नज़रिया

अपने ही देशवासियों को झूठ परोसता बेशर्म मीडिया

By khan iqbal

February 28, 2019

भारतीय मीडिया निहायत ही बदमिज़ाज और सत्ता का चाटुकार है. पाकिस्तान ने अभिनंदन को छोड़ने का फैसला लिया तो हेडलाइंस लग रही हैं: ‘झुक गया पाकिस्तान’, ‘डर गया पाकिस्तान’

मीडिया को टीआरपी और सर्कुलेशन के लिए तनाव चाहिए. युद्ध जैसे हालात चाहिए. इसके दो फ़ायदे हैं. पहला, तथ्यों की परवाह नहीं रहती. कुछ भी बोलकर दूसरे देश को गरियाते रहिए, सवाल कोई नहीं करेगा. दूसरा, हिंसक तस्वीरें दिखाकर लोगों को अपने साथ बांधे रखिए.

आप पत्रकारों से पूछिएतो ज़्यादातर युद्ध रिपोर्टिंग करने की चाहत जताते मिलेंगे. अपवादों को छोड़कर रिपोर्टिंग के नाम पर कूड़ा परोसते रहेंगे. इन्हें तनावग्रस्त इलाक़ा चाहिए. राहुल कंवल बीच में माओवादियों पर रिपोर्टिंग करने पहुंच गए और जोकरई करके समझदार लोगों के बीच बदनाम हो गए.

आर्मी के हेलीकॉप्टर और बैरकों में बैठकर ये लोग रिपोर्टिंग करते हैं. मुंबई पर जब अटैक हुआ था तो एक से एक नमूने रिपोर्टरों को देश ने देखा कि कैसे लेट-लेटकर ड्रामा कर रहे थे. मूवमेंट की ख़बरें लाइव दिखा रहे थे. कोई ज़िम्मेदारी नहीं, कोई पत्रकारीय नैतिकता नहीं.

Whatsapp पर भुजाएं फड़काने वाली भारत की इस पीढ़ी ने क़ायदे से एक भी युद्ध नहीं देखा है, इसलिए उन्मादी बने फिरते हैं. करगिल युद्ध इतिहास की दृष्टि से पिद्दा सा युद्ध था. कैजुअलिटीज़ नहीं देखी हैं. लाखों लोगों को मरते नहीं देखा है. शहरों को खंडहर में तब्दील होते नहीं देखा है. इन्हें युद्ध और वीडियो गेम में कोई फर्क नहीं लगता.

टीवी नहीं ख़रीदने के फ़ैसले पर मैं इसलिए संतुष्ट रहता हूं. जो देखना होता है इंटरनेट पर अपनी मर्जी से देखता हूं. देश में आधे फ़साद की जड़ टीवी स्क्रीन के उस पार बैठे अधकचरी-ज़हरीली समझ वाले चेहरे हैं.

बेशर्मी से सरकार के प्रवक्ता बन गया है मीडिया. हर बात पर मोदी-मोदी चिल्लाता रहता है. कभी-कभी चिल्लाने की वजह ख़ुद ही ढूंढ लेता है. अजब दौर है कि सवाल सरकार से पूछने के बजाए विपक्ष से पूछे जा रहे हैं. पॉलिसी पर भी विपक्ष जवाब दे, सरकार पर उठाए गए सवालों पर भी विपक्ष जवाब दे और मीडिया सिर्फ़ समवेत स्वर में चौकीदार के नाम का मृदंग बजाए.

दिलीप ख़ान