मैं एक रेल सा हूँ

मैं एक रेल सा हूँ

By :Shoukat ali khan
ख्वाबों की यात्रा करता हूँ
हालातों की नगरी में मेरा बसेरा है
मैं वह चलता आशियाना हूँ
जहाँ रात-दिन आस व विश्वास के दीये जलते है।
फिर भी यह अँधेरा क्यों है?
मैं युवा हूँ ठहरी हुई जात का
सपनें मेरे आँखों की चौखट पर है
तहजीब मेरी विरासत है
मैं कोशिशों का समंदर हूँ
जहाँ संघर्षो की बूंदे टपकती है
फिर भी यह अँधेरा क्यों है?

मैं एक घर का चिराग़ हूँ
जो मेरी मेहनत से जलता है
ज़िद्दी परिंदा हूँ
आसमाँ में बसेरा है
बदन से मेरी रिश्तेदारी है
जो अनन्तकाल का साथी है
फिर भी यह अंधेरा क्यो है ?

तूफानों में पलना मेरा मसला
हल हो जाता हैं पसीने की गवाही से
मेरे जीवन के चारों औऱ तो उजाला हैं
फिर भी यह आस-पास अँधेरा क्यो हैं?

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