रमज़ान में बुराईयों से बचें, ग़रीब और जरूरतमंदों की ज़्यादा से ज़्यादा मदद करें !

रमजान वह पवित्र माह है जिसमें ईश्वर ने सम्पूर्ण मानवता के मार्गदर्शन हेतु पवित्र कुरआन अवतरित किया। रमजान माह के रोजे (उपवास)अनिवार्य हैं।

यह महीना हमें ईशपरायणता, आत्मनियंत्रण, आज्ञापालन, धैर्य और संयम का गुण पैदा करने का प्रशिक्षण भी देता है।

मानव प्रेम, दयालुता, अनुशासन क्षमाशीलता, सहानुभूति, सदाचार, परोपकार,त्याग, निर्धनों और दरिद्र जनों की सहायता, भातृत्व व प्रेम व्यवहार जैसे उच्च मानवीय मूल्यों की जो सामान्य शिक्षा इस्लाम अपने अनुयायियों को अपने जीवन में बरतने दी है उसे व्यवहार में लाने हेतु रमजान में इस पर विशेष बल दिया गया है।

रमजान के महीने में शैतान को कैद कर दिया जाता है तथा स्वर्ग के दरवाजे खोल दिए जाते हैं।


 जगत गुरू हजरत मुहम्मद (सल्ल०)ने फरमाया कि -“जो व्यक्ति रमजान के रोजे ईमान और चेतना के साथ रखे उसके पिछले सब गुनाह माफ कर दिए जाते हैं।”


उपवास की हालत में जो व्यक्ति बुराई में लिप्त रहे तो उसे भूख व प्यास के अतिरिक्त कुछ नहीं मिलेगा। रमजान में सेहरी और ईफ्तार का अलग ही महत्व है।

अल्लाह के रसूल (सल्ल०)ने कहा कि “सेहरी खा लिया करो,सहरी खाने में बरकत है।”

वहीं ईफ्तार की महत्ता बताते हुए फरमाया कि “जो आदमी रमजान में किसी का रोजा खुलवाए तो उसके बदले खुदा उसके गुनाह को माफ कर देगा और उसको जहन्नम के आग से बचा लेगा।

ईफ्तार कराने वाले को रोजेदार के बराबर पुण्य मिलेगा तथा रोजेदार के पुण्य में कोई कमी न होगी।

सहाबा(रजि०) ने कहा “ऐ अल्लाह के रसूल (सल्ल०) हम सबके पास इतना कहाँ है कि रोजेदार को ईफ्तार कराए और उसको खाना खिलाए? आप(सल्ल०)ने कहा- सिर्फ एक खजूर या दूध या पानी के एक घूँट से इफ्तार करा देना ही काफी है।

रमजान के प्रत्येक रात फर्ज,सुन्नत नमाज के बाद तथा वित्र नमाज से पहले तरावीह की नमाज का आयोजन होता है जिसमें कुरआन सुनाया जाता है।

पवित्र रमजान को तीन भागों में बाँटा गया है पहला, दूसरा और तीसरा अशरा क्रमशः रहमत मगफिरत और जहन्नम से निजात का है।

आखिरी अशरे की 21, 23, 25, 27, 29वीं तारीख में से एक रात “शब ए कद्र” है,जो हजार महीनों से बेहतर है।

इस माह सदका ए फित्र तथा जकात अदा की जाती है, इसके द्वारा इस्लाम सामाजिक न्याय का व्यवहारिक आर्थिक उदाहरण प्रस्तुत करता है।

ईद की नमाज से पूर्व गरीबों, मजबुरों व असहाय के बीच सदका ए फित्र अदा करना अनिवार्य है ताकि वह भी अपनी जरूरत पूरी कर सके और प्रसन्नतापूर्वक ईदगाह जाकर ईश्वर का शुक्र अदा कर सके।

निःसंदेह रोजा इंसान की समस्त ज्ञानेन्द्रियों को बुराइयों से रोक कर सत्य की ओर अग्रसर करता है तथा अध्यात्मिक विकास, जनकल्याण, उच्च मानवीय गुणों को निखारने के साथ ही सामाजिक आर्थिक दायित्व के निर्वाहन की समझ विकसित करता है।

ऐसे समय जबकि हमारा देश कोविड-19 जैसे वैश्विक महामारी के चपेट में है, हमारी जिम्मेदारी और भी बढ़ जाती है।

हम अपनी ईशभक्ति और उपासना के माध्यम से जहाँ ईश्वर से यह प्रार्थना करें कि हम सब को इस संकट से शीघ्र मुक्ति दिलाए वहीं जरूरतमंदों की सेवा कर ज्यादा से ज्यादा पुण्य भी समेटें ।

आज हमारे सेवा की अहमियत और जरूरत ज्यादा बढ़ गई है।

कोविड-19 से बचाव के मद्देनजर लाकडाउन का अनुपालन करते हुए अपनी सारी इबादतें घर पर ही करें और शारीरीक दूरी बनाए रखें।

सरकार एवं स्वास्थ्य विभाग के निर्देशों का अक्षरशः पालन किया जाए।

मानवता की सेवा में तत्पर संगठनों को दान देकर उनके माध्यम से जनकल्याण के कार्य करें तथा पूरे विश्व को इस महामारी के संकटकाल से शीघ्र अति शीघ्र मुक्ति हेतु ईश्वर से दुआ करें।

– मंजर आलम
(स्वतंत्र टिप्पणीकार)

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