समाज

गंगा भी स्वच्छ रखें और पाप भी यही धोने हैं, ऐसे कैसे स्वच्छ होगी?

By khan iqbal

January 30, 2019

पर्यावरण प्रदूषण में धर्म..? विश्व के लगभग सभी देश पर्यावरण जैसे गंभीर समस्याओं से आज जूझ रहे हैं, इन समस्याओं से निजात पाने के लिए सारे हथकंडे को अपनाया जा रहा है!

हां यह अलग बात है कि अपने देश में मानव हित में किसी समस्या को सुधारने के लिए वोट बैंक बनाने हेतू धर्म का सुगंध ना आए तो ठीक वरना धर्म सर्वोपरि जैसे में अपने देश मे नजर डाले तो वायु प्रदूषण का हवाला देकर किसानों द्वारा प्रालि जलाने पर प्रतिबंध लगाया जा सकता है, गंभीर समस्याओं की दुहाई देकर प्लास्टिक पर प्रतिबंध लगाया जाता है!

लेकिन विशाल जलाशय वाले गंगा के प्रदूषण पर कभी गंभीरता से ध्यान दिया जा सकता क्योंकि इसमें धर्म की आड़ है वोट बैंक फिसलने का डर है ! आज धार्मिक आस्था के नाम पर लोग गंगा को दूषित कर रहे हैं, आज कुंभ है तो कल महाकुंभ होगी लोग आते रहेंगे गंगा कें प्रदूषण का जरिया बनते रहेंगे,यह सत्य है कि लोग अपने पाप को धोने के लिए महीनों तक गंगा के तट पर मौजूद रहते हैं,दीपावली में अपने आस्था को प्रज्वलित करने के लिए वायु सहित जल को भी प्रदूषित करते हैं,दाह संस्कार जैसे अनेकों क्रिया करके न जाने कितने दूषित पदार्थ है जो प्रतिदिन गंगा में समोहित किया जाते है ,

यह गंगा को प्रदूषित करने का यंत्र नहीं तो और क्या है,ऐसे मुद्दों पर सरकार की निगाह कब जाएगी,क्या धर्म की आड़ में सभी मानवीय समस्या को नजर अंदाज किया जा सकता है!

राष्ट्रीय हरित न्यायाधिकरण के रिपोर्ट पर नजर डाले तो यह स्पष्ट रूप से समझा जा सकता है कि सरकार करोड़ों के खर्च करने के बाद भी गंगा नदी की गुणवत्ता के मामले में रत्ती भर भी सुधार नहीं कर पाई!

अतः सरकार को धर्म का चश्मा निकाल कर इस पर गंभीरता से सोचने कि आवश्यकता है किसी भी प्रयोजना का परिणाम केवल नामकरण और भाषणों से पूरा नहीं होता,अगर ऐसा होने वाला होता तो नमामि गंगे- परियोजना जैसे कई परियोजना को आरंभ किया जा सकता था, आवश्यकता है सरकार को पर्यावरण के प्रति उन पहलुओं पर भी नजर डालने की जो धार्मिक वजह बना है, यह सत्य है कि कुछ व्यक्ति वोट नहीं दिलाते जीवन दिलाते हैं जैसे पर्यावरणविद और एक्टिविस्ट G.D Agrwal जिन्होंने गंगा सफाई अभियान को लेकर अपनी जान तक को न्योछावर कर दिए और सरकार इस पर चुप्पी साधी रही ऐसे लोगों को भारत रत्न देकर उत्साहवर्धन करने की जरूरत है जो मानवता के लिए अपनी जान को निछावर कर देते हैं,

-महताब आलम,बिहार