कौन है जो पुत्रमोह का ताना मारकर गहलोत के 45 साल के राजनैतिक करियर को बदनाम करना चाहता है!

मीडिया में एक संगठित अभियान के द्वारा लोकसभा चुनाव में राजस्थान में कांग्रेस की पराजय के लिए सूबे के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत को पूरी तरह ज़िम्मेदार ठहराने की होड़ सी लगी हुई है।

यहां तक कि कांग्रेस वर्किंग कमेटी की मीटिंग में कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी की अशोक गहलोत के प्रति जबरदस्त नाराज़गी की खबरें भी प्लांट हो रही है।

एक बेहद सधे हुए तरीके से यह डिस्कोर्स डवलप किया जा रहा है कि पार्टी की इस अभूतपूर्व का हार कारण मुख्यमंत्री का पुत्र मोह है,जिसके चलते उन्होंने अपना अधिकांश वक्त जोधपुर में ही बिता दिया,राज्य में अन्य उम्मीदवारों के लिए वक्त ही नहीं निकाल पाये है।

क्या यह सच है या एक गढ़ा हुआ असत्य ,जिसके जरिए हार का पूरा ठीकरा राज्य के मुखिया के सर पर फोड़ा जा रहा है,हर कोई जानता है कि मुख्यमंत्री ने कितनी मेहनत की है,कुछ जिलों में तो उन्होंने औसतन 3 से 7 सभाएं की,स्वयं राहुल गांधी व अन्य नेताओं की सभाएं भी हुई,जिनमें गहलोत भी मौजूद थे।

रही बात पुत्र मोह की तो वैभव गहलोत सिर्फ सीएम का बेटे ही नहीं थे,पार्टी के प्रदेश महासचिव और कैंडिडेट भी थे और गहलोत के गृह क्षेत्र से उम्मीदवार भी ,ऎसे में अगर उनके लिए मुख्यमंत्री ने जमकर मेहनत की तो यह आलोचना की बात न हो कर प्रशंसनीय बात होनी चाहिए।

ज्यादातर समय तो सीएम रात के वक्त ही जोधपुर में सक्रिय रहे,वैसे भी जोधपुर नहीं रुकते तो जयपुर से आते जाते,तब क्या परिणाम कुछ भिन्न होते ? लगभग सभी नेता चुनावी रैलियों व सभाओं को संबोधित करके अपने ठिकाने ही जाते रहे है,चाहे वह मुख्यमंत्री हो अथवा राष्ट्रीय अध्यक्ष। क्या कोई फील्ड में रात्रि विश्राम कर रहा था? शायद ही कोई अपवाद स्वरूप ही ।

फिर ये कौन लोग है जो जानबूझकर मुख्यमंत्री को निशाने पर लिए हुए है? कौन है जो सीडब्ल्यूसी की अंदर चली बैठक में हुई बातों को जानबूझकर लीक कर रहे है और ऐसा माहौल बना रहे हैं, जिससे राज्य सरकार अस्थिर हो और विपक्षी भाजपा इसका लाभ उठा ले जाये।

सवाल यह भी है कि क्या वाकई अशोक गहलोत ने अन्य प्रत्याशियों को समय नहीं दिया,क्या गहलोत के पुत्र वैभव चुनाव नहीं लड़ते और अशोक गहलोत रात्रि विश्राम जोधपुर के बजाय अन्य जिलों में करते तो क्या बहुत सारे उम्मीदवार जीत जाते ?

यह भी विचारणीय बिंदु है कि जब टिकट वितरण में सूबे के कईं क्षत्रप शामिल थे अपने अपने चहेतों को टिकट दिलाने के लिए,कईयों ने तो जिता कर लाने की गारंटी तक आलाकमान को दी ,क्या वो गारंटी देने वाले कैंडिडेट जीत गए? क्या सारे टिकट मुख्यमंत्री अशोक गहलोत की मर्जी से दिए गए ? क्या सब उम्मीदवार जिताने की उन्होंने अकेले आलाकमान के समक्ष गांरटी भरी थी,अगर ऐसा नही था ,तो केवल गहलोत ही अकेले कैसे ज़िम्मेदार हो गए ? बाकी नेताओं को जवाबदेही से कैसे बरी किया जा सकता है ?

क्या सिर्फ सरकार ही इसके लिए जवाबदेह है,संगठन की कोई ज़िम्मेदारी नहीं है,क्या उपमुख्यमंत्री और अन्य मंत्रिमंडलीय सहयोगी व विधायक गण इस ज़िम्मेदारी से अलग रखे जा सकते हैं?

यह भी सोचना होगा कि अगर कांग्रेस इस चुनाव में शानदार जीत दर्ज करवाती तो क्या उस विजय का सेहरा सिर्फ गहलोत के सिर पर होता या हर कोई इसका श्रेय ले रहा होता ?

ऐसा भी तो नहीं है कि पार्टी सिर्फ राजस्थान में ही हारी है,शेष राज्यों में भी तो इसी तरह की शर्मनाक पराजय हुई है,18 राज्यों में खाता नहीं खुला है,उसके लिए कौन जिम्मेदार है?

क्या उसका भी दोष गहलोत पर मढ़ा जा सकता है।राजस्थान के चुनाव में कईं खामियां रही हो सकती है,जैसे कि टिकटों का वितरण अगर ठीक से होता तो हार के अंतर को कम किया जा सकता था।

राजस्थान में कईं नेता जो राष्ट्रीय स्तर के है,वो खुद चुनाव लड़ रहे थे, जब वो खुद ही नहीं जीत पाये तो इसके लिए किसको दोष दिया जाये, मेवाड़ इलाके में जिस अंतर से कांग्रेस के उम्मीदवारों की हार हुई है,उसके लिए मेवाड़ के सर्वमान्य नेता होने का दावा करने वाले नेताओं से सवाल नहीं होना चाहिए ? क्या उनसे इस्तीफे लिए जा रहे हैं।

कहते है कि जीत में सब भागीदार होते हैं ,पर हार का कोई नहीं,लेकिन कांग्रेस पार्टी की इस राष्ट्रीय पराजय के लिए बहुत सारे कारण है,जिनकी समीक्षा जरूरी है। कांग्रेस को चिंता करनी होगी कि बिना कैडर,समर्पित सांगठनिक ढांचे और वैचारिक समर्थक समूह के अभाव में उनको अपेक्षित सफलता नहीं मिल पायेगी।

रही बात राजस्थान के अनपेक्षित परिणामो की, तो इसके लिए अकेले मुख्यमंत्री अशोक गहलोत को ज़िम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता है, यह हार सबकी सामूहिक हार है,इसके लिए सब ज़िम्मेदार है,इसके लिए पार्टी में कैडर का नहीं होना तो है ही,चुनाव प्रबंधन की कमी और मोदी के नाम पर बनाई गई लहर भी ज़िम्मेदार है,कांग्रेस का चौकीदार चोर है अभियान भी कुछ हद तक उल्टा ही पड़ गया है,मोदी को व्यक्तिगत टारगेट करना भी कांग्रेस के लिए नुकसानदेह साबित हुआ है,भाजपा के मुकाबले संसाधनों की कमी,सूक्ष्म चुनाव प्रबंधन की कमी और कांग्रेस के पारंपरिक वोट बैंक का क्षरण भी इसके लिए ज़िम्मेदार है।

राजस्थान की हार के लिए सिर्फ अशोक गहलोत को दोषी ठहराने और एक दूसरे पर आरोप प्रत्यारोप लगाने के बजाय वास्तविक कारणों पर चिंतन व मनन होना चाहिए,ताकि आसन्न पंचायतीराज चुनावों में ठीक से परिणाम लाया जा सके।

-भँवर मेघवंशी

(शून्यकाल वेब पोर्टल के संपादक हैं)

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *