युवा क़लम

“आयत” की कविता “ना चाहतों पे है काबू ना दिल पे है कोई ज़ोर”

By khan iqbal

June 18, 2019

उसकी ख़ामोशी की वो धुन मेरे अल्फाज़ का वो शोर

ना चाहतों पे है काबू ना दिल पे है कोई ज़ोर

वो पंखुड़ी गुलाब सी मैं कांटों का गुलदान

मैं उसका टुटा हुआ सपना वो मेरा एक ही अरमान

मैं टुटा हुआ तारा तो वो चाँद जैसे पूनम का

मैं बहता हुआ पानी तो वो क़तरा कोई शबनम का

मैं नफ़रतों का सेहरा वो मोहब्बत का समंदर

वो इश्क़ का मरहम तो मैं तन्हाई का खंजर

वो प्यार का समंदर मैं नफरतों का सेहरा

वो आशिक़ी की बग़ावत मैं चाहतों का पहरा

वो खिलता हुआ गुल है तो मैं टुटा हुआ पत्ता

वो मशहूर सी मंज़िल मैं भुला हुआ रस्ता

न चाहतों पे है काबू नहीं दिल पे है कोई ज़ोर

उसकी ख़ामोशी की वो धुन मेरे अल्फ़ाज़ का वो शोर

— आयत