ऊंट संरक्षण कानून बनाने के बाद भी घट रही है ऊंटों की संख्या, विधानसभा में उठी मांग


ऊंट संरक्षण कानून में संशोधन के लिए ड्राफ्ट तैयार, अगले सत्र में इसे पारित कराया जायेगा – पशुपालन मंत्री

 

पशुपालन मंत्री लाल चन्द कटारिया ने बुधवार को विधानसभा में बताया कि सरकार ऊंटों के संरक्षण के प्रति कटिबद्ध है। उन्होंने कहा कि ऊंट संरक्षण के लिए वर्ष 2015 में जो कानून बना है, उसमें आंशिक संशोधन की जरूरत है। उन्होंने विश्वास दिलाया कि इस कानून में संशोधन के लिए ड्राफ्ट तैयार कर लिया गया है और विधानसभा के अगले सत्र में इसे पारित कराया जायेगा।

कटारिया शून्यकाल में विधायक  राजेन्द्र राठौड़ द्वारा राज्य पशु ऊंट की संख्या में निरन्तर कमी होने के फलस्वरूप ऊंटों के संरक्षण हेतु गौशाला की तर्ज पर ऊंट शाला खोले जाने के संबंध में रखे गये ध्यानाकर्षण प्रस्ताव पर अपना जवाब दे रहे थे।

उन्होंने कहा कि यह सही है कि प्रदेश में ऊंट संरक्षण के लिए जब से कानून बना है, तब से प्रदेश में ऊंटों की संख्या घटी है। उन्होंने कहा कि मैं स्वयं भी एक किसान हूं और ऊंट पालकों के सामने आ रही समस्याओं को अच्छी तरह समझ सकता हूं। उन्होंने बताया कि कई सदस्य एवं ऊंटपालक इस समस्या को लेकर मेरे से भी मिले है। उन्होंने बताया कि एक एनजीओ गत 30 वर्ष से ऊंट संरक्षण का कार्य रही है। जिसमें हनुमान सिंह राठौड़ एवं जर्मन महिला भी इस संस्था से जुड़ी हुई है। उन्होंने बताया कि इस संस्था के लोग जयपुर में अलग-अलग जगह ऊंट पालकों से मिलकर उनकी समस्याओं के बारे में जानकारी ली है।

कटारिया ने प्रतिपक्ष के उप नेता राजेन्द्र राठौड़ सहित अन्य सदस्यों द्वारा गौशाला की तरह ऊंट शाला बनाने की मांग पर कहा कि आप सभी सदस्यों का यह सुझाव सही है और हम भी चाहते हैं कि गौशाला की तरह ऊंट शाला बनाने पर विचार किया जाये।

उन्होंने कहा कि प्रदेश में ऊंट खेती के साथ-साथ कई क्षेत्रों में सवारी एवं पर्यटन की दृष्टि से बहुत महत्वपूर्ण है। उन्होंने इस बात को भी स्वीकार किया कि ऊंट तस्करी को रोकने व ऊंट संरक्षण के प्रभावी प्रयास नहीं किये गये तो यह सही है कि आने वाले समय में ऊंट हमें केवल म्यूजियम में ही देखने को मिलेगा।

इससे पहले पशुपालन मंत्री ने इस संबंध में अपने लिखित वक्तव्य में बताया कि पशु गणना के अनुसार वर्ष 1992 में ऊंटों की सख्या 7.46 लाख, वर्ष 1997 में ऊंटों की सख्या 6.69 लाख, वर्ष 2003 में ऊंटों की सख्या 4.98 लाख, वर्ष 2007 में ऊंटों की सख्या 4.22 लाख, वर्ष 2012 में ऊंटों की सख्या 3.26 लाख एवं वर्ष 2017 में ऊंटों की सख्या 2.13 लाख रही है।

उन्होंने बताया कि प्रदेश में 16 सितम्बर 2014 को ऊँट को राज्य पशु घोषित किया गया है। वर्तमान में पशुगणना 2019 के अनुसार देश के कुल ऊँटों की संख्या का लगभग 84.43 प्रतिशत ऊँट, राजस्थान में है।

पशुगणना अनुसार गत 30 वर्षों से ऊँटों की संख्या में नियमित तौर पर गिरावट हो रही है। ऊँटों की संख्या में गिरावट का मुख्य कारण निरंतर यांत्रिक संसाधनों का विकास व ग्रामीण स्तर तक उच्च स्तर की परिवहन सुविधा का उपलब्ध होना है।

