राजधानी जयपुर में 94% भिखारियों के बच्चे स्कूल नहीं जाते हैं, ये बच्चे हर रोज 50 से 500 रुपये कमाते हैं और अपनी कमाई का एक बड़ा हिस्सा तंबाकू और नशे की लत पर खर्च करते हैं।

राजस्थान

जयपुर : 95% भिखारियों के बच्चे नहीं जाते स्कूल, 2 रूपये के लिए घूमते हैं गली-गली !

By khan iqbal

September 17, 2019

हर शहर की सुबह में बहुत कुछ नया होता है लेकिन कुछ ऐसी तस्वीरें होती है जो रोज हम देखते हैं। जैसे भागता दूधवाला, कूदता अखबार वाला, गार्डनों में चक्कर लगाते लोग तो कॉलोनियों में दौड़ती स्कूल की पीली बसें या फिर किसी माता-पिता का हाथ थामे स्कूल जाते बच्चे। आज आखिर वाली बात पर थोड़ा विस्तार से बात करना चाहेंगे, लेकिन संदर्भ होगा स्कूल नहीं जाने वाले बच्चे, सवाल होंगे कौन हैं ये बच्चे, ये बच्चे ही क्यों ?

हाल में कमजोर बच्चों के वेलफेयर पर काम करने वाले एक एनजीओ “प्रथम” का एक सर्वे सामने आया है, जिससे यह पता चला कि राजधानी जयपुर में 94% भिखारियों के बच्चे स्कूल नहीं जाते हैं, ये बच्चे हर रोज 50 से 500 रुपये कमाते हैं और अपनी कमाई का एक बड़ा हिस्सा तंबाकू और नशे की लत पर खर्च करते हैं।

सर्वे में पाया गया कि इन बच्चों में ज्यादातर 6 से 14 साल के थे। अधिकांश बच्चे शहर में ट्रैफिक लाइट, शॉपिंग मॉल, मंदिर और पर्यटन स्थलों पर भीख मांगते हुए पाए गए। आपको बता दें कि सर्वे में जीटी मॉल, मानसरोवर फुटपाथ, जेएलएन मार्ग और शास्त्री नगर के एरिया से इन भीख मांगने वाले बच्चों को चिह्नित किया गया था।

बच्चों को लोग आसानी से देते हैं भीख !

सर्वे में शहर के लोगों की मानसिकता का भी पता चला। यह पाया गया कि शहरी लोग उम्रदराज भिखारियों के बजाय बच्चों को पैसे आसानी से दे देते हैं। लोग बच्चों के प्रति एक अलग ही दयाभाव महसूस करते हैं।

बच्चों को इस तरह आसानी से पैसे मिलने से बाल भिक्षावृत्ति को बढ़ावा मिलता है। बाल भिक्षावृत्ति केवल एक सामान्य घटना नहीं है, बल्कि बच्चों के लिए भी एक खतरा है क्योंकि यह उनके बुनियादी मौलिक अधिकारों को छीनती है। इसके अलावा भिखारियों के परिवार अपने बच्चों के साथ-साथ लगातार रहने की जगह बदलते हैं जिससे उनके बच्चे स्कूल नहीं जा पाते हैं।

सर्वे में यह भी पाया गया कि लगभग 95% भिखारियों के बच्चे अपनी रोज की कमाई अपने माता-पिता को देते हैं। कुछ मामलों में यह भी पाया गया कि कई बच्चे अपने परिवार और अभिभावकों द्वारा भीख मांगने के लिए मजबूर होते हैं।

आपको बता दें कि इस सर्वे में शहर से 704 भिखारियों (बच्चों) को शामिल किया गया था, जिनमें से 171 बच्चे 3 से 5 साल के थे तो 522 6 से 14 साल के थे, जबकि 11 बच्चे 15 से 18 साल के थे।

भीख मांगने वाले बच्चों में लगभग आधे बच्चे (50%) दिन में 6 घंटे अकेले और बाकी अपने भाई-बहनों या माता-पिता के साथ 95% भीख मांगते हैं। बच्चों में 41.9% बच्चे लोकल थे, 42.7%  बच्चे राज्य के विभिन्न जिलों के थे, जबकि 15.3% मध्य प्रदेश, कोलकाता, गुजरात, उत्तरप्रदेश और दिल्ली सहित अन्य राज्यों से आए थे।

(ये डेटा हमने प्रथम एन.जी.ओ. की वेबसाइट से लिए हैं।)