नज़रिया:युवा पत्रकार का दर्द”@gaurilankesh के हैंडल पर follow का विकल्प चुन लिया”

“गौरी लंकेश और मैं”

By:Somesh Khatri

“पत्रकार गौरी लंकेश की हत्या”

हाँ, पहले मुझे भी यह नही पता था कि गौरी लंकेश नाम की कोई पत्रकार भी थी और थी भी तो इतनी प्रभावशाली पत्रकार कि कोई उन्हें उनके घर के बाहर मारने आया।

शायद, बहुत ही उम्दा लिखती रही होंगी कि उनके कुछ लिखने से कोई उनकी जान का दुश्मन बन गया। उनकी हत्या पर आपको बहुत कुछ मिर्च-मसाला सोशल नेटवर्किंग साइट फेसबुक, ट्विटर और न्यूज़ पोर्टल्स पर पढ़ने को मिल जाएगा।

13 अक्तूबर को SIT (special investigation team) ने तीन लोगों के स्केच भी जारी किए थे, वो भी आपको मिल जाएंगे, पर कौन पकड़ा गया, किसको कितनी सज़ा हुई, ये नही मिलेगा।

बहुत सारे बुद्धिजीवियों और पत्रकारों ने अपने-अपने लिहाज़ से उनकी मौत का शोक मनाया, फिर कहीं पर किसी ने ‘महान पत्रकार’ कहा, तो कहीं पर किसी ने लिखा कि ‘कुतिया मर गई और कुत्ते पीछे भौंक रहे है’ । अजी, लोकतंत्र है, हमें हर प्रकार की आज़ादी है, और फिर भारत का संविधान भी तो अनुच्छेद 19 में हमें बोलने और अभिव्यक्ति की आज़ादी देता है।

गौरी लंकेश की हत्या के बाद हर कहीं बवाल सा मच गया फिर चाहे वो सोशल साइट्स पर हो या बड़े-बड़े टी.वी स्टूडियोज़ में, हर जगह।

देश के अलग-अलग हिस्सों में प्रेस क्लब्स ने कैंडल मार्च निकाले और #IAmWithGauri को ट्रेंडिंग में भी लाया।

एक और वर्ग था, जो खुद ही लड़ रहा था और अपने वालों से ही लड़ रहा था। उसमें दो लोग थे, एक वो जो एक पत्रकार (गौरी लंकेश) की हत्या पर शोक और चिंता जता रहे थे, दूसरे वो जो इन लोगों से लड़ रहे थे, कि वह क्यों चिंता जता रहे है, आखिर गौरी लंकेश तो एक लेफ्ट अप्रोच रखने वाली पत्रकार थी।

तो क्या लेफ्ट अप्रोच रखना या लेफ्टिस्ट होना बुरी बात है?

क्या इन पर या अधिकतर पत्रकारों पर संविधान का अनुच्छेद 19 लागू नही होता? और क्या यह लोग लोकतंत्र में नही गिने जाते?

फर्क तो सिर्फ इतना ही था कि वह एक लेफ्टिस्ट थी, पर क्या पहले एक पत्रकार नही थी? जो वह एक वर्ग आपस में ही लड़ रहा था।

मैंने भी गौरी लंकेश का कोई आर्टिकल या लंकेश पत्रिका ना ही पहले पढ़ी थी और ना ही आज पढ़ी है, और ना ही मैं गौरी लंकेश की किसी विचारधारा का समर्थन या विरोध करता हूं, बस ना जाने क्यों इस बात का गम है कि पत्रकारों के परिवार से एक सदस्य अब नहीं रहा, फिर चाहे वो लेफ्टिस्ट हो या कुछ और….

और अंत में मैंने 7 सितम्बर को ना जाने क्यों ट्विटर पर @gaurilankesh के हैंडल पर follow का विकल्प चुन लिया।

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