कला

सुदूर रेतीले धोरों में सरसराता है राजस्थानी लोकगीत!

By khan iqbal

September 06, 2018

इस वक्त संगीत का अपना वजूद है ख़ासकर वो वाला संगीत जिसके रगो में अपनी वाली पारम्परिक संस्कृति झलकती हो,यह कानों को भी सुकून देता है साथ ही अपनी विरासत को भी सँजोये रखता है । कुछ यूँही राजस्थान का फोक म्यूजिक भी आज दुनिया के हर कोने में अपनी उम्दा उपस्थिति दर्ज करवा रहा है, कलाकार संगीत लोक कला के बल पर दुनिया के कई मुल्कों में अपने लोक संगीत की छाप छोड़ चुके हैं।

बहुत प्यारा लगता है मुझे तो ! क्योंकि हमारे गाँव का हरेक रचा बसा सामाजिक त्योहार,उत्सव इस संगीत के बिना सूना लगता है।

रेतीले धोरों के सुरों संगीत को सात समंदर पार भी ख्याति मिल रही है। सीमावर्ती दुर्गम इलाकों से लेकर ढाणियों और शहरों तक गूंजती लोक लहरिया अपने अाप में अनूठी कला है। जैसलमेर और बाड़मेर जिले में रहने वाले मांगणियार/लंगा ऐसा समुदाय है जिसका हर सदस्य परंपरागत लोक संगीत का संवाहक है।

गाने-बजाने का मौलिक हुनर इनकी वंश परम्परा का मूल हिस्सा बन चुका है, जो आज भी पीढ़ी दर पीढ़ी जीवित है। मांगणियार संगीत की विभिन्न शैलियों में उनका गायन बेमिसाल है। मुख्य रूप से कल्याण, कमायचा, दरबारी, तिलंग, सोरठ, बिलवाला, कोहियारी, देश, करेल, सुहाब, सामरी, बिरवास, मलार आदि का गायन हर आयोजन को ऊंचाई देता है।

छायाचित्र वाला कलाकार सद्दाम सारंगी बजाने में निपुण हैं

-शौकत अली खान