राजस्थान ऊँट (वध का प्रतिषेध और अस्थायी प्रव्रजन या निर्यात का विनियमन) अधिनियम 2015 के तहत ऊँट के वध एवं बिना सक्षम अनुमति के राज्य से बाहर ले जाने पर प्रतिबंध है, जिससे ऊँटों की उपयोगिता निरन्तर कम हो रही है। प्रदेश में ऊँटों के संरक्षण व ऊँटपालकों को ऊँटों के प्रजनन के लिये प्रोत्साहित करने, टोड़ियों के पालन पोषण हेतु तथा ऊँट की संख्या में वृद्धि के लिये ऊष्ट्र विकास योजना 2 अक्टूबर 2016 को प्रारंभ की गई थी।

उन्होंने बताया कि योजनान्तर्गत, राष्ट्रीय कृषि विकास योजना से 4 वर्ष की अवधि के लिये वित्त पोषित तीन किस्तों में 10 हजार रुपए ऊँट के वत्स उत्पादन पर ऊँटपालक को दिये जाने का प्रावधान था।

इस योजना में 31 मार्च 2019 तक उत्पन्न टोड़ियों का पंजीकरण किया गया। जैसलमेर जिले में ऊँटनी के टोड़ियों के जन्म पर देय राशि के प्रकरण में अनियमितता पाई गई।

उन्होंने बताया कि इस क्रम में की गई जाँच में दोषियों के विरुद्ध नियमानुसार कार्यवाही प्रक्रियाधीन है। इस योजना को पुनः राष्ट्रीय कृषि विकास योजना में संचालित किये जाने के लिये, तीन वर्ष की 23.65 करोड़ की योजना तैयार कर भारत सरकार के अनुमोदन के लिये प्रस्तावित की गई है। भारत सरकार से अनुमोदन पश्चात राशि प्राप्त होते ही राज्य सरकार की सानुपातिक हिस्सा राशि सहित ऊष्ट्र विकास योजना को संचालित किया जा सकेगा।

पशुपालन मंत्री ने बताया कि वर्तमान सरकार के जन घोषणा पत्र में ऊँटों के संरक्षण एवं संवर्धन हेतु विशेष नीति बनाने का उल्लेख किया गया है, जिसके तहत ऊँट संरक्षण एवं विकास नीति का प्रारूप तैयार कर लिया गया है, जिसे अंतिम रूप दिया जा रहा है।

ऊँटों की तस्करी रोकने के लिये राजस्थान ऊँट (वध का प्रतिषेध और अस्थायी प्रव्रजन या निर्यात का विनियमन) अधिनियम 2015 अन्तर्गत गृह विभाग से कार्यवाही की जाती है। गृह विभाग के स्तर से अब तक श्रीगंगानगर जिले में थाना राजियासर में 14 तथा हनुमानगढ़ के थाना भादरा, पल्लु व गोगामेड़ी में 117 ऊँटों की तस्करी में बरामदी दर्ज हुई है। जिसमें इन जिलों में 21 व्यक्तियों की गिरफ्तारी कर कानूनन कार्यवाही की जा रही है।

राजस्थान ऊँट (वध का प्रतिषेध और अस्थायी प्रव्रजन या निर्यात का विनियमन) अधिनियम 2015 में आवश्यक संशोधन के लिये मंत्रिमंडलीय उप समिति का गठन किया गया है। जिसकी अनुशंसा अनरूप अधिनियम में संशोधन की कार्यवाही प्रक्रियाधीन है।

उन्होंने बताया कि उरमूल दुग्ध संघ बीकानेर, दुग्ध संघ बाड़मेर एवं वरमूल दुग्ध संघ जोधपुर आदि के कार्य क्षेत्रान्तर्गत ऊंट बाहुल्य क्षेत्र में ऊंटनी के दुग्ध की अल्प मात्रा में उपलब्धता, ऊंटनी के दुग्ध के संकलन हेतु अत्यधिक दूरी से परिवहन लागत का अधिक होने, इस दुग्ध की सैल्फ लाईफ कम होने एवं दुग्ध प्रसंस्करण संयंत्र स्थापना हेतु प्रस्तावित विनियोजित की जाने वाली भारी भरकम राशि के प्रतिफल स्वरूप संभावित अलाभकारी दुग्ध व्यवसाय के दृष्टिगत, राजस्थान को-ऑपरेटिव डेयरी फैडरेशन लि. से सम्बद्ध जिला दुग्ध संघों में ऊंटनी के दुग्ध एवं दुग्ध उत्पाद हेतु पृथक से संयंत्र स्थापना संस्था हित में व्यावहारिक एवं उचित नहीं है।

कटारिया ने बताया कि वर्तमान में बीकानेर में भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद का राष्ट्रीय स्तर का अति सुविधायुक्त संस्थान यथा राष्ट्रीय उष्ट्र अनुसंधान केन्द्र, बीकानेर द्वारा अपने पार्लर के माध्यम से ही ऊंटनी के दूध का संकलन कर बिक्री का कार्य किया जा रहा है।


 

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