तेलंगाना पुलिस ने भी वो ही घिसा-पिटा रवैया अपनाया, जिसमें मामले की गंभीरता पर विचार करने से पहले महिला के चरित्र के बारे में सवाल पूछे गए।

राष्ट्रीय

हैदराबाद : कड़े कानूनों के बावजूद महिलाओं को लेकर पुलिस का औचक रवैया बेहद खतरनाक है !

By अवधेश पारीक

December 02, 2019

दिसंबर 2012 में नई दिल्ली में हुई एक बलात्कार और हत्या की घटना ने पूरे देश को हिला दिया, जिसके बाद बड़े पैमाने पर पूरे देश में विरोध  प्रदर्शन हुए और उस समय की केंद्र सरकार को यौन हिंसा के खिलाफ कानूनों को मजबूत करने पर मजबूर होना पड़ा।

एक ऐसा ही भयावह मंजर इस देश की आवाम ने फिर देखा जब हैदराबाद के ठीक बाहर साइबराबाद में पिछले हफ्ते एक 27 साल की महिला डॉक्टर प्रियंका रेड्डी के साथ बलात्कार कर फिर उसे जिंदा जलाकर मार डाला गया, यह दिखाता है कि यदि हमारा कानून कमजोर और असंवेदनशील है तो कानूनों में की गई कड़ाई किसी काम की नहीं है।

जैसे कि इस घटना के तथ्य धीरे-धीरे सामने आए, यह स्पष्ट हो गया कि तेलंगाना पुलिस ने भी वो ही घिसा-पिटा रवैया अपनाया, जिसमें मामले की गंभीरता पर विचार करने से पहले महिला के चरित्र के बारे में सवाल पूछे गए।

 

मामले के मुताबिक, अपनी बहन से बात करने के कुछ ही घंटों बाद प्रियंका का मोबाइल फोन बुधवार की रात के बाद नेटवर्क क्षेत्र से बाहर बताने लगा, आखिरी बात में उसने अपनी बहन से स्कूटी के खराब होने की बात कही जिसके बाद सड़क पर वह खुद को असुरक्षित महसूस कर रही थी, परिवार तुरंत शिकायत दर्ज कराने पुलिस स्टेशन गया।

दो थानों के अधिकारियों ने यह कहा कि यह मामला उनके अधिकार क्षेत्र में नहीं आता है, इसलिए वह मामला दर्ज नहीं कर सकते हैं। जब परिवार ने जोर देकर कहा कि वे तुरंत कोई कार्यवाही करें क्योंकि उनकी बेटी खतरे में हो सकती है, तो अधिकारी बार-बार परिवार से पूछते रहे कि क्या महिला का किसी के साथ कोई चक्कर चल रहा था ?

महिला की मां ने बताया कि, ” पुलिस ने हमारे साथ बहुत घृणित तरीके से बात की। वे कहते रहे कि वह किसी के साथ गई होगी। मैं कहती रही कि मेरी बेटी ऐसी नहीं है, लेकिन उन्होंने नहीं सुनी। उनकी उदासीनता की कीमत हमारी बेटी ने चुकाई। उन्होंने वह नहीं किया जो उन्हें करना चाहिए था।”

अगली सुबह, एक पुल के नीचे महिला की जली हुई लाश मिली।

पुलिस का इस तरह का रवैया हाईकोर्ट की बार-बार चेतावनी के बाद भी जारी है, जिसमें निर्देश दिया गया है कि यदि अपराध की प्रवृति संशयात्मक है तो अधिकार क्षेत्र मायने नहीं रखता। हर एक पुलिस अधिकारी का यह कर्तव्य था कि वह मामला दर्ज होने के बाद उस पर संज्ञान लेकर तुरंत कार्रवाई करे।

इसके बाद साइबराबाद पुलिस ने तीन अधिकारियों को ड्यूटी से बेदखल कर निलंबित किया। लेकिन इस घटना ने एक बार फिर पुलिस सिस्टम में प्रणालीगत खामियों को उजागर किया। इस तरह के अपराध बार-बार होने के बावजूद, राज्य के पुलिस विभाग बेअदबी से जवाब देने में असमर्थ दिखते हैं।

यदि ऐसी घटना पर आईटी हब कहे जाने वाले एक राज्य की राजधानी के पास के एक पुलिस स्टेशन की ऐसी प्रतिक्रिया है, जहां हजारों महिलाएं काम करती हैं, तो हम केवल कल्पना कर सकते हैं कि छोटे शहरों और गांवों में पुलिस कैसे काम करती है।

जब तक पुलिस अधिकारियों को लगातार प्रशिक्षित नहीं किया जाएगा और महिलाओं के प्रति उनके रवैये में बदलाव नहीं आता, तब तक भारत महिलाओं के लिए असुरक्षित जगह बना रहेगा, इसमें कोई दो राय नहीं है।