हे!पोषण करने वाले उठ, कब तक शोषण सहेगा!

ना कल सोने की चिडिया था
ना आज सोने की चिडिया है
गरीब तो पहले भी भूखा था
आज भी रोटी का मोहताज है

किसान तो पहले भी पिसता था
सत्ता के उन गलियारो मे
जहां आज घुट गया गठबंधन की सरकारों मे
बदल न पायी उसका जीवन लोकतंत्र की आजादी भी

फिर आस लगाए बैठा है
अपने उन सरदारो से
जिन्हें कोई गिला नही
तेरे फन्दे से लटक जाने मे

हे! दुनिया का पोषण करने वाले
कब तक खुद का शोषण देखेगा
ऊठ जाग और हुकांर भर
कब तक फन्दे से झूलेगा
कब तक देखेगा अपनो का नाश
कब तक ईश्वर को कोसेगा

अपने अधिकारो की मांग भरनी है तूझे अपने संघर्षो की लाठी से
माना की राह दुर्गम है तेरी
है जीवन तेरा विपदाओ का
लेकिन सच्चा सुख भी है मेहनत की उस रोटी का

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *