राजनीति

उस दिन एक वोट मिल जाता तो मुख्यमंत्री बन सकते थे सी.पी. जोशी

By khan iqbal

October 24, 2018

दिलचस्प है सी.पी. जोशी और उनकी जिंदगी से जुड़ा 1 वोट का भंवर

राजस्थान की राजनीति में समय-समय पर कई राजनीतिक सूरमा रहे हैं जिन्होंने प्रदेश की राजनीति को जब भी मौका मिला एक नई दिशा दी.

राजनीति में चुनावी जीत हर किसी को एक नए मुकाम पर ले जाती है लेकिन क्या आपने सोचा है कि किसी के हार जाने के बाद कोई नेता देश के लोकतंत्र में हर किसी की जुबां पर छा सकता है।

जी हां, में मेवाड़ की राजनीति के मुख्य केंद्र राजसमंद जिले की नाथद्वारा विधानसभा सीट से एक ऐसे ही नेता हुए.

कांग्रेस के दिग्गज नेता सी.पी. जोशी का राजनीतिक जीवन बड़ा ही दिलचस्प रहा है. 2008 के विधानसभा चुनावों 1 वोट से हार जाने के बाद किसी फिल्मी सितारे की तरह वह हर जगह चर्चाओं में थे,

लेकिन क्या आप जानते हैं कि सीपी जोशी के राजनीतिक सफर में 1 वोट का पेच काफी लंबे अरसे से फंसा है और वह हर मोड़ पर इस भंवर में आकर फंस ही जाते हैं।

स्कूल से लेकर कॉलेज की राजनीति हों या विधानसभा चुनावों में साख का सवाल हों हर बार चुनावों में 1 वोट का योगदान उन्हें मिला है, अब उस योगदान की वजह से उन्हें हार मिली हों या जीत यह एक अलग बात है।

स्कूल में हुए चुनाव से शुरू हुआ 1 वोट का खेल-

अपने राजनीतिक जीवन की शुरूआत में सीपी जोशी ने अपने स्कूल गोवर्धन हायर सैकंडरी स्कूल से पहली बार चुनाव लड़ा था. जोशी की जीत हुई वो भी एक वोट से।

1 वोट की जीत से कॉलेज में चमका युवा नेता-

स्कूली राजनीति के साथ पढ़ाई पूरी कर सीपी जोशी अब कॉलेज के गलियारों में पहुंच गए थे. उदयपुर विश्वविद्यालय से एमएससी करते दूसरे साल में छात्रसंघ अध्यक्ष पद के लिए चुनाव में उतरे। चुनाव परिणामों में उन्हें 1 वोट से हार मिली लेकिन बाद में हुई री–कॉउंटिग में वो एक वोट से ही जीते।

RCA चुनावों में दिखी 1 वोट की गहमागहमी-

राजस्थान क्रिकेट एसोसिएशन में अध्यक्ष पद के लिए हुए चुनाव में उनकी जीत में फिर 1 वोट की अहमियत देखने को मिली. जीतने के लिए जोशी को 33 में से 17 वोट चाहिए थे, 16 वोट उनके पक्ष में थे अगर 1 वोट और जोशी को मिलता तो उनकी जीत पक्की हो सकती थी।

1 वोट की हार ने ही तोड़ा मुख्यमंत्री बनने का सपना- 2008 में हुए राजस्थान विधानसभा चुनावों में सीपी जोशी मुख्यमंत्री की रेस में सबसे आगे चल रहे थे, लेकिन चुनाव में उनके करीबी रहे कल्याण सिंह ने उन्हें मात्र एक वोट से हरा दिया।

-अवधेश पारीक

(लेखक एक स्वतंत्र पत्रकार हैं, विभिन्न पत्र पत्रिकाओं में उनके लेख छपते रहते हैं, आवाज़ न्यूज़ पोर्टल से भी जुड़े हुए है)