दिल्ली मेट्रो में महिलाओं की यात्रा मुफ़्त किये जाने का लोग विरोध कर रहे हैं। तो उनको यह जानना चाहिए कि हमारे समाज में वेतन को लेकर एक बड़ी असमानता है। कितनी महिलाएं दिल्ली के कोने-कोने से दफ़्तर जाती हैं और लगभग 70 फ़ीसदी महिलाएं 10000 से रुपये से कम वेतन पाती हैं और कुछ लोगों को तो मैं जानता हूँ कि वे 8000 हज़ार रुपये वेतन पाती हैं और रोज़ाना 100 रुपये मेट्रो में फूंक देती हैं और अगर दफ़्तर मेट्रो से दूर हो तो 20-40 रुपये और ख़र्च करना पड़ता है।
मतलब वो अपने वेतन का 40-50 हिस्सा सिर्फ़ यात्रा पर ख़र्च कर देती है और सोचिए क्या कोई महज 4000-5000 रुपये कमाने के लिए 10-12 घंटे काम करती है। क्या 5000 में उसकी ज़रूरत पूरी हो सकती है? क्या उसे वो न्यूट्रिशन मिल सकता है, जो नेशनल चार्ट कहता है?
यह फ्री नहीं है बल्कि इतने सालों से टैक्स देकर ही ये मेट्रो बना है। सरकार कोई एहसान नहीं कर रही बल्कि अपना धर्म निभा रही है। हालांकि सबके लिए फ्री किया जा सकता है, लेकिन महिलाओं को इसकी ख़ास ज़रूरत थी। अब इसपर आपको चिढ़ मच रही है, तो नियम अनुसार जो टिकट लेना चाहता है, वो ले सकता है। तो आप ख़रीदो लेकिन यह निर्णय अच्छा है। स्वास्थ्य, शिक्षा, पब्लिक ट्रांसपोर्ट मुफ्त या मामूली दाम और किफायती घर ये सब देना सरकार की जिम्मेदारी है इसे मुफ्त बोलकर जनतंत्र का अपमान मत करो।
-Prashant Kanojia