क्या लॉकडाउन फेल हो गया, कोरोना संक्रमण में भारत ने चीन को पीछे छोड़ा !


एक शिक्षक धर्म व नागरिक धर्म के वास्ते आपके समक्ष कुछ तथ्य एवं कुछ सवाल रख रहा हूं। निष्कर्ष आप स्वयं निकाल लीजिएगा।
1. कल 1 दिन में 8000 से अधिक कोरोना केस पॉजिटिव आए हैं। क्या आपने किसी अखबार के मुख्य पृष्ठ पर अथवा टीवी चैनल पर कोई हैडलाइन देखी हैं ? यदि नहीं, तो आखिर क्यों ?

2. 24 मार्च को जब तालाबंदी घोषित हुई तब देश में कुल 536 कोरोना पॉजिटिव थे, 14 अप्रैल को 11485, 30 अप्रैल को 42778, 17 मई को 95698, एवं 30 मई तक 1,81,829 पॉजिटिव थे। सरकार का दावा है कि उसके द्वारा घोषित तालाबंदी से कोरोना के विस्तार की गति पर रोक लगी है। मतलब अब तालाबंदी हटने से यह विस्तार की गति बढ़ेगी। यदि इस रफ्तार से भी संक्रमण बढ़ता है तो 31 अगस्त तक यह संख्या लगभग एक करोड़ 20 लाख होगी।

मतलब प्रत्येक 100 नागरिकों में एक कोरोना पॉजिटिव होगा। अगर गति बढ़ गई तो आप खुद अनुमान लगा सकते हैं। वैसे भी वर्तमान आंकड़ों के अनुसार ही भारत कोरोना संक्रमण के मामलों एशिया में सबसे ऊपर स्थान पर है। सवाल यह है कि तालाबंदी हटाने का आखिर तार्किक आधार क्या है ? क्या संक्रमण का खतरा कम हो गया अथवा सरकार ने संक्रमण से लड़ने की तैयारी कर ली ? आप खुद निष्कर्ष निकाल लीजिए।

3. भारत सरकार कोरोना संकट में अपनी उपलब्धियों की तुलना विकसित देशों की प्रति लाख जनसंख्या में संक्रमण के अनुपात से करके कर रही है।


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लेकिन क्या यह तुलना टेस्ट की संख्या के आधार पर नहीं की जानी चाहिए ? आंकड़ा यह है कि जिन 13 विकसित देशों से भारत सरकार ने तुलना की है उनमें प्रति दस लाख 50,000 से अधिक टेस्ट किए गए हैं तथा भारत में यह संख्या 2300 है।

गुजरात सरकार ने उच्च न्यायालय में हलफनामा दायर करके कहा है कि यदि टेस्ट की संख्या बढ़ाई जाएगी तो अधिकांश टेस्ट पॉजिटिव आएंगे। जिससे जनता में कोरोना का भय व्याप्त हो जाएगा। इसलिए सरकार जानबूझकर टेस्ट कम कर रही है।

विकसित देशों की तुलना में 25 गुना कम टेस्ट करवाना क्या बड़ी उपलब्धि है ? अथवा क्या प्रति लाख कम संक्रमण बड़ी उपलब्धि है ? अथवा क्या कम टेस्ट की आड में कम आंकड़े दिखाना बड़ी उपलब्धि है?

4. भारत सरकार ने एक आरटीआई के जवाब में कहा है कि 15 जनवरी से 26 मार्च तक 80 लाख लोग विदेशों से भारत में आए जिनमें से केवल 19% अर्थात 15 लाख लोगों की स्क्रीनिंग (test नहीं) की गई। मतलब 81% विदेशी इस समयावधि में बिना स्क्रीनिंग की देश के विभिन्न भागों में गए।

क्या आपको नहीं लगता कि भारत में वर्तमान कोरोना संकट इसी गलती की कीमत चुका रहा है ? आखिर इस लापरवाही की जिम्मेदारी किसकी ?

5. कल सरकार ने अजीम प्रेमजी फाउंडेशन के एक छात्र की आरटीआई के लिखित जवाब में कहा है कि पीएम केयर फंड कोई पब्लिक अथॉरिटी नहीं है। आरटीआई अधिनियम 2005 के अनुसार वे संस्थाएं जो संविधान अथवा कानून द्वारा रचित होती है तथा जिन्हें पूर्ण या आंशिक रूप से सरकार द्वारा नियंत्रित एवं वित्तीय सहायता उपलब्ध करवाई जाती है पब्लिक अथॉरिटी कहलाती है। अर्थात इस परिभाषा के अनुसार पीएम केयर फंड पूरी तरह से निजी कोष है। क्या किसी महामारी के बहाने प्रधानमंत्री आम जनता से एवं कंपनियों से सीएसआर के पैसे को देने की अपील कर सकते हैं ? क्या लोकतंत्र में प्रधानमंत्री कैसे निजी कोष बना सकते हैं ?

आखिर में एक सवाल को छोड़कर जा रहा हूं कि जब तालाबंदी की गई थी तो प्रधानमंत्री जी ने दो बार राष्ट्र के नाम बैक टू बैक संबोधन देकर लोगों को विश्वास में लिया था। लेकिन तालाबंदी हटाने पर देश के लोगों को विश्वास कौन दिलाएगा ? क्या यह स्थिति इस गाने के शब्दों के अनुसार तो नहीं है “अब तुम्हारे हवाले वतन साथियों” आत्मनिर्भर बनना है।

मैंने आंकड़े रखे हैं, निष्कर्ष आप निकाल लीजिएगा। उचित लगे तो लोगों तक वास्तविक आंकड़े पहुंचाने में मदद करिएगा। मुझे लगता है मीडिया में अब वास्तविक आंकड़े आपको देखने को प्राप्त नहीं होंगे।

(सी.बी. यादव)
सहायक प्रोफेसर ,राजस्थान विश्वविद्यालय

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