अयोध्या विवाद या कहें देश के सबसे विवादित मसले पर आखिरकार सुप्रीम कोर्ट का फैसला आ गया है. राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद भूमि सुप्रीम कोर्ट ने ऐतिहासिक फैसला सुनाया है. सुप्रीम कोर्ट ने अपने आदेश में कहा कि अयोध्या की विवादित जमीन हिंदुओं को सौंप दी जाए जिसके लिए केंद्र सरकार को 3 महीने के अंदर एक योजना बनाने के लिए कहा है।
वहीं मुस्लिम पक्षकारों (सुन्नी वक्फ बोर्ड) को दूसरी जगह जमीन देकर मस्जिद बनाने का आदेश जारी हुआ है।
सुन्नी वक्फ बोर्ड का पहला बयान जारी हुआ
सुप्रीम कोर्ट की तरफ से राम जन्म भूमि-बाबरी मस्जिद विवाद में विवादित जमीन पर राम जन्म भूमि न्यास को हक दिए जाने से मुस्लिम पक्ष संतुष्ट नहीं है। मुस्लिम पक्ष की ओर से सुप्रीम कोर्ट में फिर इस फैसले को चुनौती देने की बात सामने आई है।
सुन्नी वक्फ बोर्ड का कहना है कि वह इस फैसले से सहमत नहीं है। उनके वकील जफरयाब जिलाने ने कहा, हम फैसले से सहमत नहीं हैं। हम इस फैसले को आगे चुनौती देंगे। इसके अलावा बाबरी मस्जिद के पक्षकार इकबाल अंसारी का कहना है कि हम फैसले का स्वागत करते हैं।
निर्मोही अखाड़े ने क्या कहा
वहीं सुप्रीम कोर्ट ने निर्मोही अखाड़े की याचिका शुरूआत में ही खारिज कर दी थी जिसके बाद निर्मोही अखाड़े के महंत धर्मदास ने कहा कि विवादित स्थल पर हमारा दावा खारिज होने से हमें कोई अफसोस नहीं है, क्योंकि हम तो रामलला का ही पक्ष ले रहे थे।
फैसले में सुप्रीम कोर्ट की बड़ी बातें-
- विवादित जमीन हिंदुओं को देने का फैसला
- 3-4 महीने के अंदर ट्रस्ट बनाएगी केंद्र सरकार
- ट्रस्ट मंदिर नाम निर्माण का काम देखेगा
- मुस्लिमों को वैकल्पिक जगह देने का आदेश
- सुन्नी वक्फ बोर्ड को दूसरी जगह 5 एकड़ जमीन देने का आदेश
- शिया बोर्ड का मामला खारिज, निर्मोही अखाड़ा का दावा खारिज
- मस्जिद के नीचे कोई ढांचा था और वो इस्लामिक नहीं था, खाली जमीन पर नहीं बनाई गई थी मस्जिद
इसके अलावा हिंदुओं की मान्यता पर कहते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अयोध्या में श्रीराम का जन्म हुआ जिसमें हिंदुओं की आस्था है और इस पर अदालत कोई दखल नहीं देना चाहती है। इसके साथ ही जमीन के मालिकाना हक पर फैसला सिर्फ आस्था और विश्वास के आधार पर नहीं दिया जा रहा है।
2010 में इलाहाबाद कोर्ट ने दिया था फैसला
इस मामले पर सुप्रीम कोर्ट इलाहाबाद कोर्ट के फैसले के बाद अपना फैसला सुना रहा था. 30 सितंबर, 2010 को इलाहाबाद हाई कोर्ट में 3 जजों की बेंच ने 2:1 के बहुमत से अयोध्या मामले पर अपना फैसला दिया था जिसमें कहा गया था कि 2.77 एकड़ की विवादित जमीन को मामले के 3 मुख्य पक्षकारों- निर्मोही अखाड़ा, राम लला विराजमान और सुन्नी वक्फ बोर्ड में बराबर बांटा जाएगा.
इलाहाबाद हाई कोर्ट के इस फैसले पर तीनों ही पक्ष सहमत नहीं हुए जिसके बाद वो सुप्रीम कोर्ट पहुंचे। सुप्रीम कोर्ट में इसके बाद हिंदू पक्ष और मुस्लिम पक्ष की ओर से करीब 14 याचिकाएं दाखिल की गई। मालूम हो कि सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले पर मध्यस्थता के जरिए समाधान निकालने की भी कोशिश की लेकिन कोई हल नहीं निकला।