मोमासर का धनाराम मोची और मोची शोरुम

By janamanas

January 27, 2018

एक देश दो दुनिया एक अभावो की निशानी है एक अभिजात्य भारत की कहानी है।

रेगिस्तान में मोमासर के छोटे से बाजार में धनाराम मोची अपनी छोटी सी बिसात लिए बैठा मिलता है।उसकी निगाहे बाजार से रहगुजर उन पैरों पर है जिनके जूते चप्पल मरम्मत मांगते हो।लेकिन दिन भर गुजारने के बाद कभी कभी कोई कदम धनाराम के ठिकाने का रुख करते है।

धनाराम कहने लगे ‘अब लोग जूते चप्पल की मरम्मत कराने की बजाय नया खरीदना पसंद करते है। फिर जो रिपेयर के लिए आता है ,वो गरीब होता है। इसलिए पैसे भी कम देता है ‘

ये उनका पुशतैनी काम है। बोले ‘ गांव पास में है। और कोई जरिया नहीं है। इसलिए वक्त काटने आ जाते है। बेटे दूसरे कस्बो में ऐसे ही फुटपाथ पर बैठ कर यही काम करते है।बच्चे ज्यादा पढ़ नहीं पाए ‘ हालांकि अब भी कुछ लोग कहते है इनके लिए आरक्षण क्यों ? उस ग्रामीण बाजार में लोगो की आवाजाही है। मगर धनाराम की छोटी सी दुनिया आमदो रफ़्त के लिए इंतजार करती रहती है। भारत में पिछले कुछ सालो में चमड़े के व्यपार ने उछाला मारा है।चमड़ा उद्योग कोई तीस लाख लोगो को रोजगार मुहैया करवाता है।भारत 2. 5 अरब वर्ग फुट चमड़ा उत्पादन करता है।भारत के ये हाथ लाखो जोड़ी जूते और लेदर गारमेंट बनाते है। आंकड़े बोलते है भारत 115 मिलियन जोड़ी जूते निर्यात करता है।यानि दुनिया के 13 फीसद। फिर भी लाखो लोग नंगे पाँव जिंदगी की कठिन डगर पर चलते मिलते है।उनके पैरों को जूते नसीब नहीं है।

देश में हाथ के हुनर को बाजार ने अपने शो रूम में जगह दी है। मगर पीढ़ी पीढ़ी इस हुनर को जीने वाले हाथ अब भी वहीं है।समाज ने ‘मोची’ को छूने से परहेज किया। मगर अब अर्थशास्त्र ने ‘मोची’ को एक अंतराष्ट्रीय ब्रांड बना दिया। भारत में ‘मोची ‘ लेदर शूज और गारमेंट्स का बड़ा नाम है।देश के पचास बड़े शहरों में ‘मोची ‘ के 104 आउटलेट है। जयपुर में पांच बत्ती और गौरव टॉवर ऐसे क्षेत्र है जहां अभिजात्य वर्गो की भीड़ उमड़ती है। ‘मोची ‘ के इन दोनों स्थानों पर शो रूम है।एक ये ‘मोची’ शो रूम है एक मोमासर का धनाराम है। नरायण बारेठ