राष्ट्रीय

मासूमों के साथ रोज होते दुष्कर्म और हम मना रहें अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस

By khan iqbal

March 08, 2018

खान शाहीन

एक पिता की सबसे दिलअजीज़ ज़िम्मेदारी उसकी बेटी होती है। एक भाई का सबसे सुकूँबख्श दिलासा उसकी बहन होती है और एक बेटे कि ज़िन्दगी का होंसला उसकी माँ होती है।

रिश्तों के जिस अटूट बन्धन से एक औरत ने अपने आपको समाज के साथ जोड़े रखा अगर उस बन्धन को किसी ने जिया है तो कोई तारीख समाज में महिलाओं की स्थिति पर बात करने कि मोहताज नही है। हर बेटे को हर माँ में अपनी माँ नज़र आने लगे हर भाई हर बहन को अपनी सी नज़रों से देखे हर पिता गलियों में टहल रही मासूम में अपनी परी को तलाशे तो दो साल कि मासूम से होने वाले कुकर्म कभी हमारे समाज का हिस्सा नही होंगे।

शायद आपको याद हो क्योंकि सरकारें भूल जाती है व्यवस्थाएं नकार देती हैं।एक नाम डेल्टा मेघवाल के रूप में,पढ़ाई के मैदान में तेजतर्रार लड़की जिसे राजकीय सम्मान से नवाज़ा गया “दरिंदगी का शिकार हुई हैवानियत ने उसे दबोच लिया और अब वक्त बीत जाने पर उसका बेसहारा दलित बाप उम्मीद छोड़ कर कहता है कि मैं थक गया।

महिला दिवस के इस शुभ अवसर पर वो अशुभ लम्हे सवाल करते हैं कि जब राबिया को चाकुओं से काटा जा रहा था।

नारीवाद का फ्लैग मार्च धर्म विशेष को गरियाने के लिए बहुत हुआ। बड़े बड़े सेमिनार सिम्पोज़ियम ऑर्गनाइज करवाकर समाज में महिला अधिकारों पर ज्ञान भी बहुत बांटा गया। अब ज़रूरत है डेल्टा ओर राबिया जैसी अनेकों महिलाओं पर बात करने की।