गाय की दुर्दशा के लिए कौन है जिम्मेदार,क्या है समाधान

–इनायत अली

वर्तमान राजस्थान सरकार हो या केंद्र सरकार गौतस्करी रोकने और अन्य राज्यों में गौमांस प्रबंधन को लेकर किये गए चुनावी वादों से जितना नुकसान किसान के इस पशुधन गाय का हुआ है शायद ही किसी अन्य पशु का हुआ हो । करोड़ों रुपयों के बजट भी गाय के अच्छे दिन नहीं ला सके। मौजूदा चुनाव व राजनीति का प्रमुख दांव गौमाता की दुर्दशा का अंदाजा गौशालाओ व सड़को पर आए दिन दुर्घटनाओं में गाय की अकाल मृत्यु से लगाया जा सकता है । आज हालात ये है कि इस मूक पशु के संरक्षण की ज़िम्मेदारी लेने को कोई सरकार कोई संगठन तैयार नही,गाय सिर्फ राजनीति के नारों मे जरूर ज़िंदा है। सरकार चाहे तो सड़को, राजमार्गो व गली मोहल्लों में भूख-प्यास व बीमारियों से मरती गायों का ज़िला स्तर पर चारागाह व सरकारी भूमि मे संरक्षण कर सकती है, जँहा गोबर व गौमूत्र से जैविक खाद व जैविक कीटनाशक बनाए जा सकते हैं। सरकार गौमूत्र, वर्मी कम्पोस्ट व वर्मीवाश का उत्पादन कर सस्ती दरों पर किसानों को उपलब्ध करा सकती है । आज आसाराम गौशालाओं और अन्य गोशालाओँ में वर्मीकम्पोस्ट 5-6 रु किलो गौमूत्र 10-15 रु लीटर व वर्मी वॉश 20-25 रु लीटर बेचा जा रहा है । जो कि किसानों की खरीद सीमा से बाहर है । गोबर व गौमूत्र मे सभी प्रकार के 16 पोषक तत्व, एमिनो एसिड्स, कार्बनिक पदार्थ,ह्यूमस व पर्याप्त नाईट्रोजन पाई जाती है जो कि फसलों के उत्पादन के लिए किसी वरदान से कम नही है। जीवामृत, घन जीवामृत, व अन्य जैविक तरल खाद भी गोबर और गौमूत्र से ही तैयार होती है । अगर सरकार इस व्यवस्था पर ध्यान दे और कार्य करे तो ये उत्पाद लघु व सीमांत किसानों को सस्ती दर पर सरकारी किसान केंद्रों व केवीके से उपलब्ध कराया जा सकता है। इस व्यवस्था से जैविक खेती के रकबे को भी बढ़ाया जा सकता है जिसके लिए राज्य व केंद्र सरकार वर्षो से प्रयासरत है । इससे रासायनिक दवा, कीटनाशक ओर रासायनिक खाद के खर्चे को भी कम किया जा सकता है और किसानो को कैंसर जैसी गंभीर बीमारी के साथ साथ आत्महत्या से भी बचाया जा सकता है ।

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