहां किसान आंदोलन में आती हैं और अपनी भागीदारी और हक़ की बात करती हैं। आज़ाद भारत मे पहली बार किसान, मजदूर और सैनिक परिवारों की महिलाएं इस आंदोलन में न सिर्फ शामिल बल्कि बेहतरीन नेतृत्व भी कर रही हैं। महिलाएं अपने अधिकारों के प्रति सजग हैं और अपनी लड़ाई को लड़ना भी जानती हैं। आज की महिलाएं अपने घर तक ही सीमित नहीं रही हैं वो अब हर क्षेत्र में आगे बढ़ चुकी हैं। आज की महिलाएं ट्रैक्टर चलाकर यहां तक आती हैं। उन्हें खुशी है कि जिस भारत में महिला को एक महिला ही आतंकी बताती है उस भारत में महिलाओं की इंटरनेशनल मैगजीन “टाइम” ने अपने कवर पेज पर जगह दी है। जो महिलाएं यहां किसान आंदोलन में त्याग और तप के साथ इस आंदोलन में शामिल है उन्हें यह महिला दिवस स्वरूप गिफ्ट दिया है टाइम मैग्जीन ने। सुदेश कहती हैं कि हम किसान परिवार की महिलाएं है। हमें फसल काटना भी आता है और कपास चुगना भी, खेत में पानी देना हो या उसकी मेंढ़ पर मिट्टी का डोला देना, हम सब जानते हैं। हमें गाय, भैंस का दूध निकालना भी आता है। हम AC कमरों में बैठने वाले किसान नहीं हैं।

सुदेश पुरानी घटना का जिक्र करते भावुक हो जाती हैं। जब “वन रैंक वन पेंशन” आंदोलन कर रही थी, तब उन पर तीन बार लाठीचार्ज किया गया और 30 अक्टूबर 2017 को उन्हें मंच से घसीट कर थाने ले जाया गया। उस घटना को सुदेश जीवनभर नहीं भूल पाएंगी और न ही वर्तमान सरकार को कभी माफ करेगी ऐसा सुदेश बताती हैं।

महिलाओं को बहुत ज्यादा समस्याओं का सामना करना पड़ता है, बुजुर्ग महिलाएं बार-बार ट्रॉली में उतर चढ़ नहीं सकती और ऐसी महिलाएं एक-एक घूंट पानी पीती हैं ताकि उन्हें बार बार वॉशरूम ना जाना पड़े। शौचालयों की सफसी नहीं है और बीच में सरकार ने शौचालय हटवा भी दिए थे। जिससे महिलाओं को काफी ज्यादा परेशानियों का सामना करना पड़ा।

सुदेश को जब हमने पूछा कि उनमें इतनी हिम्मत कहाँ से आती है। इस पर सुदेश बताती हैं कि हमारी किसान माताओं ने जिन्हें इस क़ानून को वापस करने के लिए अपने बेटों को भेजा है, उनका शव जब उन माताओं के सामने गया तो हमें दुःख होता है और उन चेहरों को देखते है जिन्होंने अपने पति, बेटे, भाई खोए हैं तो हमें हमारी यह समस्याएं नजर ही नहीं आती।

सुदेश कहती हैं कि जब प्रधानमंत्री जी अपनी जिद पर अड़े हुए हैं तो हम भी लाखों किसान अपने वजूद पर अड़े हुए हैं। महिला दिवस पर सभी महिलाओं के नाम सन्देश में सुदेश कहती हैं कि सभी महिलाएं बेड़ियां तोड़कर अपने अधिकारों की लड़ाई के लिए सड़कों पर निकले, अपराध न सहे, हर अपराध पर अपनी आवाज उठाएं और आगे आएं।

सुदेश की इस लड़ाई में उनके पति और बच्चों का उन्हें पूरा सहयोग मिलता है। बचपन से ही सामाजिक अधिकारों के लिए लड़ने वाली जसकौर हमेशा किसान, मजदूर की लड़ाई में आगे रही हैं । जसकौर सालो से किसान मजदूर के हक़ की लड़ाई लड़ती रही हैं ।

इसी आंदोलन में अपनी सक्रियता से अपनी भागीदारी निभा रही हैं – जसकौर।

जसकौर शुरुआत से ही किसानों के लिए काम कर रही हैं और जसकौर 26 नवम्बर से टिकरी बॉर्डर पर किसान आंदोलन से जुड़ी हुई है। जसकौर यहां मंच संचालन कमेटी और फंड कमेटी की सदस्य भी हैं, जो भी फंड और सहयोग मिलता है उसका ब्यौरा रखती हैं।

महिलाओं की भागीदारी पर जसकौर बताती हैं कि महिलाओं पर घर की जिम्मेदारी अधिक होती है। उन्हें घर पर भी काम होता है और बच्चों की शिक्षा और उनका खयाल भी रखना होता है। इन तकलीफों के बावजूद भी बहुत संख्या में महिलाएं इस आंदोलन में अपनी भागीदारी निभा रही हैं। क्योंकि उनके पास अब कोई विकल्प नहीं है। यह उनके अधिकार की लड़ाई है। जसकौर देश की सभी महिलाओं को महिला दिवस के मौके पर कहना चाहती हैं कि हम समझते हैं कि यहां हर कोई नहीं आ सकता है, लेकिन जो जहां भी है, वहीं से हमारा सहयोग कर सकती हैं, अपने ऑफिस और पड़ोसियों के साथ बात करें, इस आंदोलन के बारे में बात करें, सोशल मीडिया से लोगों को बताएं।

जसकौर का कहना है कि यह आंदोलन सिर्फ किसानों के खिलाफ ही नहीं, बाकी जितने भी जीव जंतु, पशु-पक्षी और जो व्यक्ति अन्न खाता है उन सबके खिलाफ है।

उनसे जब पूछा गया कि गर्मी का मौसम आ रहा है तो इस बारे में ये किसान महिलाएं क्या सोचती हैं?

जसकौर बताती हैं, उन्हें भी लगता है कि आंदोलन लंबा चलेगा और सकरार अभी किसान आंदोलन को भुलाकर पांच राज्यों में होने वाले विधानसभा चुनावों में व्यस्त हो गई है। परिस्थिति चाहे कैसी भी हो हम सब इस आंदोलन से घर नही जाएंगे। ऐसा जसकौर मानती हैं।

महिलाओं की इस आंदोलन में भागीदारी बताती है कि महिलाएं भी इन कृषि कानूनों के खिलाफ हैं और वो अपनी जमीन के लिए हर लड़ाई लड़ने को तैयार हैं। इस लड़ाई में वो एक मिसाल बनकर उभर कर आई हैं। भारतीय समाज में महिलाओं को घर में ही देखा गया है लेकिन यह पहला ऐसा प्रोटेस्ट हैं जिसमें महिलाओं ने अपनी शक्ति दिखाई है। महिलाओं ने अपने हक सुनिश्चित करने के हर उस पहलू को छुआ है जिसे अभी तक समाज देख नहीं पा रहा था। इस आंदोलन में महिलाओं की सक्रियता बताती है कि वो हर जगह अपनी भागीदारी चाहती हैं। फिर चाहे वो कोई भी आंदोलन हो, क्षेत्र हो या सामाजिक लड़ाई।

सुरेश अलखपुरा, लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं 


 

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