ओह, गांधी !
गोडसे और उसकी विचारधारा ने गांधी की सिर्फ देह की हत्या की थी, उनकी आत्मा को किश्तों में मारने के दोषी थोड़े-बहुत हम सब हैं।
भारतीय स्वतंत्रता-संग्राम का यह महानायक आज़ादी की आहट मिलने के साथ ही अकेला पड़ने लगा था। उसकी सुनने वाला कोई नहीं था।
उसने नहीं चाहा कि देश का बंटवारा हो, लेकिन उसके सत्तालोलुप शिष्यों ने व्यक्तिगत महत्वाकांक्षाओं के लिए देश के टुकड़े कर डाले।
उसने नहीं चाहा कि देश में हिन्दू-मुस्लिम दंगे हों, लेकिन देश धर्म के नाम पर इतिहास के सबसे बड़े नरसंहार का साक्षी बना।
उसने नहीं चाहा कि आज़ाद भारत में राजनीतिक दल के रूप में कांग्रेस का अस्तित्व बचा रहे, लेकिन कांग्रेस ने सत्ता संभाली और आज भी एक राजनीतिक परिवार की महत्वाकांक्षाओं का बोझ ढो रही है।
उसने नहीं चाहा कि आज़ाद भारत में धार्मिक कट्टरताओं के लिए कोई जगह रहे, लेकिन वह ख़ुद धार्मिक कट्टरपंथियों के हाथों मारा गया।
उसने सत्य, अहिंसा और सत्याग्रह के रूप में ज़ुल्म से लड़ने के कारगर हथियार हमें दिए, लेकिन हमने धार्मिक और राजनीतिक आतंकवाद की आड़ में देश को क़त्लगाह बना दिया।
कुटीर और ग्रामोद्योग के सहारे आत्मनिर्भर गांवों की उसकी परिकल्पना को बेरहमी से हमने बहुराष्ट्रीय कंपनियों और देश के कॉरपोरेट घरानों के हाथों बेच दिया।
राजनीतिक शुचिता की उसकी अवधारणा रिश्वतखोरी, घोटालों, जुमलाबाजियों और मक्कारियों की भेंट चढ़ गई।
उसकी हत्या के बाद हमने चौक-चौराहों पर उसकी मूर्तियां खड़ी की, सरकारी दफ्तरों और करेंसी नोटों में उसकी तस्वीरें टांगी और उसकी आत्मा को देश-निकाला दे दिया।
-ध्रुव गुप्त